पहाड़ी वुडकार्विंग को जिंदा रखे हुए है दर्शन लालखोली का गणेश, रोटाने के ठप्पे से लेकर ब्योली की डोली करते हैं तैयार‘

खोली का गणेश‘ के बारे में भला अब नई पीढ़ी कितना जानती है, कह नहीं सकता, क्योंकि अब पहाड़ों में भी सीमेंट के मकान बन…

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खोली का गणेश‘ के बारे में भला अब नई पीढ़ी कितना जानती है, कह नहीं सकता, क्योंकि अब पहाड़ों में भी सीमेंट के मकान बन रहे हैं। लेकिन एक वक्त था कि पूरे गांव में शायद ही कोई घर हो, जहां खोली का गणेश न हो। शहतीर, नीमदरी या तिबारी में खोली का गणेश यानी घर का रक्षक। मां पार्वती का लाड़ला रक्षक। मान्यता है कि जिस घर में खोली का गणेश होता है तो उसकी रक्षा पूरा शिव परिवार करता है। पहाड़ की इसी गौरवशाली परम्परा को संरक्षित और संवर्द्धित करने में जुटे हैं दर्शन लाल।

सीमांत चमोली जिले के बैनुली-दुग्तोली निवासी वुड कार्बर यानी लकड़ी पर नक्काशी करने वाले 48 वर्षीय दर्शन लाल से मेरी मुलाकात सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल में आयोजित लोक विरासत में हुई। दर्शन के हाथों में जादू है। उनकी बनाई कलाकृतियां सजीव लगती है। त्यूण की लकड़ी से उन्होंने रोटाना के ठप्पे से लेकर चाकुला, पीढ़े, दुल्हन डोली, शिव मूर्ति, लाट-निसुड़ा और छोटा सा हल बनाया हुआ था। उनके स्टॉल पर में कला के कद्रदान खूब आए। दर्शन के अनुसार दो दिन में लगभग 15 हजार रुपये की सेल हुई और लगभग दो लाख रुपये के आर्डर मिले हैं।

बदरीनाथ मंदिर में भी दर्शन के पूर्वजों ने की थी लकड़ी की नक्काशीदर्शन लाल को यह कला अपने दादा धंतो मिस्त्री और पिता गजपाल मिस्त्री से विरासत में मिली। 15 साल की उम्र में दर्शन ने लकड़ी की नक्काशी की बारीकियां सीख ली। उनके हाथ में हुनर और कला के प्रति समर्पण है। यही कारण है कि उन्हें राज्य सरकार और केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय द्वारा आयोजित समर्थ और डिजाइनिंग प्रशिक्षण शिविरों में मास्टर ट्रेनर बनाया गया है।

दर्शन अपनी कला का श्रेय भगवान बदरीनाथ को देते हैं। दर्शन लाल गर्व से कहते हैं कि मेरे पूर्वजों ने बदरीनाथ मंदिर पर नक्काशी की है। उनकी कला के लिए उन्हें डिस्ट्रिक और स्टेट अवार्ड भी मिल चुके हैं। जब मैंने पूछा कि क्या इस कला में कमाई हो जाती है। तो दर्शन कहते हैं, बिल्कुल। मेरा घर तो इसी कला से चला। मेरे एक बेटा और दो बेटी हैं। बेटे अभी स्कूल में पढ़ रहा है, उसे भी यह कला सिखाउंगा। दर्शन को शिकायत है कि उसके काम को सरकार का प्रोत्साहन नहीं मिलता। हालांकि डीआईसी चमोली उसकी मदद करते हैं। वह मानता है कि पहाड़ की इस कला को समृद्ध करने की जरूरत है। सरकार ध्यान दे तो युवाओं को रोजगार मिल जाए। जब मैंने पूछा, पीएम विश्वकर्मा योजना में रजिस्ट्रेशन करवाया है तो उन्होंने कहा, चमोली में यह पोर्टल खुलता ही नहीं। विडम्बना है कि वुड कार्बर को आज तक किसी ने भी नोटिस नहीं किया।

उनका कहना है कि यदि प्रोत्साहन मिले तो इस कला के माध्यम से पहाड़ की गौरवशाली परम्परा और धरोहर को जिंदा रखा जा सकता है। उनके अनुसार अपने ही खेत में अपना पेड़ काटने के लिए वन विभाग से अनुमति चाहिए, लेकिन जंगल के जंगल साफ हो रहे हैं और किसी को कोई खबर नहीं लग रही है। ऐसे में लकड़ी दिनों-दिन महंगी हो रही है। ऐसे में भला लकड़ी पर नक्काशी करवाएगा कौन?