पलायन से खाली हो रहे गांवों पर कहर बन कर टूट रहा गुलदार का आतंक, अल्मोड़ा में एक साल में छह लोग बने निवाला

अल्मोड़ा:- सरकार की ओर से ठोस पाँलिसी नहीं बनने व वनों की जैवविविधता के प्रभावित होने से वनों का बादशाह गुलदार अब मानव जीवन पर…

अल्मोड़ा:- सरकार की ओर से ठोस पाँलिसी नहीं बनने व वनों की जैवविविधता के प्रभावित होने से वनों का बादशाह गुलदार अब मानव जीवन पर भारी पड़ने लगी है सिर्फ़ अल्मोड़ा ज़िले में ही गुलदार एक साल में 6 लोगों को मार चुके हैं और पांच दर्जन से अधिक लोगों को घायल किया है| इस आंकड़े में गुलदार का शिकार बनने वाले मवेशियों की संख्या शामिल नहीं है |
पर्वतीय क्षेत्र अल्मोड़ा में वन्य जीव और मानव संघर्ष तेजी से बढ़ रहा है| सुअर व बंदर जहां खेती को खत्म करने पर तुले हैं वहीं गुलदार अब जंगली और पालतू जानवरों पर ही नहीं लोगों पर भी हमले कर रहे हैं|
पिछले कुछ सालों में गुलदारों के मानव बस्तियों में घुसने और हमले करने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. मई में सोमेश्वर वन क्षेत्र के नैनोली गांव में 8 लोगों पर एक के बाद एक लोगों पर गुलदार ने हमला किया गुलदार को मारने के बाद ही वहां इस आतंक से निजात मिली |
मटेला कोसी निवासी गोपाल बिष्ट के घर में लगे सीसीटीवी कैमरे में भी गुलदार की हरकतें रिकॉर्ड हो रही हैं |
चौखुटिया क्षेत्र में एक गांव में पांच दिन के भीतर दो महिलाओं की गुलदार के हमले में मौत हो गई है इससे ग्रामीण क्षेत्रों में दहशत है|
जिले के किसी भी छोर की बात करें लोगों का कहना है कि शाम को अंधेरा होते ही गुलदार के हमले की आशंका पैदा हो जाती है| गुलदार अब तक कई कुत्तों, बकरियों को तो अपना निशाना बना ही चुका है महिलाओं पर भी हमले कर रहा है|
जानकार इसकी वजह पारिस्थितिक तंत्र का बिगड़ना और मिश्रित वनों का कम होना मानते हैं| उलोवा से जुड़े व वन आंदोलन के सदस्य पूरन चंद्र तिवारी का मानना है कि वनों में खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा गई है, गुलदार के खाने शिकार होने वाले जानवर तो कम हो गए हैं| अब पालतू जानवरों का जंगल में ले जाना कम हो गया है. इसकी वजह से भी गुलदार मानव बस्ती की तरफ रुख कर रहे है, इसके लिए सरकार को ठोस निर्णय लेने के साथ ही मिश्रित वनों को बचाना होगा |