हालात : पहाड़ में पलायन के बाद दौड़ी विकास की लहर में ठेकेदार और परियोजनाओं के कर्ताधर्ताओं की मौजा ही मौजा

विकास के नाम पर संसाधनों की मची लूट फोटोशॉप की मदद से फाइलों में जोड़ दिए गए चित्र ललित मोहन गहतोड़ी काली कुमाऊं। सचमुच पहाड़…

विकास के नाम पर संसाधनों की मची लूट फोटोशॉप की मदद से फाइलों में जोड़ दिए गए चित्र

ललित मोहन गहतोड़ी

काली कुमाऊं। सचमुच पहाड़ में पिछले दो दशक से पलायन जारी रहा। बढ़ते पलायन के चलते यहां की जवानी नगर और शहरों की ओर रुख कर गयी। पिछले एक दशक के भीतर इधर सड़क से महरूम गांव – कस्बों तक में सड़क सहित अनेक निर्माण कार्य शुरू हो गये। इस दौरान काली कुमाऊं में वन संपदा का लगातार दोहन किया जाता रहा। अलावा इसके कुछ परियोजनाएं भी यहां आकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे गई। इन पर समय रहते अंकुश नहीं लगाए जाने से समाज के ठेकेदार मौज में रहे।

काली कुमाऊं के सभी गांवों के हालत कामोवेश एक ही हैं। यहां निर्माण कार्य गुणवत्ता के स्तर से नगण्य हैं या धरातल से नदारद हैं। कागजों में विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त मौजूद है लेकिन धरतल में विकास हवा हवाई साबित हो रहा है। यह त्रासदी यहां आम जन मानस को सोचने पर मजबूर नहीं कर रही वरन यहां के वासिंदे महज कागजों में हो रहे विकास कार्यों को धरातल में उतार कर क्यों ना रखने का जोर करते। इस अनदेखी का एक मात्र कारण गांवों में रहने मात्र को यहां पर कुछ बूढ़े बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं शेष हैं जिनका इन जन सरोकारों से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं। एक आध अपवादों को छोड़कर ग्राम प्रधान से लेकर क्षेत्र पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, जिला पंचायत, विधायक और सांसद तक ने यहां हो रहे विकास के साथ छलावा किया। अपने मुट्ठी भर लोगों के फायदे के अलावा कोई दूसरा विकास नहीं किया गया। कायदे को दरकिनार कर फायदे के लिए दस परसेंट में विकास कार्यों को तक बेच दिया गया। सैय्या भये कोतवाल तो डर काहे का की तर्ज पर एक ही कार्य को बार-बार और अलग अलग मदों से निर्माण दिखाते हुए फाइलों में फोटोशॉप की मदद से अलग अलग चित्र जोड़ कर फर्जी तरीके से कार्य पास करा दिए गए।

संसाधनों का दोहन कर रही परियोजनाएं


पहाड़ में सबसे ज्यादा संसाधनों के दोहन की जिम्मेदार यहां फल फूल रहीं विभिन्न परियोजनाएं रही हैं। इन परियोजनाओं में स्थानीय युवाओं को नहीं के बराबर रोजगार दिया जाता है। संसाधनों के दोहन को लेकर कोई ठोस मसौदा तैयार नहीं होने के चलते पहाड़ लगातार बाहरी परियोजनाओं की मनमानी का शिकार हो स्वयं को ठगा महसूस कर रहे हैं।