धारचूला विधान सभा में आई केदारनाथ के बाद दूसरी बड़ी आपदा- हरीश रावत

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धारचूला विधानसभा के आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने जताई चिंता

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पिथौरागढ़, 13 अगस्त 2020- पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत वे कहा कि धारचूला विस क्षेत्र में केदारनाथ के बाद दूसरी बड़ी आपदा आई है.

उन्होंने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में सैकड़ों गांवों के पुनर्वास की जरूरत है|

इसके लिए राज्य सरकार को योजना तैयार करनी चाहिए और एक टीम बनाकर उसमें विभिन्न विषय विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए। अन्यथा इन गांवों को भी देरसबेर प्राकृतिक आपदा का खतरा झेलना पड़ेगा।

बुधवार को पिथौरागढ. में एक प्रेसवार्ता में कांग्रेस के राट्रीय महासचिव और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि आपदा के मानक भी पुराने पड़ गए हैं, जिनमें बदलाव की जरूरत है।
हरीश रावत पिछले दो दिन जिले के आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद बुधवार को जिला मुख्यालय पहुंचे।

तिलढुकरी स्थित कांग्रेस कार्यालय में पत्रकार वार्ता में हरीश रावत ने कहा कि मुनस्यारी में धापा से लेकर धारचूला में पांगला तक ऐसी बर्बादी है जिसने दिल दहला दिया। खतरनाक रास्तों और काफी थकान के बीच वह इन इलाकों में गए जिसके बाद उनको रात में नींद नहीं आई। पूर्व मुख्यमंत्री ने ने कहा कि केदारनाथ के बाद यह दूसरी आपदा है, जिससे राज्य को शिक्षा लेने की जरूरत है। वह सार्वजनिक जीवन के लोगों से अपील करते हैं कि उन्हें मुनस्यारी, बंगापानी और धारचूला तहसील के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जाना चाहिए, ताकि उन्हें जमीनी हालातों का अंदाजा हो सके। रावत ने कहा कि वह पहले भी इन इलाकों में जाते रहे हैं, उन्होंने वहां बच्चों को क्रिकेट खेलते भी देखा है, लेकिन अब पूरा इलाका बर्बाद हो गया है। ऐसा लगता है कि प्रकृति ने यह जानबूझकर किया है।


उन्होंने कहा कि धापा, मोरी व लुम्ती जैसे अनेक गांवों को पुननिर्माण नहीं किया जा सकता, बल्कि इन गांवों को दूसरी सुरक्षित जगह बसा देना चाहिए। रावत ने बताया कि उन्होंने मंगलवार को उत्तराखंड के मुख्य सचिव से बात कर कहा कि एक तो मुख्यमंत्री सहित कुछ उच्च अधिकारियांे को आपदा ग्रस्त क्षेत्र में आने की जरूरत है, दूसरा क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की एक मीटिंग बुलाने की जरूरत है। उसमें भूवैज्ञानिक, पर्यावरण संबंधी व अन्य विशेाज्ञों को भी शामिल किया जाए। रावत ने कहा कि राज्य सरकार को इस उच्च हिमालयी क्षेत्र के पुनर्वास के लिए ठोस प्लान तैयार करना चाहिए। विभिन्न मामलों के र्शीा एक्सपर्ट को इसमें शामिल किया जाए। उन्होंने कहा प्रदेश के यदि कुछ गांवों को छोड़ भी दिया जाए तो लगभग 343 गांव ऐसे हैं, जिनमंे आपदा का खतरा एकदम झांक रहा है। ऐसी ही स्थिति धारचूला के ग्वाल गांव की भी है। उन्होंने कहा कि वन्य क्षेत्र के नुकसान के बिना सरकार इन गांवों को सुरक्षित जगह पर पुनर्वासित करे। दूसरा कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।
इस अवसर पर राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा, धारचूला विधायक हरीश धामी, पूर्व सांसद महेंद्र सिंह माहरा, पूर्व विधायक मयूख महर,, कांग्रेस के मुख्य प्रदेश प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी, जिलाध्यक्ष त्रिलोक सिंह महर, पूर्व जिलाध्यक्ष मुकेश पंत, पूर्व नगर पालिकाध्यक्ष जगत सिंह खाती, युंका जिलाध्यक्ष ऋांेद्र महर, कांग्रेस के वरिठ नेता प्रदीप पाल, रेवती जोशी, मनोज ओझा, र्पााद पवन माहरा, दीपक तिवारी आदि मौजूद थे।

आपदा के मानक बदलने की जरूरत

पिथौरागढ़। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि आपदा के मानक चार साल पहले उनकी सरकार के समय बने थे, जो अब पुराने पड़ गए हैं। उनको बदलने की जरूरत है। आपदाग्रस्त क्षेत्रों में जो सहायता अब तक मिली है वह मृतकों तक सीमित है। इसके अलावा कुछ अहेतुक राशि दी गई है। हरीश रावत ने कहा कि आपदा राहत शिविरों की जगह राहत कैंप बनाए जाएं और उनमें लंबे समय तक पीड़ितों के लिए तमाम व्यवस्थाएं की जाएं।

कोरोना और आपदा जन्य परिस्थितियों का लाभ नहीं उठाने देंगे

पिथौरागढ़। हरीश रावत ने भाजपा तथा राज्य सरकार पर भी निशाना साधा। कहा कि कुछ लोग कोरोना जन्य और आपदा जन्य परिस्थितियों का राजनीतिक लाभ उठाना चाह रहे हैं, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे। कहा कि आपदा प्रभावितों को लेकर जिला कुछ कदम उठा भी रहा है, लेकिन मुखिया के सही दिशा-निर्देशन के अभाव में वह ठीक से फलीभूत नहीं हो पा रहे हैं। उन्होंने आपदा प्रभावित इलाकों में मुख्यमंत्री के न आने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना की हंडिया का पता नहीं

पिथौरागढ़। पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि वह राज्य के बेरोजगार दोस्तों के लिए उपवास करेंगे। हमने प्राविधिक शिक्षा बोर्ड, मेडिकल बोर्ड बनाया, मगर आज किसी का कुछ काम नहीं हो रहा है। तीन साल से पब्लिक सर्विस कमीशन केवल भजन-कीर्तन कर रहा है। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग भी कुछ नहीं कर रहा है। हरीश रावत ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना पर तंज कसते हुए कहा कि इस योजना की हंडिया कहां रखी है इसका पता नहीं। बीरबल की खिचड़ी की तरह यह जमीन पर तो नहीं है। फौरी रोजगार सृजन भी कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। केवल मनरेगा को छोड़ दें तो कहीं काम नहीं दिखता। रावत ने कहा कि रोजगार राज्य की प्राथमिकता नहीं रह गया है।

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