फेसबुक का अर्थशास्त्र भाग – २

दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है…

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दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है पेश है दूसरा भाग

मार्क बनेगा रोल मॉडल
पिताजी को उसके भीतर एक चमक दिखती थी। इसलिए मार्क जब कंप्यूटर प्रोग्रामिंग‘बेसिक’ सीख रहा था तो एडवर्ड जकरबर्ग ने घर में एक शिक्षक बुला लिया ताकि मार्क को सॉफ्टवेयर समझने में ज्यादा मदद मिल सके। मार्क को ट्यूशन देने पहुंचे डेविड न्यूमैन उस इलाके के चर्चित सॉफ्टवेयर डेवलपर्स थे। जिन बच्चों को वो पढ़ाते थे उस लिहाज से मार्क की उम्र काफी कम थी, इसलिए उन्हें लगा कि मार्क को समझाने में उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। जल्द ही वो समझ गए कि मेहनत की दरकार तो है, लेकिन इसके लिए मार्क की कम उम्र नहीं बल्कि उसका तेज दिमाग जिम्मेदार है। धीरे-धीरे सिलसिला शुरू हुआ। मार्क का सॉफ्टवेयर प्रेम भी बढ़ने लगा। उस स्कूली बच्चे की काबिलियत और सीखने की क्षमता से शिक्षक डेविड कई बार भौंचक्क रह जाते थे।

उन्हें यकीन ही नहीं होता कि जिस चीज को सीखने में 12वीं के विद्यार्थी को महीनों लग जाते है, उसे बस्ता लटकाकर स्कूल जाने वाला छोटा-सा मार्क किस तरह हफ्तों में साध ले रहा है! डेविड न्यूमैन को कई बार जकरबर्ग इस तरह फंसा देता कि उनके लिए मुश्किल खड़ी हो जाती। बकौल डेविड, “मार्क से एक कदम आगे रहना मेरे लिए काफी मेहनत भरा काम बन गया था।” इस तरह डेविड मार्क को पढ़ाते भी और मार्क से सीखते भी। एक अर्थ में दोनों एक-दूसरे के शिक्षक बन गए थे। डेविड ज्यादा, मार्क कम। ट्यूशन के उस दौर में ही डेविड ने मार्क के पिता एडवर्ड जकरबर्ग से कहा था कि एक दिन मार्क दुनिया का सबसे बड़ा हीरो होगा। एक रोल मॉडल। मार्क को लेकर परिवार वालों के बीच एक गजब का आत्मविश्वास था। पिता से लेकर छोटी बहन तक सबको ऐसा लगता कि स्कूल में पढ़ने वाला नन्हा-सा मार्क कंप्यूटर का मास्टर है।

एक दिन मार्क की बहन डोना कंप्यूटर पर नया-नया हाथ आजमा रही थी। ऊपर के कमरे में मार्क कुछ कर रहा था और नीचे वो कंप्यूटर से खेल रही थी, तभी स्क्रीन पर किसी खतरनाक वायरस का हमला हुआ। कंप्यूटर स्क्रीन पर यह चेतावनी आई कि 30 सेकेंड्स में वह वायरस कई कंप्यूटर प्रोग्रामों को उड़ा देगा। उल्टी गिनती जब शुरू हुई तो डोना को कुछ नहीं सूझा। उसने चीखते हुए ऊपर का रुख किया- मार्क, मार्क। तो, परिवार में ये छवि थी लिटिल जकरबर्ग की।

मैं नास्तिक हूं
जकरबर्ग को विज्ञान के अलावा मनोविज्ञान और समाजशास्त्र से शुरू से ही लगाव था। वह विज्ञान को समाज की तराजू पर तौलता और समाज को विज्ञान की। इसमें उसकी पूरी दुनिया शामिल होती- मां, पिता, बहन, पड़ोसी से लेकर ईश्वर तक। इस धरती पर जिस तरह कोई भी बच्चा नास्तिक पैदा नहीं होता, ठीक उसी तरह शुरुआत में जकरबर्ग को यहूदी माना गया। उसका बचपन यहूदी संस्कार और रिवाजों को मानने के साथ कट रहा था, मगर सबकुछ वैसा ही रहता अगर उनके मन में सवाल कम आते! लेकिन, जकरबर्ग के भीतर शुरू से ही न सिर्फ विज्ञान और तकनीक को लेकर एक जुनूनी धुन पैबस्त थी, बल्कि वो विज्ञान की सामाजिक व्याख्या करने में ज्यादा रुचि रखता। इसी धीमी, लेकिन सतत चिंतन से जकरबर्ग को लगने लगा कि नहीं, यह संभव नहीं है कि कोई ईश्वर इस धरती से बहुत दूर बैठकर पूरी दुनिया को नियंत्रित कर रहा है।

