Facebook का अर्थशास्त्र भाग – 7

दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है…

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दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है पेश है सांतवा भाग तब से लेकर अब तक मार्क ने फेसबुक को लगातार विस्तार दिया है। 1601, कैलिफॉर्निया एव में स्थित फेसबुक के मुख्यालय में बाकी इंजीनियरों की तरह मार्क भी खुले हॉल में बैठते हैं, उनके लिए कोई अलग केबिन नहीं है। सबकी सीटों के बीच एक मार्क की भी सीट है। जाहिर है वह खुद को विशिष्ट नहीं बनने देना चाहते। हां, जिस टेबल पर मार्क बैठते हैं उस पर उन्होंने खुद का एक छोटा सा कट-आउट जरूर लगा रखा है। यही कट-आउट मार्क की निशानी है। यह हरकत बिल्कुल उस तरह की है जैसे कॉलेज के नौजवान पुस्तकालय या फिर कक्षा में अपनी सीट घेरने के लिए उस पर कुछ संकेत चस्पां कर दें और फिर सीट को लेकर अपनी दावेदारी जताए।

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बराबरी में यह ‘खास’ का भाव मस्ती भरे अंदाज में मार्क हासिल कर रहे हैं। मार्क अगर दफ्तर में नहीं होते हैं तो किसी भी पूछताछ के लिए सारे कर्मचारी फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। दफ्तर की सबसे बड़ी खूबी यही है कि यहां पर फेसबुक बैन नहीं है!हालांकि इस ऑफिस को ऐसा करने का पूरा हक है। मार्क की कोशिश रहती है कि इंजीनियर जितना भी समय ऑफिस में गुजारे उसमें अनुत्पादक गतिविधियों में कुछ भी खर्च न हो। इसके लिए उन्होंने कई दिलचस्प व्यवस्थाएं कर रखी है। एक मिसाल लीजिए- अगर काम करते-करते आपका की-बोर्ड टूट गया, तो बाकी ऑफिस की तरह आपको आईटी डिपार्टमेंट का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। एक मशीन में अपना कार्ड लगाइए, नया की-बोर्ड ठीक उसी तरह निकलेगा, जिस तरह एटीएम से नोट निकलता है। साथ में मशीन पर लिखा आएगा–हैव ए नाइस डे! है न अद्भुत? वक्त की जरूरत थी कि उसके डैने को मोड़ा जाए

फेसबुक की बेहतरी के लिए उनके पास एक मेहनती टीम है जो आपस में बेहद अपनापन भरा माहौल बनाए रखती है। यही वजह है कि गूगल जैसी कंपनियां सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में फेसबुक से पछाड़ खाए बैठी है। मार्क कहते हैं, “हमारे पास लगभग 6000 इंजीनियर हैं। माइक्रोसॉफ्ट और गूगल के पास दसियो हजार इंजीनियर हैं। हमारे बीच एक बड़ा फर्क तो जरूर है, लेकिन हम मेहनती हैं। हमारा समूह छोटा है, लेकिन यूजर्स बड़ा है। हम बड़ी कंपनियों से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं। ये तो सिर्फ हमारी शुरुआत है। कई ऐसे देश हैं जहां अब भी हमारा नाम तक नहीं सुना गया है। हम पहले वहां जाना चाहते हैं।” असल में मार्क की यही शांत नहीं बैठने की आदत फेसबुक को लगातार फैला रही है और नियमित अंतराल पर साइट में जरूरी बदलाव भी कर रही है। फेसबुक के जवाब में गूगल ने गूगल प्लस खोला। दुनिया में कई साइबर विशेषज्ञों ने यह भविष्यवाणी की कि गूगल जैसी पुरानी, बड़ी और विश्वसनीय कंपनी के मैदान में उतरने के बाद फेसबुक की खटिया खड़ी हो जाएगी, लेकिन आज महीनों बाद वे सारी भविष्यवाणियां झूठी लग रही है।

