एक बार तो आईये अल्मोड़ा के मुण्डेश्वर महादेव मंदिर ​

बारहवी शताब्दी का बना है मुण्डेश्वर महादेव मंदिर गिरधर सिंह रौतेला  अल्मोड़ा। देवभूमि उत्तराखण्ड के प्राचीन नगर अल्मोडा के समीप दक्षिण-पूर्व दिशा में सुवाल और…

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बारहवी शताब्दी का बना है मुण्डेश्वर महादेव मंदिर

गिरधर सिंह रौतेला 

अल्मोड़ा। देवभूमि उत्तराखण्ड के प्राचीन नगर अल्मोडा के समीप दक्षिण-पूर्व दिशा में सुवाल और सुपई नदी के संगम स्थल पिठूनी और ठाडा-मठेना गाॅव के मध्य मुण्डेश्वर महादेव मंदिर समूह लगभग 12 वीं शताब्दी में निर्मित हैं। इन मंदिर समूहों का निर्माण कत्यूरी राजाओं ने करवाया था। लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि इन्हें कत्यूरी और चन्द शासकों ने बनवाया था। मुण्ंडेश्वर महादेव मंदिर में कुल 6 मंदिरों का समूह हैं। जिसमें दो मंदिर प्रमुख है। और इसमें विधि के अनुसार पूजा की जाती है। मुण्डेश्वर महादेव मंदिर समूह के सारे मंदिर समूह केदारनाथ और जागेश्वर धाम शैली में निर्मित है। यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए काफी प्रसिद्व है। बडे-बडे पत्थरों से निर्मित ये मंदिर बहुत भव्य एवम् सुन्दर है।

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मुण्डेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव पर अपार श्रद्धा, आस्था और विश्वास रखने वाले भक्तों का पवित्र धार्मिक केन्द्र हैं। यहाॅ भगवान शिव व माता पार्वती के साथ चार लघु देव कुलिकाए और सामने गज पर्वत पर माॅ मनसा देवी विराजमान है। इस पावन स्थली में हर वर्ष श्रावण मास में पूरे महीने श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है। विभिन्न क्षेत्रों से यहाॅ आकर भक्त भगवान शंकर का रूद्राभिषेक करते है। यहाॅ रूद्राभिषेक के अलावा, पार्थिव पूजन, जप, कालसर्प योग की पूजा, महामृत्युंजय जाप, शिव पुराण, अखण्ड रामायण, कथा वाचन आदि पूरे श्रावण माह में चलता रहता है। मान्यताओं के अनुसार महामृत्युंजय जप आदि करने से मृत्यु तुल्य कष्ट भी टल जाते है।
मुण्डेश्वर महादेव मंदिर की हरी-भरी घाटी में कल-कल, कलरव करती, निर्मल-निश्चल बहती सुपई और सुवाल दो नदियों का मिलन इसी पवित्र स्थल के आॅगन में होता हैं। सुवाल नदी के उस पार सामने की पहाडी जिसे गजा धार या गज पर्वत भी कहते हैं। जब आप मंदिर के आॅगन से सामने की ओर निहारेंगे तो आपको सामने विशालकाय हाथी की आकृति नजर आती है। इस गज पर्वत के साथ पाण्डवों और महाभारत काल की कई किवदंतियाॅ जुड़ी है।

 

जनश्रुति है कि इस गज पर्वत के निचले भाग में नदी तट से लगती हुई एक गुफा थी। जिसमें माॅ मनसा देवी का वास माना जाता था। कालान्तर में बहुत सी गुफाओं का अस्तित्व भूगर्विक हलचल से समाप्त हो चुका है। बताया जाता है कि उसी प्रकार ये गुफा भी नही रही, लेकिन इस गुफा के द्वार पर ही माॅ मनसा देवी की स्थापना की गई है।
मान्यता यह भी है कि इस बन्द गुफा के निचले भाग से जो अविरल जल धारा जागेश्वर धाम के पवित्र जटा गंगा से निकलकर यहाॅ माॅ मनसा देवी के तालाब में मिलती हेै। यह विश्वास आज तक भी कायम है कि इस पवित्र जल धारा में स्नान कर लेने से त्वचा से सम्बंधित सभी रोग समाप्त हो जाते है। माघ माह में मकर संक्रान्ति से लेकर महाशिवरात्री तक बहुत भक्त इस पवित्र तालाब में स्नान करने आते है।
दो नदियों के सुरम्य संगम तट पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ माॅ मनसा देबी की यह पावन स्थली मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित हैं। इस मंदिर में क्षेत्र के लोगों की अपार श्रद्धा और आस्था है। क्षेत्रवासी भगवान शिव से सम्बंधित दो मुख्य महापर्व यहाॅ बडे धूम-धाम से मनाते है। फाल्गुन माह में महाशिवरात्री मेला और श्रावण माह में श्रावणी पर्व।

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यह ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक एवम् धार्मिक स्थल जहाॅ एक ओर अटूट भक्ति, असीम आस्था और श्रृद्धा का पवित्र केन्द्र है तो वही दूसरी ओर इसकी प्राकृतिक सुन्दरता मन मोह लेती है। ऊॅची-नीची पहाडियों से घिरी ये हरी-भरी घाटी, पहाडियों के तलहटी पर सीढी नुमा खेत और पहाडियों में बाॅज, बुराॅस, काफल और चीड़ के जंगल हिसालु, किलमोडी और कई बहुपयोगी औषधीय पादप दो नदियों के संगम तट पर बसे इस धाम की सौन्दर्यता बरबस ही अपनी ओर खीचती है।

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कैसे पहुचें यहाॅ

वैसे यह धार्मिक स्थल अभी सडक मार्ग ( सडक निर्माण कार्य प्रगति पर ) से पूर्ण रूप से नही जुडा है। पंतनगर एयरपोर्ट यहाॅ का नजदीकी हवाई अडडा है। जो यहाॅ से लगभग 125 किलोमीटर दूर है।
काठगोदाम यहाॅ का निकटतम रेलवे स्टेशन है जो यहाॅ से लगभग 105 किलोमीटर है। काठगोदाम से प्राइवेट बस और उत्तराखण्ड सरकार की बसें अल्मोंडा, पिथौरागढ और बागेश्वर के लिए बराबर चलती रहती है। आप चाहें तो टैक्सी भी कर सकते है। जो बुकिंग एवम डेली सेवा के लिए हमेशा उपलब्ध रहती है।
सडक मार्ग होते हुए आप अल्मोडा जिला मुख्यालय पहुच सकते है। अल्मोडा नगर से यहाॅ पहुचने के लिए आप टैक्सी ले सकते है, जो आपको उदय शंकर नाट्य अकादमी के पास से टाटिक-बिरौडा-पिठौनी मोटर मार्ग से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी में उक्त स्थल तक पहुचायेगा।