स्कूली दिनों में ही जकरबर्ग को धर्म की ज्यादातर व्याख्याएं अटपटी लगने लगी। धीरे-धीरे उसकी एक मान्यता बनी कि धर्म और ईश्वर सिर्फ तभी तक पूजनीय बने रहते हैं जब तक घटना की वैज्ञानिक व्याख्या हमारे बीच न पेश हो जाए। जकरबर्ग का विश्वास हिला और इस तरह वो खुद को नास्तिक कहने लगा। 13 साल की उम्र कम नहीं होती इस तरह की घोषणा के लिए! 13 साल कोई अबोध बच्चे की उम्र नहीं है! इस तरह जकरबर्ग इंजीनियरिंग के उन छात्रों से अलग हैं जो विज्ञान के अत्याधुनिक दुनिया में जीते भी हैं और खुद को वैचारिक तौर पर धर्म की पुरानी मान्यताओं से भी जकड़े रखते हैं। साफ कहें तो वैज्ञानिक तकनीक और धार्मिक अंधविश्वास की मिलीजुली हरकत के रूप में लैपटॉप पर कुंडली देखना जकरबर्ग के बस की बात नहीं है।कहने की जरूरत नहीं है कि बचपन मेंजितना तीक्ष्ण तकनीक को लेकर था उतना ही सचेत समाज को लेकर था। डेविड न्यूमैन के साथ जब मार्क का कोर्स पूरा हो गया तो एक झिटपुट अंधेरे वाली शाम कोएडवर्ड जकरबर्ग ने मार्क को दूसरे कंप्यूटर कोर्स के वास्ते इलाके के मशहूर मर्सी कॉलेज ले गए।

प्रशासन ने दाख़िला ले लिया, लेकिन पहले क्लास के लिए मार्क को कक्षा तक छोड़ने के लिए जब एडवर्ड गए तो शिक्षक ने मार्क की तरफ इशारा करते हुए एडवर्ड को चेतावनी दी कि आप क्लास में अपने साथ बच्चे को नहीं ला सकते। इसकी इजाजत नहीं है। एडवर्ड ने बेहद भोलेपन से कहा, – श्रीमान! छात्र यही है, मैं तो इसका पिता हूं। कक्षा ठहाके से गूंज उठी और नतीजा यह हुआ कि शिक्षक पहले ही दिन मार्क से चिढ़ गए। हालांकि हफ्ते भर बाद मार्क के प्रति उनके नजरिए में बड़ा बदलाव आया।

जकरबर्ग परिवार का जकनेट
जकरबर्ग का दिमाग शुरू से अन्वेषी प्रकृति का था। सॉफ्टवेयर के साथ खेलना उसका प्रिय शगल था। स्कूल से लौटने के बाद वो या तो कंप्यूटर पर बैठ जाता या फिर अपने पिताजी के क्लीनिक की ओर निकल लेता। मार्क के पिता एडवर्ड जकरबर्ग दांतों के डॉक्टर थे और अपने मरीजों के बीच वो “बेदर्दी डॉ. जेड” के नाम से जाने जाते थे। बच्चों की देखभाल के लिए मनोचिकित्सक की भूमिका तजकर मार्क की मां करेन जकरबर्ग भी पेशे के मामले में खाली बैठी थी तो उन्होंने भी सोचा कि इससे बेहतर है एडवर्ड का ही हाथ बंटाया जाए।एडवर्ड की क्लीनिक में वह ऑफिस मैनेजर बन गईं। यह कोई 1996 की एक दोपहर थी जब क्लीनिक पर बैठे हुए मार्क के दिमाग में यह खयाल आया कि क्या वो इस तरह का कोई सॉफ्टवेयर विकसित कर सकता है जिससे रिसेप्शन पर बैठे व्यक्ति को बार-बार आवाज लगाकर एडवर्ड को अगले मरीज के बारे में इत्तला न करना पड़े। इस समय तक मार्क कई सॉफ्टवेयर विकसित कर चुका था।

कुछ कंप्यूटर गेम और म्यूज़िक प्लेयर बनाकर अपने गली-मोहल्ले और स्कूल में कम-से-कम एक धाक तो उसने जमा ही ली थी। तो, सॉफ्टवेयर बनाने के वास्ते एक आत्मविश्वास उसके भीतर था जो कुछ भी नया सोचने के लिए जरूरी दुरूसाहस किसी व्यक्ति के भीतर भर सकता है। क्लीनिक पर अपने मन में उभरे खयाल को किशोरावय मार्क ने दिल का सवाल बना लिया। उस दिन से वह लगातार उस काम में जुट गया। हालांकि कभी-कभार तीनों बहन रैंडी, डोना और एरिल इस बात को लेकर उसकी बहुत खिंचाई करती थीं कि वो समूह में खेलने के बजाए कंप्यूटर में खुद को झोंके रखता है। कई बार ऐसा हुआ कि मार्क जब कंप्यूटर पर बैठकर काम कर रहा होता, तो अचानक पता चलता कि बिजली गुल हो गई। 1990 के दशक में भी अमेरिका में बिजली कटना अनोखी बात थी। बार-बार के दोहराव से मार्क परेशान हो उठता, लेकिन बाद में भेद खुलता कि बिजली गई नहीं, काटी गई है। बिजली से लेकर इस तरह के हर ‘उपद्रव’ के पीछे रैंडी, डोना और एरिल में से किसी-न-किसी का हाथ होता। हालांकि उस दिन को आने में बहुत वक्त नहीं लगा जब मार्क ने अपने पसंदीदा सॉफ्टवेयर का काम खत्म करने के बाद घोषणा की कि अब घर और पिताजी की क्लीनिक के सारे कंप्यूटरों को उस सॉफ्टवेयर की मदद से एक साथ जोड़ा जा सकता है और हर सिस्टम से एक-दूसरे को संदेश भेजा सकता है। जकरबर्ग परिवार के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा चमत्कार था। इसलिए जब सॉफ्टवेयर के नाम रखने की बारी आई तो नाम रखा गया ‘जकनेट’………………. जारी