ग़ज़ल
कटेगी यूं जिंदगी अपनी सोचा न था कभी ।
बच्चे भी देंगे नसीहतें सोचा न था कभी ।
कितने पास हैं हम फिर भी दूर कितने ,
ये रिश्ते हैं मजबूर कितने सोचा न था कभी ।
जो न आये घर कभी अब वे घर पे हैं , सूना आंगन यूं बाग बाग सोचा न था कभी ।
मिलाने आंख सूरज से मैं चला था ,
होगी दिन में रात सोचा न था कभी ।
थम गई जो जिंदगी होगी फिर आबाद ,
बेनूर दिल में भी आस सोचा न था कभी ।
” नीरज”