अल्मोड़ा। बालश्रम का चिंतनीय पहलू देवभूमि में भी तेजी से फैल रहा है। उत्तराखंड में 5 से 14 वर्ष तक के कुल 28098 बच्चें किसी ना किसी रूप में बाल श्रम से जुड़े हैं यह पहलू तब आया है जब देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू है। जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए वह उदरपूति के लिए मजदूरी में खपे हुए हैं।
यहां हुए एक कार्यक्रम में बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान (सीएमसीएल) के प्रदेश संयोजक रघु तिवारी ने कहा समाज पर अभिशाप माने जाने वाले बाल श्रम को खत्म करने के लिए हर बच्चे का स्कूल जाना जरूरी है।
राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन दिवस पर इस अभियान से जुड़े सहयोगियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हमें बाल श्रम के हर रूप के खिलाफ खड़ा होना होगा। इस प्रकार की संस्कृति, उद्यमों व कार्यों में संलग्न संस्थाओं, व्यक्तियों का सामाजिक बहिष्कार कर हम इस समस्या के प्रति समाज को और जागरूक कर सकते हैं। तिवारी ने कहा कि बाल मजदूरी को समाप्त करने के लिए हर बच्चे को विद्यालय के अंदर होना चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि शिक्षा अधिकार कानून को लागू हुए 9 वर्ष पूरे होने के बाद भी सरकारी आंकड़ों में भारत देश में 05 से 14 वर्ष के 4353247 बच्चे तथा उत्तराखंड के अंदर 28098 बच्चे बाल श्रमिक हैं। यदि 18 वर्ष तक के श्रम करने वाले बच्चों को देखा जायेगा तो इनकी संख्या करोड़ो तक पहॅूच जायेगी। 2016 में बाल मजदूरी उन्मूलन कानून में बदलाव करके हमारी सरकार ने सी.एल.पी.आर. कानून को भी कमजोर बना दिया है, जिससे बच्चों के बाल श्रम में जाने की सम्भावनायें और बढ़ गयी हैं। सी.ए.सी.एल ने राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाकर इस कानून में बदलाव की मांग उठायी है तथा आने वाले समय में एक वैकल्पिक बिल संसद में पेश किए जाने की योजना भी है ताकि हर बच्चे को उसका खुशहाल बचपन मिल सके और बच्चे बाल श्रम से मुक्त हो सके। श्री तिवारी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले वर्षो में श्रम कानूनों में जो ढील दी गई उसके चलते घरों में बच्चे बाल श्रम करने को मजबूर हो रहे हैं, उद्योगों में ठेका प्रथा और परिवार स्तर पर छोटे-छोटे कामों को देने से बच्चे बाल श्रमिकों की तरह काम कर रहे हैं। उधमसिह नगर, हरिद्वार, देहरादून, कोटदार, सितारगंज व हल्द्वानी जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में इस कारण बच्चे बाल मजदूरी में लिप्त होते दिखाई दे रहे है। कूड़ा निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण पूरे प्रदेश भर में हजारो बच्चे काम करते नजर आते है। ये बच्चे अत्यंत खतरनाक परिस्थितियों में कार्य करे है, जिससे इनके स्वास्थ्य और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है जो कि एक स्वस्थ्य समाज के लिए शर्म की बात है। सितारगंज से देहरादून के बीच में कई ढाबों में आधी रात को भी छोटे-छोटे कई बच्चे कार्य करते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन तमाम जिलों में बनी टास्क फोर्स एक बच्चे को भी बाल श्रम से मुक्त करवाने के लिए सक्रिय नहीं दिखाई देती। यहीं नहीं हर शहर, कस्बे में स्थित धार्मिक स्थलों के आसपास भीख मांगते बच्चे भी नजर आ जाते है, लेकिन इन सब परिस्थितियों को बदलने के लिए हमारे नागरिक समाज को और अधिक संवदेशनशील होने की आवश्यकता है।नागरिक समाज की सक्रियता, संवदेनशीलता व दबाव से ही सरकारें व प्रशासन बाल मजदूरी को रोकने के प्रयासों को तेज करेगा। शिक्षा अधिकार कानून को कड़ाई से लागू कर हर बच्चे को विद्यालय में भेजना ही बाल मजदूरी को समाप्त करने का कारगर उपाय है।
कार्यक्रम में शशि शेखर, डा. अर्चना, बाल कल्याण समिति सदस्य नीलिमा भट्ट, रेनू नेगी, मिशन स्माईल फाऊंडेशन की भावना मनकोटी, मना खत्री एव्ंा नीमा कांडपाल आदि ने विचार रखे
उत्तराखंड में बालश्रम की स्थिति चिंतनीय, 28098 बच्चे कर रहे हैं बालश्रम
अल्मोड़ा। बालश्रम का चिंतनीय पहलू देवभूमि में भी तेजी से फैल रहा है। उत्तराखंड में 5 से 14 वर्ष तक के कुल 28098 बच्चें किसी…