दशकों बाद भी नहीं लग सके उद्योग, वीरान पडी औद्यौगिक घाटी

परवान नहीं चढ़ सकी उद्योग स्थापित करने की योजना मयंक मैनाली रामनगर । अंग्रेज कमिश्नर रैमजे का बसाया शहर रामनगर कभी हल्द्वानी से भी बड़ी…

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परवान नहीं चढ़ सकी उद्योग स्थापित करने की योजना

मयंक मैनाली


रामनगर अंग्रेज कमिश्नर रैमजे का बसाया शहर रामनगर कभी हल्द्वानी से भी बड़ी मंडी हुआ करता था। व्यापार, अनाज और लकडी के कारोबार के लिए प्रसिद्व इस शहर के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे। लेकिन सरकारी काहिली के चलते रामनगर एक पिछडे हुए शहर में तब्दील हो गया। शहर और उसके आस-पास के क्षेत्र में बने इंड्रस्ट्रियल एरिया आज बदहाली की कहानी बयां कर रहे हैं। अगर सरकारें संजीदा होती तो रामनगर में घोषित लगभग आठ इंड्रस्ट्रियल एरियों में कल कारखानों की खटपट की आवाज सुनाई देती और स्थानीय क्षेत्र सहित आस-पास के इलाकों के पलायन कर रहे बेरोजगारों के चेहरे पर दो जून की रोटी हासिल करने की मुस्कान दिखाई देती।

