Uttarakhand में बदलाव को सामाजिक ताकतों का एकट्ठा होना जरूरी

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Change in Uttarakhand requires gathering of social forces

हल्द्वानी,05 दिसंबर 2021- हल्द्वानी में चल रहे ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क व विभिन्न जन संगठनों द्वारा आयोजित कोरोना महामारी और Uttarakhand विषय पर राज्य स्तरीय संवाद/ विमर्श के दूसरे दिन आज खाद्य सुरक्षा के अधिकार, शिक्षा, एलजीबीटी+, ज़मीन, पर्यावरण और विकास पर सामाजिक प्रभाव पर चर्चा हुई।

वक्ताओं ने कहा कि Uttarakhand में बदलाव के लिए सामाजिक ताकतों का इकट्ठा होना होगा।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में खाद्य सुरक्षा विषय के पैनल में अमन की नीलिमा भट्ट, महिला किसान संगठन की हीरा जंगपांगी, डॉ. दीपक, जे पी बड़ौनी और अल्मोड़ा की सरिता मेहरा शामिल रहीं।

नीलिमा भट्ट ने अपने संबोधन में कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सिर्फ गेंहू, चावल बांट देना पर्याप्त नहीं है बल्कि पोषक आहार वितरित किया जाना चाहिए और क्षेत्रीय उत्पादों के सेवन को लेकर जागरूकता के लिए काम करना होगा।

उन्होंने आंकड़ें बताते हुए कहा कि देश हंगर इंडेक्स में पिछड़ते जा रहा है और महिलाएं और बच्चे एनीमिया के शिकार हैं जो चिंताजनक है।

उन्होंने कहा कि सामुदायिक स्तर पर एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई जानी चाहिए ताकि राशन व पोषण वितरण की प्रणाली को अधिक पारदर्शी किया जा सके।

हीरा जंगपांगी ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर आने से पहले सरकार यह सुनिश्चित करे कि स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र और सस्ते गल्ले के माध्यम से वितरित किए जाने वाले पोषण व खाद्यान्न पर रुकावट ना आए और पिछली बार की तरह आदिवासी व वनवासी खाद्यान्न संबंधी परेशानी ना उठानी पड़े।

जेपी बड़ौनी व डॉ दीपक ने कहा कि जनसंख्या बढ़ रही है और पारंपरिक अनाजों की ओर लौटना होगा लेकिन उसके लिए जोत भूमि पर ध्यान देना होगा।

वक्ताओं ने कहा कि बिचौलिए फायदा उठा रहे हैं और सरकार अभी तक भूमि का बंदोबस्त नहीं कर पाई है।

शिक्षा पर परिचर्चा के पैनल में नीलिमा , साइकोलॉजी की प्रोफेसर डॉ रेखा जोशी, करन राणा, उत्तराखंड छात्र संगठन की भारती पांडे, अध्यापिका सरोज सिंह, प्रदीप तिवारी, आनंदी वर्मा शामिल रहे।

वक्ताओं ने कहा कि कोविड ने शिक्षा को प्रभावित किया है और एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर केंद्र पर सीमित ना होकर राज्य तक भी आए। डॉ. रेखा जोशी ने कहा कि शिक्षा क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चाएं की जानी चाहिए परन्तु इसमें बजट का सिर्फ 0.006 परसेंट ही जाता है।

प्रदीप तिवारी ने कहा कि पॉलिसी बिना शिक्षकों से कंसल्ट किए हुए बनाई जाती है और शिक्षकों की देश में कमी है।

भारती पांडे ने कहा कि ऑनलाइन एजुकेशन ने बच्चों व लड़कियों को एब्यूज का शिकार बनाया है और इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट, एंड्रॉयड फोन ना हो पाने जैसी परेशानियां आम रहीं और इसने लोगों की आर्थिकी को प्रभावित किया पर सरकार कॉलेज व स्कूल नियमित खोलने में लापरवाही ही कर रही है जो भविष्य के लिए ख़तरा है।

एलजीबीटी+ पर अपनी बात रखते हुए एक्टिविस्ट मनोज ने कहा कि कोरोना ने जीवन यापन, भोजन आदि का संकट खड़ा कर दिया और सरकारों ने ध्यान नहीं दिया बल्कि एक्टिविस्ट ख़ुद ही कम्युनिटी की ज़रूरतें पूरी कर रह रहे थे और सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई।

ज़मीन, पर्यावरण और विकास पर सामाजिक प्रभाव पर बात करते हुए वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि Uttarakhand में बदलाव की ज़रूरत है और उसके लिए सामाजिक ताकतों को एकजुट होना होगा।

जल जंगल ज़मीन और उत्तराखंडी अस्मिता पर पी. सी. तिवारी ने कहा कि पहाड़ की ज़मीन,Uttarakhand में प्राकृतिक संसाधन लगातार हमसे छीने जा रहे हैं जिसके ख़िलाफ़ संघर्ष करना होगा।

इसमें हुकुम सिंह, पलाश विश्वास, रूपेश, हरीश रावत, भुवन चंद्र जोशी समेत अन्य लोगों, दिनेश चंद्र पांडे आदि ने अपने विचार रखे।