सतत प्रबंधन के अभाव में बिगड़ रही है पारिस्थिकी, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता कहा सतत प्रबंध ही है वनों से हमारा प्राकृतिक सम्बंध

Ecology is deteriorating due to lack of sustainable management, scientists have expressed concern that sustainable management is our natural relationship with forests

gb pant in
bal diwas

अल्मोड़ा। ‘वनों से हमारा मूल प्राकृतिक सम्बंध सतत् प्रबंधन है और इसके बगैर हम वनों को नहीं बचा सकते। वनों का सतत् प्रबंधन नितांत आवश्यक है और वनों से जुड़ी हमारी हर गतिविधियों में इसे सम्मिलित करना होगा।’

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यह बात गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थान कोसी कटारमल के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ सतीश आर्या ने यहां वन विभाग की एक कार्यशाला के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि अपार संभावनाओं वाले हमारे वन हमें विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान कर रहे है। हमें इस धरोहर को बचाना के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि काष्ठ उपज के साथ गैर काष्ठ उपज के रूप में वनों से हमें बड़ी मात्रा में संसाधन मिलते हैं लेकिन मानव उनका दोहन कर देता है, जिसे रोकने की आवश्यकता है।

वन अनुसंधान, संस्थान देहरादून द्वारा औषधीय पौधों सहित अकाष्ठ वन उपज के सत्त प्रबंधन पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन अवसर पर बड़ी संख्या में सरपंच, वन कर्मी और गैर सरकारी संस्थानों के प्रतिनिधियों को वनों के सतत् प्रबंधन के गुर सिखाए गए।

डाॅ आर्या ने बताया कि संस्थान द्वारा किस प्रकार वनों के सतत् प्रबंधन के तहत चीड़ पत्ती का प्रबंधन कर उससे कागज, बैग, फाईल कवर आदि के साथ आभूषण तैयार किए गए है। उन्होंने जैविक ईंधन के उपयोग और बनाने के तौर तरीकों के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि वन हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं तथा दैनिक जीवन की अनेक आवश्यकताओं जैसे की लकड़ी, चारा, ईधन, औषधी आदि की पूर्ति करते हैं। वनों द्वारा प्रदत्त उपज में अकाष्ठ वन उपज मुख्य रूप से हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। वनों से लगातार लकड़ी, चारा, ईधन तथा औषधीय पादपों से लेने के कारण वनों पर भारी दबाव पड़ता है तथा केवल वन क्षेत्रों से हमारी जरूरतें पूरी नहीं हो सकती। साथ ही लगातार दोहन के कारण कुछ वन प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है तथा इनके सत्त प्रबंधन की आवश्यकता है।

उन्होंने बताया कि किसी प्रकार सतत् प्रबंधन के अभाव में वनों की पारिस्थितिकी बिगड़ रही है और वन्य जीवों से मानव का संघर्ष बढ़ रहा है। अल्मोड़ा वन प्रभाग के वन कर्मी, किसान, गैर सरकारी संगठनों, वन पंचायतों तथा स्वयं सहायता समूहों के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए वन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा अकाष्ठ वन उपज, औषधीय पौधों के उपयोग तथा उनके सत्त प्रबंधन स्वयं संरक्षण पर तकनीकी जानकारी प्रदान की जा रही है। प्रशिक्षण में वन प्रमंडल अधिकारी अल्मोडा कुन्दन कुमार ने भी शिरकत की तथा वनोपज तथा औषधीय पौधों के बारे में बताया।

देहरादून से आये हुए वैज्ञानिको ने औषधीय पौधों तथा वन उपज से संबंधित अनेक तरह की जानकारी प्रशिक्षणार्थियों को प्रदान की। डाॅ0 ए0 के0 पाण्डे, प्रभाग प्रमुख विस्तार प्रभाग वन अनुसंधान देहरादून ने औषधीय पौधों तथा अकाष्ठ वन उपज के बारे में विस्तार से बताया। प्रशिक्षण विषय वस्तु पर डाॅ0 मोहम्मद युसूफ, डाॅ0 चरन सिंह, डाॅ0 देवेन्द्र कुमार, शैलेष पांडे ने भी विस्तार से तकनीकी जानकारी प्रदान की। इस अवसर पर विजयकुमार तथा श्री यथार्थ ने प्रशिक्षण के प्रबंधन संबंधी कार्यो में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कार्यशाला आज 15 नवम्बर को संपन्न होगी।

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