टनकपुर ।मोहर्रम यानी कर्बला पर की जंग इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का है आज का दिन

अमित जोशी। टनकपुर। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी टनकपुर में मुस्लिम लोगों गमी के रूप में मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है जो…

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अमित जोशी। टनकपुर।

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी टनकपुर में मुस्लिम लोगों गमी के रूप में मोहर्रम का जुलूस निकाला जाता है जो रेलवे स्टेशन के समीप वार्ड नंबर 4 में अब्दुल नबी एवं वार्ड नंबर 7 में 95 साल से एक महिला बिस्मिल्लाह बेगम द्वारा ताजिया को तैयार कर नगर में भ्रमण कराया जाता है यह सभी मुसलमान भाइयों इसको गमी के रूप में बनाते हैं
मोहर्रम इस्लामी वर्ष का पहला महीना है इस महीने की 10 तारीख को मोहर्रम बनाया जाता है मोहर्रम को असुरा भी कहा जाता है यह त्यौहार 2019 में 10 सितंबर की गई आज पूरे देश में मनाया जा रहा है यह इस्लामिक नए साल का पहला पर्व है इसे शिया मुसलमान गम के रूप में बनाते हैं इस दिन इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत को क्या किया जाता है
यह ताजिया लकड़ी के एवं कपड़ों से गुबंदनुम रूप में बनाया जाता है इमाम हुसैन की कब्र की नकल में बनाया जाता है इसे एक झांकी की तरह सजाया जाता है वही दूसरी ओर मनिहारगोठ में भी तनवीर हुसैन की नेतृत्व में मुनिहारगोठ में ताजीए को इमामबाड़े से मनिहार कोर्ट में भ्रमण कराकर वर्मा लाइन के समीप कब्रिस्तान में दफन कर दिया जाता है। शिया समुदाय के लोग कैसे बनाते मोहर्रम———
मोहर्रम एक मातम का महीना है शिया समुदाय के लोग 10 दिन काले कपड़े पहन कर हुसैन की शहादत को याद करते हैं हुसैन की शहादत को याद करते हुए जुलूस निकाला जाता है जिसमें मातम बनाया जाता है मोहर्रम की 9 एवं 10 तारीख को तभी मुसलमान लोग रोजा रखते हैं जिसमें मस्जिद और घरों में इबादत की जाती है वही सुन्नी समुदाय के लोग मोहर्रम की 10 तारीख को रोजा रखते हैं कहा जाता है कि एक रोजे का सवाब 30 रोजों के बराबर होता है। भारत में तैमूर ने की थी ताजिए की शुरुआत
बादशाह तैमूर लंग ने 1398 में इमाम की याद पर एक ढांचा तैयार किया था जिसका नाम ताजिया रखा गया यह परंपरा भारत में शुरुआत से ही चली आ रही है टनकपुर में कैसे बनता है ताजिया। मोहर्रम 2 माह पूर्व से ताजिया बनाने के लिए लोग एक जगह एकत्रित होते हैं यह बांस की लकड़ी एवं गुबदनुमा मकबरे के आकार का बनाया जाता है जिसको झांकी की तरह सजाया जाता है आजकल इसको नये तरीके से सजाया जाता है जिसमें लोगों द्वारा लोग शीशम सागौन की लकड़ी से बनाते हैं 11 दिन जलूस के साथ कर्बला में दफन किया जाता है