लखनऊ में ‘साहित्य आजतक 2025’ के मंच पर प्रसिद्ध आध्यात्मिक प्रवक्ता और मोटिवेशनल स्पीकर जया किशोरी ने भक्ति, जीवन और आध्यात्म पर अपने विचार साझा किए। इस दौरान जब उनसे महाकुंभ में गंगा स्नान से पापों के धुलने को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने दो टूक कहा कि सिर्फ डुबकी लगाने से कोई भी अपने पापों से मुक्त नहीं हो सकता।
गंगा स्नान से कौन से पाप धुलते हैं?
महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए उमड़ते हैं, लेकिन क्या वास्तव में इससे पाप धुल जाते हैं? इस पर जया किशोरी ने स्पष्ट करते हुए कहा, “जो गलतियां अनजाने में हो गई हैं, वे गंगा में स्नान से शुद्ध हो सकती हैं, लेकिन जो पाप सोची-समझी योजना के तहत किए गए हैं, वे गंगा मैया भी नहीं धो सकतीं।”
उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाता है, छल-कपट करता है, तो महाकुंभ में डुबकी लगाने से वह पाप खत्म नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि केवल बाहरी स्नान से आत्मशुद्धि संभव नहीं है, बल्कि मन और कर्मों की शुद्धि ही असली भक्ति है।
महाकुंभ हादसे पर जताई संवेदना
हाल ही में महाकुंभ में हुई दुर्घटनाओं पर भी जया किशोरी ने दुख जताया। उन्होंने कहा, “जिन लोगों ने इस हादसे में अपनों को खोया है, उनके दर्द को कम करना संभव नहीं है। लेकिन हमें उनके साथ खड़ा रहना चाहिए और ऐसी घटनाओं से सीख लेनी चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा कि महाकुंभ में इतनी बड़ी भीड़ को नियंत्रित रखना और अनुशासन बनाए रखना बेहद जरूरी है। जब करोड़ों लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं, तो सभी को मर्यादा और नियमों का पालन करना चाहिए, ताकि किसी भी अनहोनी से बचा जा सके।
क्या नास्तिक व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है?
इस चर्चा के दौरान उनसे यह भी सवाल किया गया कि क्या कोई नास्तिक व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है? इस पर जया किशोरी ने जवाब दिया कि “आध्यात्मिकता का अर्थ केवल ईश्वर में आस्था रखना नहीं है, बल्कि अपने कर्मों और जीवन की गहरी समझ रखना भी है।”
उन्होंने समझाया कि यदि कोई व्यक्ति अपने कर्मों को महत्व देता है, जीवन को समझता है और अच्छाई की राह पर चलता है, तो वह आध्यात्मिक हो सकता है। लेकिन अगर कोई खुद को ही सर्वोपरि मानता है और किसी भी शक्ति (चाहे वह ईश्वर हो, प्रकृति हो या ब्रह्मांड की ऊर्जा) को नहीं मानता, तो वह सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक नहीं हो सकता।
“सिर्फ पूजा-पाठ नहीं, अच्छे कर्म ही असली भक्ति”
जया किशोरी ने इस पूरे सेशन में कर्म को ही असली भक्ति बताया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ में स्नान करना तभी सार्थक है, जब इंसान अपने विचारों और कर्मों को भी शुद्ध करे।
उनका संदेश साफ था – “अगर आपके कर्म सही हैं, तो आपका जीवन भी सही दिशा में जाएगा। आध्यात्म का असली मतलब केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि अच्छे कर्म और सद्भावना से भरा जीवन जीना है।”