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फरिश्ते यहीं हैं,यहीं कहीं पर हैं, आप पहचान पाए उन्हें…. पढ़े पूरा वाकया

उत्तरा न्यूज डेस्क
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सोशल मीडिया डेस्क:- (वर्तमान परिदृश्य) कोटद्वार में जिस तरीके से एक दुकानदार ने स्कूल प्रसाशन की मिलीभगत के कारण एक अभिवावक से बदतमीजी की उसे आज सब अभिवावकों ने मिलकर सबक सिखाया।
ये लूट हर जगह व्याप्त है
शिक्षा के नाम पर कुछ लोगो ने दलाली का अड्डा खोला हुआ है। जो शिर्फ़ मोटा माल कमाना चाहते है।

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(असल वाकया) -लेकिन कुछ दुकानदार ऐसे भी है जो 10 गरीब बच्चो को फ्री में कॉपी किताबे देते है। निर्धन विद्याथियों का खर्चा भी उठाते है… |
100 में से 90 किताबघरो के दुकानदार मोटा माल बनाने में व्यस्त है।
लेकिन जब मैं एक प्रतिष्ठित निजी इंजीनियरिंग व मेडिकल कोचिंग की मार्केटिंग करता था तो मेरी मुलाकात यूनिवर्सल बुक डिपो के मालिक श्री राजा भट्ट जी पिथौरागढ़ जनपद में हुई….
एक तरफ जहां बच्चो को लूटा जा रहा है वही दूसरी तरफ राजा भट्ट जी ने उस समय मेरा दिल जीता था जब उन्होंने मेरे सामने एक बुजुर्ग को उनकी 7 साल की पोती के साथ ना सिर्फ़ शिक्षा प्राप्त करने के साधन दिए वरण जो संम्मान दिया वो इस कलयुग में अपेक्षित नही था।
राजा भाई जी की बुक शॉप यूनिवर्सल बुक डिपो जो एपीएस स्कूल के पास है 2013 में मुझे उनकी शॉप में जाने का अवसर मिला। एक निर्धन करीबन 60 या 62 साल का बूढ़ा अपनी 7 साल की पोती के साथ आया व स्कूल की किताबें कॉपी और ड्रेस लेनी चाही परंतु निर्धन बुजुर्ग के पास मात्र 250 रुपये करीबन थे जिसमें स्कूल बैग ही आ सकता था। वो निराश बाद में ले जाऊंगा बोलकर वायस जाने लगा। दुकानदार राजा भट्ट व उनके सहयोगी व्यस्त थे परंतु जब उनका लड़का समान को अंदर वापस रखने लगया तो राजा भट्ट जी ने उनको रोका कारण पूछा लेकिन वृद्ध ने असमर्थता बताई। राजा भट्ट व्यक्तिगत रूप से कैसे है मुझे नही पता लेकिन उस दिन मैं एक जीते जागते फरिश्ते से मिला। सेंटा क्लोज़ वाली स्टाइल में राजा भट्ट जी ने 1 प्यारा सा पेंसिल बॉक्स उस बच्ची को दिया और कहा कि अपने पिताजी के साथ क्यो नही आई। जवाब बच्ची का रुला देने वाला था, बच्ची बोली पापा नही है, बुबु ही है।
वो वृद्ध व्यक्ति अपनी नातनी को पढ़ा रहा था । रोजगार से पेंटर व बढ़ई का काम करता था। थोड़ा बातचीत के बाद राजा भट्ट जी ने उस वृद्ध को भीड़ से अलग बुलाया और मैं ये सब चुपचाप देख रहा था। उस व्यक्ति को 1 स्कूल बैग, किताबे कॉपी ड्रेस दी और चुपचाप उनके जेब मे 10000 (दस हजार रुपये) डाल के बोले कि बच्ची को जरूर पढ़ाना और जब तक मेरा ये किताबों का कार्य है आकर इसके लिये किताबे ले जाना। अगर ये बाते मैंने सुनी होती तो फिल्मी लगती पर मैं सब अपनी आँखों से देख रहा था । मेरी आँखों मे आंसू थे। उस वृद्ध के जुबान लड़खड़ा के बोली कि अहसान हो गया ये भारी आपका मुझपर, चुका भी नही पाऊंगा तो ये पैसे,राजा भाई ने मुस्करा के कुछ नही बोला बस ये कहा कि जाओ कभी मेरे घर मे कोई पेंट का कार्य होगा तो आपको बुलाऊंगा। वो वृद्ध आंसू पोछते हुए चला गया।
राजा भाई ने मुझसे कहा था कि दीपक हम जो भी कमाते है वो हमारी मेहनत का है पर ये वृद्ध की नातनी देवी के रूप में आई थी | फिर बात आई गयी हो गयी।
लेकिन मैंने इस कलयुग मे जीती जागती इंसानियत देखी ।
तो एक तरफ लूटेरे है दूसरी तरफ इंसानियत भी है।राजा भट्ट जैसे लोग जब तक है तब तक भगवान अपने प्रतिनिधियों के रूप में हम सब के बीच मे है।
(सामाजिक कार्यकर्ता दीपक मेहता के फेसबुक वाँल से साभार)

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