फेसबुक है और लगातार मजबूती कायम रखते हुए है। मार्क ने कभी भी सीधे-सीधे प्रतिस्पर्धा की बात नहीं कबूली। वह गूगल को एक बड़ी और विश्वसनीय कंपनी मानते हैं लेकिन उनका मानना है कि यूजर्स अभी भी फेसबुक पर शेयर करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। चूंकि यूजर्स को उन्होंने पहले मंच दिया, इसलिए एक स्वाभाविक लगाव फेसबुक के साथ वो महसूस करते हैं। मार्क का कहना है, “मुझे ऐसा लगता है कि हमारा तरीका बेहतर है। अगर हम ज्यादा खुला मंच देते रहेंगे, हम भविष्य में और बेहतर कर पाएंगे।” फेसबुक को वो अपनी उपलब्धि इस अर्थ में नहीं मान रहे कि उन्होंने नेटीजेन समाज को सोशल नेटवर्किंग का एक नया टूल थमाया, बल्कि वो इसे वक्त की जरूरत मानते हैं। उनके मुताबिक, “अगर उस समय इसे मैंने शुरू नहीं किया होता तो शर्तिया इसे किसी दूसरे ने हमारे सामने पेश किया होता। समाज के बीच यह आता जरूर, चाहे इसे पेश करने वाले शख्स का नाम मार्क हो या फिर कुछ और।”

इतने पैसे हैं, फिर भी कपड़े नहीं खरीदते!

इन बातों का ये मतलब नहीं है कि मार्क सिर्फ दिन-रात फेसबुक के बारे में ही सोचते रहते हैं और प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के भीतर काम-काज पर उनकी नजर नहीं है। नजर तो वह चारों तरफ रखते हैं, लेकिन सोच के केंद्र में फेसबुक ही रहता है। गूगल में ग्लोबल ऑनलाइन सेल्स एंड ऑपरेशंस की उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहीं शेरली सैंडबर्ग को फेसबुक से जोड़ने के लिए मार्क को काफी पापड़ बेलने पड़े। लंबी वार्ता और काफी मशक्कत के बाद शेरली ने फेसबुक के लिए हां कहा। शेरली का आना मार्क और फेसबुक कंपनी के लिए यह बेहद अहम उपलब्धि है। शेरली सैंडबर्ग को मार्क ने फेसबुक का सीओओ यानी चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बनाया। फेसबुक ज्वाइन करने के बाद जब शेरली ने दफ्तर आना शुरू किया तो शुरुआत में मार्क के पास जाने में वह अजीब-सी हिचकिचाहट दिखातीं।

रोज-रोज मार्क का एक ही जैकेट और जींस पहनकर आना उन्हें बेहद अटपटा लगता। वह सोचती काम के दबाव में शायद मार्क कपड़े तक नहीं बदलते। बदबू के डर से वह पूरे दो दिन कोई न कोई बहाना करके उनसे दूर रही। उस घटना को याद करते हुए शेरली कहती हैं, “मैं पहले गच्चा खा गई कि मार्क एक ही जैकेट रोज पहनते हैं। मुझे लगा कैसा आदमी है, इतना पैसा है फिर भी कपड़े तक नहीं ठीक से खरीदता। तब दफ्तर के लोगों ने मुझे कहा, अरे तुम पास जाने से घबराओ नहीं मार्क के पास ठीक इसी तरह के कई जैकेट हैं।”मार्क की यही खासियत है। वह हल्की कत्थई और धूसर रंग की टीशर्ट खूब पहनते हैं। जिनको नहीं मालूम होगा वो आज भी यही समझेंगे कि हफ्तों वह एक ही टीशर्ट पर गुजारा करते हैं! फैशन को लेकर वह बहुत ज्यादा सजग नहीं रहते। वक्त और जगह देखकर कपड़े पहनने की उनकी आदत नहीं है। 19 अक्टूबर 2006 को उन्होंने अपने फेसबुक खाते पर एक फोटो शेयर की (इसे अभी भी देखा जा सकता है)। फोटो के साथ उन्होंने विवरण लिखा, “यह मार्केटवॉच की बांबी फ्रैंसिस्को को दिए गए साक्षात्कार की तस्वीर है। मुझे अच्छी तरह याद है कि साक्षात्कार के समय बांबी यह देखकर नाराज हो गई थी कि मैं शॉर्ट्स पहने हुए टीवी स्क्रीन पर नजर आउंगा।

