वेबिनार के जरिये याद किये गए जनकवि गिर्दा (girda)

विभिन्न संगठनों ने किया था गिर्दा (girda) की याद में वेबिनार का आयोजन पिथौरागढ़। जनकवि-संस्कृतिकर्मी गिरीश तिवारी गिर्दा (girda) की दसवीं पुण्यतिथि पर उनको याद…

गिर्दा (girda)

विभिन्न संगठनों ने किया था गिर्दा (girda) की याद में वेबिनार का आयोजन


पिथौरागढ़। जनकवि-संस्कृतिकर्मी गिरीश तिवारी गिर्दा (girda) की दसवीं पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुए पिथौरागढ़ के विभिन्न सांस्कृतिक दलों व अन्य संगठनों ने एक साझे वेबिनार का आयोजन किया। ‘थात’, ‘आरंभ’, ‘भाव राग ताल नाट्य’ अकादमी व जनमंच’ की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार व नैनीताल समाचार के संस्थापक-सम्पादक राजीव लोचन साह वक्ता के रूप में शामिल थेवेबिनार के विषय उत्तराखंड में सांस्कृतिक प्रतिरोध और गिर्दा पर राजीव लोचन जी के वक्तव्य के पश्चात श्रोताओं के सवाल-जवाबों के जरिये संवाद का यह कार्यक्रम आगे बढ़ा।


‘आरंभ स्टडी सर्कल’ के फेसबुक पेज पर लाइव प्रसारित हुए इस वेबिनार का संचालन आरंभ की ही नूतन ने किया कार्यक्रम के सभी आयोजकों की ओर से वक्ता का स्वागत और परिचय देते हुए नूतन ने कहा कि गिर्दा (girda) के गीत बदलाव के लिए संघर्ष कर रही सभी शक्तियों को लगातार प्रेरित करते रहते हैं गिर्दा को याद करने का कोई एक दिन नहीं होता, गिर्दा हर दिन, प्रत्येक छोटे-बड़े संघर्ष में, एक सुंदर, एक बेहतर दुनिया के सपने में हमारे साथ बने रहते हैं. लेकिन फिर भी उनकी स्मृति को समर्पित यह खास दिन हम सबको एक मौका देता है, उन पर ठहर कर सोचने और आगे बढ़ने के नए रास्ते तलाशने का।


नूतन ने कहा कि गिर्दा (girda) की सृजनशीलता और व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों से हम जिन लोगों की लेखनी के चलते परिचित हो पाए हैं उनमें राजीव लोचन साह एक प्रमुख नाम हैं चिपको के दौर से ही यानी पिछले साढ़े चार दशकों से आन्दोलनों में सक्रिय, नैनीताल समाचार जैसे प्रतिष्ठित पत्र के संस्थापक सम्पादक राजीव लोचन साह को सुनना हमारे लिए एक उपलब्धि के समान ही रहता है


मुख्य वक्ता राजीव लोचन साह ने गिर्दा (girda) के साथ जुड़े अपने विविध संस्मरणों के माध्यम से अपनी बात रखी गिर्दा और चिपको आंदोलन से जुड़े संस्मरणों से अपनी बात शुरू करते हुए उन्होंने कहा कि आज के चुनौतीपूर्ण समय में गिर्दा और अधिक याद आते हैं गिर्दा के सांस्कृतिक प्रतिरोध के हथियारों की कमी आज हम सब को महसूस होती है गिर्दा को आज जिस तरह से जगह जगह याद किया गया यह बताता है कि गिर्दा अपने गीतों के माध्यम से जनता के बीच कितने गहरे पैठे हैं आज एक सांस्कृतिक गैप पैदा हो गया है जिसे भरने के प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, तभी सांस्कृतिक प्रतिरोध संभव होगा।


उन्होंने कहा कि पिथौरागढ़ के युवाओं की यह पहलकदमी स्वागत योग्य और उत्साहवर्धक है
वेबिनार में न केवल पिथौरागढ़ के सांस्कृतिक दलों, युवाओं, नागरिकों व छात्र-छात्राओं की बल्कि अन्य जनपदों व नगरों से श्रोताओं की भागीदारी देखने को मिली।



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