तकरीबन हजार हैक्टेयर से अधिक भूमि पडी वीरान


रामनगर । रामनगर और निकटवर्ती क्षेत्रों में कुल आठ स्थानों को इंड्रस्ट्रियल एरिया के रूप में चिन्हित किया गया। जिनमें रामनगर के अल्मोड़ा जिले से लगते मोहान, कानिया, छोई, चिल्किया, हल्दुआ और काशीपुर रोड पर हेमपुर डिपों के निकट सहित मरचूला के कूपी में  औद्यौगिक क्षेत्र विकसित किए जाने थे। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज इतने वर्षों भी लगभग एक हजार हैक्टेयर से भी अधिक भूमि वीरान पडी हुई है। गौरतलब है कि वर्ष 1973-74 में केंद्र सरकार के द्वारा रामनगर के अल्मोडा जिले से लगती सीमा पर मोहान में सरकार ने लगभग 86 एकड भूमि पर उद्योगों को स्वीकृति प्रदान की थी। जिसमें केंद्र सरकार की आईएमपीसीएल दवा फैक्ट्री सहित तकरीबन 150 के लगभग छोटे-बडे उद्योगों को विकसित करने की योजना बनाई गई थी।  लेकिन यहां उद्योग लगाने वाले उद्यमी बताते हैं कि सागौन के वृक्षों से घिरे इस इलाके में पेड काटने की अनुमति नहीं मिल पाने से अधिकांश उद्योग पलायन कर गए। वहीं उद्यमियों को वायदे के अनुरूप कोई सुविधाएं भी प्रदान नहीं की गई। अब यहां स्थापित केंद्र सरकार की राज्य की सबसे बडी दवा फैक्ट्री आईएमपीसीएल को भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली गई है। मोहान की तरह ही रामनगर- हल्द्वानी मार्ग पर रामनगर से तकरीबन चार किमी दूर छोई में स्थित लगभग 80 हैक्टेयर भूमि पर सरकार ने उद्योग विकसित करने की योजना बनाई थी। जिसका प्रस्ताव भी भेजा गया था। लेकिन राजनैतिक उठापठकों के बीच इस स्थान पर बाद में शहतूत का फार्म विकसित करने की योजना बनाई गई। अंतत यह भूमि उद्यान विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया। सूबे की पर्यटन मंत्री और रामनगर विधायक रहीं अमृता रावत ने ट्यूलिप गार्डन विकसित करने की बात कही। जिसके बाद उद्योगों का प्रस्ताव ही ठंडे बस्ते में चला गया । रामनगर में उद्योगों को स्थापित करने को लेकर सरकारी काहिली की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। इसकी बानगी रामनगर के कानिया स्थित इंड्रस्ट्रियल एरिया बयां करता नजर आता है।अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहते रामनगर में पर्वतीय विकास योजना के तहत यहां वर्ष 1989-90 में कानिया गांव में पांच एकड के लगभग खाली भूमि पर सीएम एनडी तिवारी ने इंड्रस्ट्रियल एरिया स्थापित करने की घोषणा की। जिसे वर्ष 1990 में पूरी तरह तैयार कर लिया गया। तिवारी सरकार ने इसमें उद्योगों को 20 ब्लाक में स्थापित करने की योजना तैयार की थी। सरकार इसे मिनी इंड्रस्ट्रियल योजना के तहत विकसित करना चाहती थी। इसके पीछे मंशा कानिया में भारत सरकार के श्रम और लघु उद्योग द्वारा संचालित संस्थान ईएसटीसी के छात्रों को प्रशिक्षण,रोजगार और स्थानीय कामगारों के समक्ष रोजगार के साधन मुहैया करवाना था। यहां उद्योग स्थापित करने के लिए दिल्ली से भी उद्यमियों को आमंत्रित किया गया। प्रारंभिक तौर पर इसमें कुल चार उद्योग लगे, जिनमें सीआरटी, पैंगव्यू, फाइनट्रैक्स, विबग्योर प्रिंटर्स प्रमुख थे। तत्कालीन सरकारों के प्रयासों से कानिया के इस इंड्रस्ट्रियल एरिया मेें कुछ प्लाईबोर्ड और इलैक्ट्रिकल से जुडी कंपनियों ने भी रूख किया। इस बीच सरकार ने यहां उद्योग स्थापित करने वाले उद्यमियों को बिजली, पानी, सडक जैसी मूलभूत सुविधाओं के साथ ही सब्सिडी और 90 साल की लीज देने की बात कहते हुए बाद में उद्योगों की भूमि उद्यमियों को ही उपलब्ध करवाने की बात भी कही। लेकिन सरकार के वायदे महज सरकारी घोषणाओं और फाइलों में ही सिमट गए। इसी तरह सरकार ने अविभाजित उत्तरप्रदेश का हिस्सा रहते दशकों पूर्व रामनगर के चिल्किया और हल्दुआ में भी औद्यौगिक क्षेत्र विकसित करने का प्रस्ताव बनाया था। लेकिन इन क्षेत्रों में भी एक दो लघु उद्योगों प्लाईबोर्ड और इलैक्ट्रोनिक