एक साल बाद बांबी ने फिर से मेरा साक्षात्कार किया और संयोग देखिए उस दिन भी मैंने यही शॉर्ट्स पहन रखे थे।”लेकिन आप सिर्फ़ ये मत सोचिए कि मार्क की लापरवाही सिर्फ़ कपड़ों तक सीमित है। सच्चाई तो ये है कि वो रंगों को लेकर भी बहुत सचेत नहीं रहते।घर की दीवारों के रंग को लेकर कई दोस्तों ने प्रतिक्रिया जाहिर की कि उन्होंने बेहद बेतरतीब तरीके से मकान को रंग रखा है। किचन का रंग चटक पीला है, जो दोस्तों को सुहाता नहीं। असल में रंग के मामले में मार्क के साथ एक दिक्कत जुड़ी हुई है। वह लाल और हरे रंग में अंतर नहीं कर पाते। बहुत दिनों बाद उन्हें पता चला कि वो कलर ब्लाइंडनेस यानी वर्णांधता के शिकार हैं। गूगल के भीतर गूगल के मालिक से ज्यादा लोकप्रिय
उनका फेसबुक खाता खुला दरबार है। आप उसे सब्सक्राइब कर सकते हैं, इन्फो देख सकते हैं, फोटो एलबम देख सकते हैं और लाइक, कमेंट व शेयर भी कर सकते हैं। फेसबुक के दूसरे सह – संस्थापक डस्टिन मोस्कोविच ने इसके ठीक उलट अपने खाते को गोपनीय बना रखा है।

फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजना तो दूर आप उन्हें सब्सक्राइब भी नहीं कर सकते, हां क्रिस ह्यूग्स के खाते पर आपको उतनी ही आजादी हासिल है जितनी मार्क के खाते पर। क्रिस के पास महज 2000 दोस्त हैं, लेकिन सब्सक्राइवर लाखों हैं। वहीं आपको पता चलेगा कि क्रिस द न्यू रिपब्लिक के प्रधान संपादक हैं और सीन एल्ड्रीज के साथ उनकी सगाई भी हो चुकी है। खास बात यह है कि सीन एल्ड्रीज और क्रिस ह्यूग्स दोनों पुरुष हैं। फेसबुक पर मार्क काफी सक्रिय रहते हैं, लेकिन कई यूजर्स की तरह वो इसके इस कदर एडिक्ट नहीं हैं कि दिन में 10 स्टेटस न लिखें तो चैन न आए! संकुचित दायरे में रहकर चीजों को वो न तो देखते हैं और न ही ऐसी आदतें उन्हें पसंद हैं। जिस समय गूगल ने गूगल़ की शुरुआत की और जिसके बाद विशेषज्ञों ने फेसबुक के लिए उसे बड़ी चुनौती के तौर पर पेश किया तो प्रतिद्वंद्वी कंपनी समझकर जकरबर्ग ने उससे कन्नी नहीं काटी, बल्कि उन्होंने गूगल़ पर अपना खाता खोलकर उसका स्वागत किया।

लोकप्रियता की मिसाल देखिए जुलाई 2011 में मार्क गूगल़ की दुनिया के ऐसे व्यक्ति बन गए जिनको फॉलो करने वाले यूजर्स की तादाद इस ग्रह पर सबसे ज्यादा थी। गूगल के सह-संस्थापक लैरी पेज और सरजई ब्रिन से भी ज्यादा! गूगल़ पर उन्होंने अपने बारे में सिर्फ एक छोटा-सा वाक्य लिखा है, “आई मेक थिंग्स।” ट्विटर पर भी जकरबर्ग ने ‘जक’ नाम से अपना खाता खोल रखा है। 2009 ई. में उन्होंने एक नया पर्दाफाश किया कि ‘फिंक्ड’ नाम से भी वो ट्विटर पर सक्रिय हैं। तो, दूसरे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी मार्क उतने ही सक्रिय रहते हैं जितने फेसबुक पर। असल में इसी सक्रियता की वजह से वो फेसबुक में कुछ नया कर पाते हैं। वो हमेशा नएपन की खोज में रहते हैं। सोशल नेटवर्किंग की दुनिया ऐसी है कि थोड़ा नयापन और थोड़ी खूबसूरती ही फर्क पैदा करने के लिए पर्याप्त साबित होती है।

मार्क का मानना है कि साइट्स को जितना सरल रखा जाएगा वह उतनी ही यूजर्स फ्रेंडली होगी। इसके लिए वह बच्चों से भी सलाह लेने से नहीं कतराते। वह अपनी पत्नी प्रिसिला चैन की छोटी बहन से पूछते रहते हैं कि हाई स्कूल में पढ़ने वाली वो और उनकी सहेलियां इन साइट्स से क्या उम्मीदें रखती हैं। स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया को वे सबसे ज्यादा गंभीरता से लेते हैं। वे जानते हैं कि यूजर्स के नए खेप की उम्मीदों पर अगर वो खरे नहीं उतरेंगे तो भविष्य उनका नहीं होगा। आप कह सकते हैं कि चैकन्ने नजर के साथ वो सामने वाले से बात करते हैं, लेकिन इस बात का आभास दिए बगैर
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