यह संयोग(coincidence) या मनोविकारों की आहट—अल्मोड़ा में दो माह में 20 लोगों ने गटका जहर

This coincidence or psychosis – 20 people poisoned in Almora in two months see it also अल्मोड़ा:28 मई 2020— क्या लॉक डाउन जीवन की प्रत्याशा…

Professor Aradhana Shukla addresses international webinar

This coincidence or psychosis – 20 people poisoned in Almora in two months

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अल्मोड़ा:28 मई 2020— क्या लॉक डाउन जीवन की प्रत्याशा पर भारी पड़ रहा है? या तनावों से आहत होने का क्रम इस अवधि में बड़ा है. यह संयोग (coincidence)जिला अस्पताल में आए दो महिनों के आकंड़ों के बाद सामने आ रहा है.

यह एक बड़ा सवाल पिछले दो माह की अवधि में जिला अस्पताल में आए मरीजों के आंकड़ों के बाद उठ रहा है क्योंकि इस अवधि में 20 लोगों ने आत्महत्या का प्रयास किया है.

इन घटनाओं में सभी 20 लोगों ने कीटनाशक या जहरीला पदार्थ(toxic substance) का सेवन किया था जिनमें पांच लोगों की मौत भी हुई.आंकड़े अप्रेल और 25 मई तक के हैं. और केवल जिलाचिकित्सालय अल्मोड़ा से लिए गए हैं.

अप्रैल और मई माह में अब तक अस्पताल में 20 लोगों को विषाख्त पदार्थ के सेवन के बाद लाया गया. सभी ने ज्ञात अज्ञात कारणों से विषाष्त पदार्थ का सेवन किया था. इनमें 7 पुरुष और 13 महिलाएं शामिल हैं. इसमें 4 पुरुष और एक महिला की उपचार के दौरान मृत्यु भी हो गई है.

जिला अस्पताल के पीएमएस डा.आरसी पंत ने बताया कि अप्रैल माह में 2 पुरुष और 5 महिलाओं यानि 7 ने विषाख्त पदार्थ का सेवन किया.

उन्होंने बताया कि अप्रैल में किसी की भी मौत नहीं हुई जबकि मई माह में 25 मई तक 5 पुरुष और 8 महिलाओं ने विभिन्न कारणों से विषाख्त पदार्थ का सेवन किया जिसमें 4 पुरुष व 1 महिला की उपचार के दौरान मौत हो गई है.

उन्होंने कहा कि अस्पताल ने सभी को बेहतर उपचार का प्रयास किया लेकिन जिन्हें अस्पताल लाने में देरी हुई या फिर उन्होंने अधिक मात्रा में जहर का सेवन किया उन्हें नहीं बचाया जा सका.

इधर एसएसएसजे परिसर की मनोविज्ञान की सेवानिवृत्त शिक्षिका प्रोफेसर आराधना शुक्ला ने कहा कि इस प्रकार की बढ़ती घटनाएं वास्तव में चिंतनीय हैं.

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उन्होंने कहा कि इसे मनोवैज्ञानिक कारणों के होने की संभावनाओं को नकारा नहीं जी सकती. लाँकडाउन के बीच सामाजिक चिंतनों व आंशकाओं के बीच पैदा हुई चिंता भी एक कारण हो सकती है.

जब जीवन की प्रत्याशा के बीच राह खोजने के दौरान असहाय हो जाने पर ही व्यक्ति मौत की प्रत्याशा की और बढ़ता है. उन्होंने कहा कि सभी कारणों में हताशा हो यह जरूरी नहीं लेकिन इन आंकड़ों को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि व्यक्ति आत्महत्या तभी करता है जब जीवन भौतिकता से हीन और असुरक्षित हो जाता है.