क्षेत्र की लघु कंपनियों के लगने के अलावा विकास की गति उद्योग नहीं पकड सके। इतने औद्यौगिक क्षेत्रों की असफलता के बाद भी सरकार ने रामनगर- काशीपुर मार्ग पर हेमपुर डिपों के निकट वर्ष 1987 में उत्तरप्रदेश के समय में हेमपुर डिपो में 803 एकड भूमि यूएसआईडीसी को पेपर फैक्ट्री लगाने के लिए दी गई थी। लेकिन इस पर पेपर उद्योग का कारोबार शुरू नहीं हुआ। नेपा को दी गई यह भूमि बाद में उत्तराखंड के सीएम रहते विजय बहुगुणा ने भारी जनदवाब के बाद केंद्र सरकार से वापस मांगने की गुहार लगाई। जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार को यह भी लिखा कि यह भूमि राज्य में कृषि भूमि के तौर पर दर्ज है। लेकिन इस भूमि का न तो कोई उपयोग हुआ और न ही इस भूमि का लैंड युज बदला गया। सरकारी घोषणाओं में हवाई साबित होते रामनगर के औद्यौगिक क्षेत्रों में एक नया मील का पत्थर पिछली सरकार के वक्त उस समय और जुड गया, जब सीएम के औद्यौगिक सलाहकार रहते रणजीत सिंह रावत ने रामनगर केे मोहान से कुछ ही दूरी पर वर्ष 2015 में मरचूला के कूपी नामक स्थान पर पीतल उद्योग लगाने की घोषणा करते हुए इसका शिलान्यास भी करवा दिया। लेकिन सरकार बदलने के साथ ही यह क्षेत्र भी अब बीते दो वर्षों से शिलान्यास से औद्यौगिक क्षेत्र में तब्दील होने की राह देख रहा है। रामनगर के कुमाऊं और गढवाल का प्रवेश द्वार होने के साथ ही मैदानी क्षेत्रों से जुडाव होने के चलते यह एक बडा औद्यौगिक क्षेत्र बन सकता था। यह स्थान पर्यटन के साथ ही मसाले, लकडियों, अगरबत्ती, तंबाकू उद्योग, प्लाईबोर्ड, औद्यौनिकी, फूड प्रोसेसिंग के कच्चे माल की उपलब्धता से प्रचुर क्षेत्र है। ऐसे में यहां इस तरह के उद्योग विकसित किए जा सकते थे। लेकिन यहां स्थापित जिन औद्यौगिक क्षेत्रों में उद्यमी आए भी तो यहां उद्योग लगाने वाले उन कारोबारियों को न तो बिजली,पानी जैसी मूलभूत सुविधा मिल सकी और न ही उत्पादन और विपणन में कोई राहत। नतीजतन यहां उद्योग स्थापित करने वाले उद्यमी पलायन करने लगे। उत्तराखंड राज्य गठन के साथ ही एक बार फिर से लगा कि शायद अब अपने राज्य में स्थापित इंड्रस्ट्रियल एरिया के दिन शायद अब बहुर जाएंगे। लेकिन नीति नियंताओं की निगाह फिर भी रामनगर के घोषित इंड्रस्ट्रियल एरियों पर नहीं पड सकी।  इस बीच यहां उद्योगों को स्थापित करने वाले अविभाजित यूपी के सीएम तिवारी उत्तराखंड के भी सीएम बने । खास बात यह है कि उत्तराखंड के सीएम रहते तिवारी रामनगर विधानसभा से ही विधायक भी रहे। लेकिन उनके कार्यकाल में भी रामनगर की इस औद्यौगिक घाटी को कोई संजीवनी नहीं मिल सकी । वर्तमान में यहां  इलैक्ट्रिक कंपोनैंट (उपकरण) बनाने वाली और प्लाईबोर्ड और मसाले जैसे कुटीर उद्योगों से जुडी कुछ ही कंपनी मौजूद है। जिसकी स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। कंपनी संचालकों का कहना है कि सरकारी उपेक्षाओं से खिन्न होकर उन्होंनें अपने प्रयासों से मूलभूत संसाधन यहां स्थापित किए है। करोडों की बेशकीमती सरकारी जमीन पर कुछ पुराने उद्योगों के लगभग उखडने के कगार पर खडे साइनबोर्ड अब सरकार के इस प्रस्तावित औद्यौगिक क्षेत्र को मुंह चिढाते नजर आते हैं।


इंड्रस्ट्रियल एरिया बन सकता था नजीर 

रामनगर रामनगर शहर रेल, सडक सभी मार्गों से जहां राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से जुडा हुआ है,वहीं इसकी कनैक्टिबिटी पर्वतीय क्षेत्रों सहित अ्रन्य मार्गों से भी बेहतर तरीके से जुडी हुई है।  इसके अतिरिक्त यहां भारत सरकार का प्रशिक्षण संस्थान ईएसटीसी, राज्य सरकार का आईटीआई, पाॅलीटैक्निक आदि संस्थान संचालित है। जिससे यहां प्रशिक्षित कामगारों की भी कमी नहीं है। बेरोजगारी और काम की तलाश में पलायन का दंश झेलते रामनगर में कामगारों का भी संकट नहीं है, ऐसे में यह क्षेत्र एक बेहतर इंड्रस्ट्रियल जोन के तौर पर विकसित हो सकता है ।