disaster in uttarakhand- कभी नही भूलने वाले वह 3 दिन, एक यात्रा वृतान्त- 2

रश्मि सेलवाल 19.10. 2021(दूसरा दिन) disaster in uttarakhand – सुबह पता चला कि हमारे आगे ही एक अल्टो मलबे से दब गयी जिसमे दो भाई…

disaster in uttarakhand—Those 3 days never to be forgotten, a travelogue - 2

रश्मि सेलवाल

19.10. 2021(दूसरा दिन)


disaster in uttarakhand

सुबह पता चला कि हमारे आगे ही एक अल्टो मलबे से दब गयी जिसमे दो भाई – बहन भी थे। ये सुनकर मन कितना पसीज़ गया था। ये शायद ही बयां हो पाए। इस वक्त मन मे बहुत सारे नकारात्मक ख़्याल आने लगे थे।बारिश थमने का नाम नही ले रही थी, और इसी बीच सुनने मे आया कि रामगढ़ वाले रास्ते पर भी बादल फट गया है, और रास्ता खुलना मुश्किल है,अब तो इस रास्ते जाने की ये बची खुची उम्मीद भी खत्म हो चुकी थी।

इस वक़्त गमगीन माहौल था। हर किसी की आँखों मे डर और घर जाने की उम्मीद थी। पर अफसोस बारिश लगातार अपना कहर ढाए जा रही थी। और हम अब भी उसी बस मे थे। यकींन मानिए इस वक़्त कैची धाम के नाम पर चलने वाले इस मंदिर को देख निराशा की सिवाय और कुछ नही था। ऐसा लग रहा था जैसे हमारी आस्था पर सीधे वार किया गया है।

disaster in uttarakhand

क्या यही वो मंदिर है जिसपर लोग 15 जून को बेसुध होकर लाइन मे लगते है,ताकि एक बार दर्शन हो सके? क्या यही वो मंदिर है जिसकी विदेशो मे भी अपनी अलग पहचान है?जिसके लिए ना जाने कहाँ-कहाँ से भक्त दान- दक्षिणा देने आते है ?


मंदिर परिसर की ओर से १२ बजे के आस – पास हमे पूड़ी-आलू और चाय जरूर मिले,इस बात की मुझे खुशी है।कम से कम कुछ कहने को तो है,कि धर्म के नाम पर चलने वाले इतने विशाल मंदिर से कुछ तो मिला।

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खैर इसी बीच बारिश थोड़ी कम हुई तो बस मे बैठे कुछ लोगो ने पैदल जाने का सुझाव दिया। क्यों कि इस जगह पर ना कोई पुलिस थी,ना ही हमे दिलासा ही देने वाली जेसीबी मशीन ही। इमरजेंसी नंबर पर कॉल करने पर पता चला जेसीबी काम कर रही है,पर वो कहाँ काम कर रही थी ,ये हमे पता नही था। आप मे से बहुत सारे लोगो के मन मे ये आ रहा होगा कि जब हाई- अलर्ट था ,तो निकलना ही क्यों था। हाँ पर क्या हाई- अलर्ट सिर्फ न्यूज़ चैनल पर ही होना था,या फिर ग्राउंड लेवल पर भी इस पर काम होना था ???? अगर गाड़ियां चलनी बंद हो जाती तो क्या 900 के करीब लोग इस तरह रास्ते पर फंसते?

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इस वक्त हम सभी ऐसा महसूस कर रहे थे,जैसे हम अनाथ है,किसी को हमारी सुध नही। होती तो शायद हेलिकॉप्टर से रेसक्यू करना भी कोई बड़ी बात नही थी। और इतनी चीजो के बीच हम सभी टूट गए थे,और इसीलिए हम मे से कई सारे लोग पैदल जाने को राज़ी भी हो गए। पर जैसे ही हम निकले बारिश तेज हो गयी। .. करीब ऐसे ही हम ३०० मीटर आगे चले ही होंगे कि आगे से आते कुछ लोगो ने हमे जोर से डाँटा और कहा – इतनी बारिश मे क हां जा रहे हो? आगे हालत बहुत बुरे हैं,लगातार पत्थर गिर रहे है, जान बचानी है तो जहां हो वही रहो । हम प्रकृति का कहर देख कर आए है।

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ये सुनकर हमारी हिम्मत भी जवाब दे गयी, और बारिश से लथपथ हम वापस बस मे आ गए। और इसी इंतज़ार मे कि बारिश रुके, और हम यहाँ से निकले शाम हो गयी। करीब 6.30 बजे बारिश कुछ कम हुई और हम मंदिर के पास (जहाँ सुबह आलू पूडी मिले थे) पूछने गए कि रात का खाना मिलेगा,तो जवाब मिला नही। हम आकर बस में बैठ गए। 1-2 घण्टे बाद कैची धाम के बड़े से गेट के पास दाल- चावल मिला। पूछने पर पता चला की कुछ बड़े पैसों वाले लोग है, जिन्होंने ये बंदोबस्त किया। मन खुश था पर एक सवाल मन को कुरेदे जा रहा था – क्या इतने बड़े मंदिर परिसर के पास हम सब के खाने का इंतजाम करना कोई बड़ी बात थी ?

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क्या इतने बड़े मंदिर परिसर के पास हम फँसे लोगो के लिए एक छत नही बची थी ??? क्या इतने बड़े मंदिर परिसर के पास हमे बिठाने भर तक की जमीन नही बची थी। ? क्या मंदिर परिसर के इंवरर्टर मे इतनी बिजली नही थी कि हमारे ठप पड़े फोन को चार्ज कर सके( अनुरोध करने के बावजूद) ??? क्या आपको लगता है कि अगर नीम करौली बाबा होते तो ये सब करते ? नीम करौली बाबा को सहारा बना चलने वाले इस मंदिर से जरूरत के समय मदद की उम्मीद करना क्या गलत है????

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ऐसे कई सारे सवाल मन को झकझोर रहे थे ,पर राहत की बात ये थी कि रात को बारिश थम चुकी थी। आसमान मे तारे दिखने लगे थे, जो कि सूचक था मौसम के खुलने का। इस उम्मीद मे कि कल घर जाएंगे ये रात कुछ बेहतर कटी। अब बस इंतज़ार था तो कल सुबह का।

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आगे जारी…….

यह आपबीती तीसरे और अंतिम भाग में समाप्त होगी। कृपया तीसरे भाग का इंतजार करें।

लेखिका रश्मि सेलवाल बागेश्वर महाविद्यालय में अध्यापन करती है साथ ही रेडियो इनाउंसर भी हैं।