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उत्तरा न्यूज विशेष : चंपावत की दो नदिया प्रदूषण् की चपेट में

Newsdesk Uttranews
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ललित मोहन गहतोड़ी

चम्पावत। जिले में अविरल बहती आठ प्रमुख नदियों में से दो प्रमुख नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं। इन नदियों के प्रदूषित होने के चलते दोनों प्रमुख नगरों में जल संकट लगातार गहराता जा रहा है। नदियों का प्रदूषित जल पीने से इन नगरों के अधिकांश लोग पेट और दांतों से संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। जबकि इन दोनों नदियों की शुद्धता को लेकर अपनी एक अलग पहचान रही है।

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चम्पावत जिले की प्रमुख नदियों में गंडक, कवैराला, लधिया, डगडुआ, काली, सरयू, पनार, लोहावती आदि शामिल हैं। इन नदियों के संरक्षण और संवर्धन को लेकर पिछले दो दशक में तमाम योजनाओं का खाका तैयार किया गया। जिले में निर्माण इकाई के अलावा सिंचाई, लघु सिंचाई, स्वजल, जलागम सहित कई अन्य एजेंसियां जल संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही हैं। बावजूद इसके जल संरक्षण को लेकर उठाये गए तैयारियों के कदम आगे नहीं बढ़ पाए हैं। इसके चलते जिले की दो नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं। नदियों में प्रदूषण की एकमात्र वजह इन नगरों में सीवरेज की व्यवस्था का नहीं होना है। दोनों नगरों में सीवर लाइन के नहीं होने से इन नगरों का सारा मलबा प्रमुख नदियों में समा रहा है। एक तरफ चम्पावत की गंडक नदी भारी जन दबाव के चलते हांफ रही है तो दूसरी तरफ लोहाघाट स्थित प्रमुख लोहावती अपने वजूद को लगातार खोती जा रही है। लोहाघाट में 90 के दशक में लोहावती और चम्पावत की गंडक वर्ष 1997 में जिला गठन के बाद ही एकाएक बढ़ते जन दबाव से प्रभावित होने से प्रदूषण की चपेट में आ गयीं। प्रशासन के साथ साथ इन नगरों के जल चिंतकों सहित नदियों और प्राकृतिक स्रोतों को बचाने के लिए जुटे तमाम जल दूतों की नींद उड़ गई। वहीं इन प्रमुख नगरों के लिए ठोस नीति नहीं होने के चलते सीवेज नदियों में बहता प्रदूषण बनकर सामने आ गया। जल संरक्षण की कोई ठोस नीति नहीं होने से प्राकृतिक स्रोतों के अलावा नदियों की दशा लगातार खराब होती गई। नदियों में नगरों का सीवेज बहकर नदी में समाने से यहां रह रहे नागरिकों को तमाम पेट और दांत संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। जीवनदायिनी मानी जाने वाली दोनों प्रमुख नदियों में जम रही गाद का पानी पीने से गर्मियों के समय अधिकांश लोग पीलिया सहित अन्य रोगों की चपेट में आ जाते हैं। इसके चलते जिले में नदियों और प्राकृतिक स्रोतों के संवर्धन के तौर-तरीके हाशि्ये में सिमटकर रह गये हैं।