फेसबुक का अर्थशास्त्र भाग – 3

दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है…

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दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है पेश है तीसरा भाग

एक अलहदा कलाकार
जैसा कहा जाता है कि हर आविष्कार के पीछे कोई कहानी या प्रेरणा होती है उसी तरह जकरबर्ग के भी ज्यादातर प्रयोग किसी दिलचस्प वाकये की परिणति है। विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले जकरबर्ग की ज़िंदगी काफी रंगीन है, सतरंगी। इसलिए न तो उनके जीवन की कहानी किसी गूढ़ वैज्ञानिक पहेली की तरह उबाऊ है और न ही उसमें ठहराव भरी एकरसता है। बचपन में मार्क के ऐसे दोस्तों की तादाद बहुत बड़ी थी, जो कला की दुनिया में न सिर्फ़ रमे रहते बल्कि अपनी एक अलग कलात्मक दुनिया भी बना लेते। वहां की रस्म वही होती, जिनपर दोस्तों के बीच आपसी मसवरे के बाद मुहर लगती। कभी गंभीर तो कभी बेहद मजाकिया।

ये कलाकार दोस्त रोज-रोज जो हरकत करते मार्क उसे अपने दिमाग के स्टोररूम में जमा करता चलता। एक दिन मार्क ने सोचा कि क्यों न दोस्तों के रोज की कल्पनाशीलता को वो डिजिटलाइज करना शुरू करे। बस फिर क्या था कंप्यूटर को उसने अपना कैनवास बना लिया। इधर दोस्त स्केचिंग करते, उधर वो स्केच मार्क के रास्ते कंप्यूटर गेम की शक्ल ले लेता। धीरे-धीरे फरमाइशी कार्यक्रम चलने लगा कि अब की बार ये वाला गेम बनाओ तो अब की बार वो वाला। मार्क भी कलाकार बन गया, लेकिन सबसे अलहदा।

आप मार्क को मूलतः क्या हैं?
मार्क जब हाई स्कूल पहुंचा तो कुछ उपलब्धियां भी अपने साथ लेकर पहुंचा, लेकिन नवाचार की फितरत उसके भीतर इस कदर पैठी हुई थी कि उपलब्धियां कुछ उसी तरह अंक में तब्दील होती गईं जैसे कोई बच्चा पहाड़ा सीख रहा हो। संगीत को लेकर मार्क के मन में हमेशा एक कोमल भावना रही। गाना सुनने के लिए वह किसी ‘खाली समय’ का इंतजार नहीं करता, बल्कि जब भी मन होता, संगीत के आगोश में चला जाता। यह जरूर है कि बहुत सुरीला या पेशेवर गायकों की तरह वह गा नहीं सकता, लेकिन संगीत प्रेम को जाहिर करने के वास्ते गाना गाने की जरूरत भी नहीं।

सो, हाई स्कूल में मार्क ने इंटेलिजेंट मीडिया समूह के बैनर तले एक नए कारनामे को अंजाम दिया। उसने सिनैप्स मीडिया प्लेयर नाम का एक सॉफ्टवेयर बनाया जो उपयोगकर्ता के संगीत प्रेम को कृत्रिम तरीके से परखने में भी मदद करता था। इसके अलावा, हर म्यूज़िक प्लेयर की तरह गाने तो उसमें बजते ही थे। अमेरिका की चर्चित पीसी मैगजीन ने उसे 5 में से 3 अंक दिया। यह पहला मौका था जब मार्क की शख्सियत बड़े स्तर पर पसरने लगी। हाई स्कूल में पढ़ने वाले जकरबर्ग की चर्चा पूरे अमेरिका में होने लगी। लेकिन, वह अब तक गली-गली लोकप्रिय नहीं हुआ था। अलबत्ता हर शहर में तकनीक से लगाव रखने वाले लोगों के कानों ने जरूर इस शब्द को एक परिचित ध्वनि की तरह जगह दे दी थी। बड़ी कंपनियों ने मार्क को नोटिस करना शुरू किया।

कई कंपनियों को उसके भीतर खुद का विस्तार दिख रहा था। दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने उस समय मार्क से संपर्क साधा। वह या तो मार्क को अपनी सेवा में लेना चाहती थी या फिर उसके बनाए प्रोग्राम को खरीदना चाहती थी। लेकिन मार्क के लिए ऐसे प्रलोभनों का न तो उस समय कोई महत्व था और न ही बाद में उन्होंने इन्हें तवज्जो दी। तो आप मार्क जकरबर्ग को मूलतरू क्या मानते हैं? सॉफ्टवेयर डेवसलपर्स, वीडियो गेम का मुरीद, कला प्रेमी, उद्यमी या फिर संगीत का दीवाना? हालांकि, बहुत कुछ उनके बारे में जानना अभी बाकी है।



अंग्रेजी, फ्रेंच, हिब्रू, लैटिन, प्राचीन ग्रीस और कविता
क्या आप जानते हैं कि अपने स्कूली दिनों में उनका सबसे पसंदीदा विषय क्या था? किस विषय में उन्होंने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया? आर्ड्सले हाई स्कूल में पढ़ते हुए मार्क ने विज्ञान के अलावा जिस विषय में शानदार अंक हासिल किया वो था, साहित्य। गणित, एस्ट्रोनॉमी और भौतिकी में तो वह अव्वल था ही लेकिन साहित्य में भी उसकी अच्छी-खासी दखलंदाजी थी। इस तरह देखें तो मार्क की धमनियों में बहने वाले विज्ञान से परिचित कई लोग हैरत में पड़ जाते हैं जब उनको मालूम होता है कि साहित्य के प्रति भी वो अगाध रुचि रखते हैं। हाई स्कूल के दिनों में तो कई दोस्तों और शिक्षकों ने उन्हें ये तक सलाह दी कि करियर के लिहाज से साहित्य उसके लिए ज्यादा मुफीद होगा।

कक्षा के भीतर साहित्य को समझने के उसके तरीके मात्र से शिक्षकों और दोस्तों को उसके भीतर एक कुशल साहित्यकार नजर आने लगा था। कॉलेज में दाख़िला लेने के वक्त जकरबर्ग सहित सारे छात्र-छात्राओं को एक फॉर्म भरना पड़ता था, जिसमें अंग्रेजी से इतर ऐसी भाषाओं का उल्लेख करना जरूरी था जिसे वो लिख और पढ़ सकते हैं। जकरबर्ग ने उस तालिका के सामने लिखारू फ्रेंच, हिब्रू, लैटिन और प्राचीन ग्रीस। ओह! तो एक सॉफ्टवेयर बनाने वाला व्यक्ति इतनी भाषाएं भी पढ़-लिख सकता है! इतनी मेहनत के वास्ते कहां से मिलता होगा समय? द इलियड की पंक्तियां गुनगुनाते हुए मार्क को कई बार स्कूल के बरामदे में, कैंटीन में और यहां तक कि खेल के मैदान में भी सुना गया। कहें कि रंगे हाथों पकड़ा गया मार्क। साहित्य प्रेम छुपाए नहीं छुपता, फिर मार्क हो या कोई और। एक साक्षात्कार में मार्क ने यह आपकबूली की कि वो कॉलेज के दिनों में कविताओं में भी हाथ आजमाते थे। तो लीजिए मार्क जकरबर्ग का एक और परिचय आपके सामने है