उत्तराखण्ड अपने अनोखे रीति रिवाजों और त्यौहारों के लिये जाना जाता है। वर्ष भर ghughuti tyar
अल्मोड़ा (Almora) में इस शिला में मूर्छित होकर गिर पड़े थे स्वामी विवेकानंद, एक मुस्लिम फकीर ने की थी उनकी मदद
ghughuti tyar
शाम गुड़ के पानी में आटें को गूंथने के बाद फिर सिलसिला शुरू होता है कौवों के लिये घुघते बनाने का। घुघुते की विशेष आकृति बनाकर तेल में तली जाती है। इसके साथ ही अलग अलग पकवान जैसे खजूरे, तलवार, डमरू आदि आकृतिया बनाकर हल्की आंच में तली जाती है। पहले से भिगोकर रखी मॉस ( उड़द ) की दाल को सिलबट्टे में पीसा जाता है और उससे बड़ा (एक कुमाऊंनी पकवान) बनाया जाता है।
छोटे बच्चें इस ghughuti tyar त्यौहार की विशेष प्रतीक्षा करते हैंं क्योंकि उन्हे इन्ही घुघते, खजूरें, तलवार,बड़े, डमरू आदि को गछकर माला तैयार करनी होती है माला के बीच में नारंगी ( संतरे ) का दाना गछाया जाता है। मूंगफली , तिलगटटे को माला में गछाया जाता है। बच्चों में अपनी माला को सबसे बड़ी दिखाने के लिये बड़ा उत्साह रहता है। अगली सुबह बड़ा, खजूर, घुघुत और पहले दिन की सुबह से रखा कौवे का भोजन घर की छत पर ऐसी जगह दिख जाता है जहां से कौवा इसके आसानी से देखकर खा सके। इसके बाद बच्चें बोल बोलकर कौवों को अपने घर आकर उसके लिये रखे भोजन को खाने के लिये आमंत्रित करते हैं।
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इधर राज्य हथियानें का मंसूबा पाले राजा का मंत्री किसी भी तरह से बालक घुघुति को मारने का षडयंत्र रचने लगा। उसने एक दिन जब बालक घुघुति अकेला खेल रहा था जो मंत्री अपने साथियों के साथ उसे वहां से उठाकर जंगल में ले गया। घुघुति ghughuti tyar को जंगल की ओर ले जाते हुए एक कौवें ने देख लिया और वह जोर से कांव कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनते ही घुघुति जोर से रोते हुए अपनी माला उतारकर कौवें को दिखाने लगा। इसी बीच वहां पर कई सारे कौवें इकठ्ठा हो गये और उनके आसपास मडंराने लगे और एक कौवा माला छीनकर वहा से चला गया। और कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर चौंच और पंजों से हमला कर दिया। इससे घबराये मंत्री और उसके साथी वहा से भाग निकले। इधर घुघती वहां अकेला ही रह गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया। सभी कौवे घुघुति की सुरक्षा के लिये उसी पेड़ के आसपास बैठ गये।
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राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। वह अपने बेटे को उठाकर महल में ले गया। घुघुति को सकुशल पाकर मां बड़ी खुश हुई और कहने लगी कि अगर यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता। इसक बाद राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई। बालक घुघुति के मिलने पर उसकी माँ ने बहुत सारे पकवान बनाकर घुघुति से पकवान कौवों को बुलाकर खिलाने को कहा। घुघुति ने अपने प्राण बचाने वाले कौवों को बुलाकर उन्हे पकवान खिलाये। कहते है कि यह बात धीरे धीरे पूरें कुमाऊ में फैल गई और इसने घुघति त्यार का रूप ले लिया।
बच्चे मकर संक्रांति के दिन माला अपने गले में डाल कर
कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं:-
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काले कौव्वा काले घुघते की माला खाले
लै कव्वा मैचुलों , भोल बटी आलो तेर गल थेचुलों
ले कव्वा तलवार , हमन के दे भलि पुरी परिवार
लै कव्वा बड़ हमन के दै स्यून घड़
लै कावा लगड़, में कै दे भैबनों दगड
“लै कावा क्वे, में कै दे भली भली ज्वे
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