उत्तराखंड में होली मात्र एक पर्व नहीं एक परंपरा है।

[hit_count] रितिका सनवाल अल्मोड़ा। उत्तराखंड में होली मात्र एक पर्व नहीं एक परंपरा है। यूं तो हर जगह होली का त्यौहार एक या दो दिन…

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रितिका सनवाल अल्मोड़ा। उत्तराखंड में होली मात्र एक पर्व नहीं एक परंपरा है। यूं तो हर जगह होली का त्यौहार एक या दो दिन का होता है मगर देवभूमि उत्तराखंड में होली एक लंबे समय तक मनाया जाने वाला उत्सव है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले में होली की तैयारियां लगभग दो महीने पहले से शुरू हो जाती हैं। इसी वजह से अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगरी कहा जाता है।

देवभूमि में होली रंग पर्व के साथ होली गायन की परम्परा भी जुड़ी हुई है। अल्मोड़ा में मुख्य रूप से तीन तरह की होली गाई जाती हैं।

1- बैठकी होली

बैठकी होली का तात्पर्य है ऐसा होली गायन जो बैठकर किया जाता हो। कुमाऊं की परम्परा में लोग सार्वजनिक स्थल पर एकत्रित होते हैं और फिर साथ बैठकर रातभर होली गीत गाते हैं।

बैठकी होली में विशेषकर शास्त्रीय संगीत से जुड़ा गायन होता है, जिसमें होल्यार यानी होली गीत गाने वाले अपनी गायन शैली से सभी को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

यह होली गायन बसंत पंचमी के मौक़े पर शुरू होता है।

इन होली के गीतों से क्योंकि शास्त्रीय राग जुड़े हुए हैं इसलिए इनके गायन का विशेष समय निर्धारित है। मिसाल के तौर पर भीमपलासी, पीलू, सारंग आदि राग दोपहर के समय गाए जाते हैं जबकि यमन, कल्याण, श्याम कल्याण राग शाम के वक़्त गाए जाते हैं।

2- खड़ी होली

खड़ी होली गायन परम्परा में लोग अपने प्रियजनों के घर जाकर सामूहिक तौर पर लोकगीत गाते हैं, नृत्य करते हैं। ढोल, हुड़का जैसे कई पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग इस होली गायन शैली में किया जाता है।

यह मुख्य रूप से पुरुषों के द्वारा गाई जाने वाली होली गायन शैली है। पुरुष समूह में होली गायन के ज़रिए माहौल को जीवंत, ऊर्जावान, रोमांचक रखते हैं।

मुख्य रूप से प्रचलित गीतों में ” झनकारो – झनकारो झनकारो ” और ” जोगी आयो शीर में व्यपारी” प्रचलित हैं।

3- महिला होली

यह होली गायन बैठकी होली गायन शैली से बहुत मिलता जुलता है। फर्क बस इतना है कि जहां बैठकी होली में स्त्री पुरुष मिलकर गायन करते हैं वहीं महिला होली सिर्फ़ महिलाओं के समूह द्वारा गाई जाती है। महिलाएं प्रेम और आध्यात्मिक एकाकार के गीत गाती हैं। इस होली गायन शैली का मुख्य गीत ” बलमा घर आयो फागुन में ” है।

इन सभी होली गायन शैली के ख़ूबसूरत होने के बावजूद आज वक़्त के हिसाब से कुमाऊं की संस्कृति में लोगों की रुचि कम हुई है। यह सभी पर्व लोगों को जोड़ने के लिए एक प्रयास होते हैं। आज लोग एक दूसरे से बहुत दूर हो गए हैं।

आज समय है कि हम सब साथ मिलकर एक बार फिर से होली गायन शैली को समृद्ध करें और जीवन में खुशियों का स्वागत करें।