कोई तो सुध ले : आवारा और जंगली जानवरों से लोग परेशान

प्रशासन नही दे रहा है ध्यान ​ललित मोहन गहतोड़ी और नकुल पंत के साथ पाटी से सुभाष जुकारिया और खेतीखान से निरंजन ओली की ​​रिपोर्ट…

प्रशासन नही दे रहा है ध्यान

ललित मोहन गहतोड़ी और नकुल पंत के साथ पाटी से सुभाष जुकारिया और खेतीखान से निरंजन ओली की ​​रिपोर्ट

चम्पावत। आधे सितंबर के बाद पर्वतीय क्षेत्रों में ठंड का मौसम दस्तक देने लगता है। इस दौरान रात में गिरती ओस और सुबह कड़ाके की ठंड के कारण यह जानवर जंगल छोड़ आबादी की ओर बढ़ने लगते हैं। इससे हमेशा जंगल से सटे इलाकों में इन जानवरों की सक्रियता बढ जाती है। मौसम के बदलाव के साथ ही अनेक स्थानों पर जंगली जानवरों की चहलकदमी एकाएक बढ़ गई है।
टनकपुर पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग में टनकपुर के ककराली गेट के पास हाथी, चम्पावत के बनलेख और लोहाघाट के मरोड़ाखान से घाट के बीच बाघ, गुलदार, बंदर, भालू, लंगूर, घुरड़ और साईं आदि जंगली जानवर इन जंगलों में ज्यादातर दिखाई देते हैं। इसके अलावा जिले के आंतरिक मार्गों में भी इस बार इन जानवरों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। इन विभिन्न सड़कों में चल रहे दो पहिया वाहनों सहित ट्रक, टैक्सी और बस आदि के ड्राइवर बताते हैं कि अधिकांश शाम और सुबह के समय ही इन इलाकों में उन्हें जंगली जानवर दिखाई देते थे। पर इन दिनों ठंड शुरू होने के काफी पहले से जंगलों के आसपास के इलाकों में जानवरों की आवाजाही ज्यादा देखने को मिल रही हैं। धीरे धीरे बढ़ रही ठंड के चलते जिले के टनकपुर के हाथी कोरिडोर, चल्थी-बनलेख, मरोड़ाखान से घाट के बीच सड़क से जुड़े इलाकों में जंगली जानवरों की सक्रियता अचानक बढ़ने लगी है।
मैदानी क्षेत्रो में हाथी का डर तो आवारा छोड़े गोवंश पर्वतीय क्षेत्रों में चट कर रहे फसल
चंपावत। चंपावत नगर, लोहाघाट और पाटी विकास खंड के पाटी और खेतीखान में पिछले लंबे समय से छोड़े गोवंश के कारण लोग परेशान हैं। कयी बार प्रशासन से शिकायत किये जाने के बाद भी लोगों को इन आवारा छोड़े गये जानवरों से निजात नहीं मिल पा रही है। चम्पावत बाजार, लोहाघाट और लोहाघाट से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित खेतीखान के लोग आवारा पशुओं से परेशान हैं। इन लोगों का कहना है कि पिछले कई वर्षो से चम्पावत, लोहाघाट, पाटी और खेतीखान में आवारा छोड़े गये जानवरों का आतंक बढ़ गया है। कहना है कि लगभग समय यह जानवर उनके खेत और क्यारियों की फसल को चौपट करते जा रहे हैं। इससे उनकी उगाई फसल लगातार बर्बाद हो रही है। क्षेत्रीय युवकों का कहना है कि प्रशासन से बार बार आवारा पशुओं से निजात दिलाने की मांग की गई है। परंतु हर बार उनकी बात अनसुनी कर दी गई। जिससे उनका खेती करना महज समय की बर्बादी बनकर सामने आ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जबकि गाय को राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण देने की बात कही जा रही है लेकिन इसके आज गोवंश की इस दुर्दशा के लिए कौन लोग हैं जो अपने धर्म को भी भूल गए हैं। कुछ लोगों के लिए गायें अब गौमाता नहीं केवल एक व्यापार का साधन बन गई हैं। शायद अब ऐसे लोग हिन्दू कहलाने के लायक नहीं रहे अब ऐसे लोगों को क्या कहा जाय। गाय की हिन्दू धर्म में बड़ी मान्यता है और व्यक्ति की मृत्यु निकट होने पर गौदान को बड़ा दान माना जाता है। लेकिन गोवंश को बाजार में कूड़ा खाने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।
बंदरों और आवारा कुत्तों का आंतक भी कम नही
चम्पावत। जिले के लोग इन दिनों दिन में बंदर तो रात में आवारा कुत्तों के आतंक से परेशान हैं। लोहाघाट के पंचेश्वर चौराहा, मंदिर रोड, खेतीखान तिराहा और मीनाबाजार चौराहा तो जिला मुख्यालय चम्पावत में ललुआपानी सड़क, बैंक गली, जीआईसी तिराहा और खटकना पुल के समीप इन कटखने जानवरों की आवाजाही ज्यादा देखने को मिली है। खासकर जिन जगहों पर लोग अपने घरों का कूड़ा फैके रहते हैं वहां पर इन जानवरों का आतंक कुछ ज्यादा ही है।
वही जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में फसलों को नुकसान करने में बंदरों ने कोई कसर नही छोड़ी है इसके अलावा आबादी वाले क्षेत्रों में कटखने बंदर स्कूली बच्चों और राहगीरो के लिये आतंक का सबब बन चुके हैै। लोहाघाट के जीआईसी सड़क, ठंडी रोड में तो कई बार स्कूली बच्चों पर बंदरों ने झपट्टा मारने की कोशिश तक की है। इस रास्ते से गुजर रहे स्कूली बच्चों को कूड़े के आसपास भटक रहे बंदरों और कुत्तों से झपटने का खतरा है। स्थानीय लोग जानवरों के आतंक के चलते नौनिहालों को इस रास्ते में अकेले भेजने में डर रहे हैं।
लोहाघाट से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित सुईं गांव के लोग बंदरों के आतंक के चलते लोग परेशान हैं। उत्पाती बंदरों का गांव में इस कदर आतंक व्याप्त है कि यहां छोड़े गये बंदर बूढ़े और बच्चों के हाथ से उनका सामान छीनाझपटी कर बर्बाद कर दे रहे हैं।
लोहाघाट के पास सुईं गांव में इन दिनों बंदरों ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि अनेक जगहों से यहां पर कटखने बंदरों को छोड़े जाने से उन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कहना है कि इससे गांव के स्कूली बच्चों को भी खतरा बढ़ता जा रहा है। उत्पाती बंदर स्कूली बच्चों के हाथ से छीनाझपटी कर रहे हैं। इसके चलते बच्चों को अकेला छोड़ना मुश्किल हो गया है। ग्रामीणों ने बताया कि बंदर उनके खेतों में उगी फसल तक को बर्बाद कर दे रहे है। खेतों के अलावा घर का दरवाजा खुला रहने पर उनके घरों में तक उत्पात मचाते रहते हैं। कहना है कि इसके चलते ग्रामीणों को जानमाल का नुकसान भी हो सकता है।