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चमोली, 17 जुलाई 2022- चिपको की सरजमीं चमोली से वर्दीधारियों की घास ला रही महिलाओं से छीना झपटी यानि घास के गठ्ठर को उतारने की कोशिश करता वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
यह वीडियो हेलंग का है, वीडियो में वर्दीधारी घास लाती महिलाओं के घास के गठ्ठर को छीनने का प्रयास कर रहे हैं, महिलाएं इसका विरोध कर रही हैं।
अब घास के गठ्ठर से वर्दीधारियों को क्या नुकसान पहुंचा होगा या घास लाना कब से गैरकानूनी हो गया यह समझ से परे है। क्योंकि यह वही घास है जिसे महिलाओं के लिए सुलभ बनाने का वादा कर पूर्ववर्ती सरकार घसियारी योजना लाने का वादा कर गई थी, अब दोबारा सत्ता में है।
महिलाओं का घास लाना कब से गुनाह हो गया इस पहलू का उत्तर मिलने से पहले पुलिस ने एक ट्वीट सामने आ गया जिसमें कहा गया है कि ” कुछ लोग खेल मैदान बनने में बाधा उत्पन्न कर रहे थे, इसलिए “प्रशासन के आग्रह पर पुलिस ने सहयोग प्रदान किया” ।
देखें पुलिस का ट्वीट
हालांकि पुलिस किस प्रकार का सहयोग कर रही है यह वीडियो देख समझ में नहीं आ रहा है या तो उनके गठ्ठर को उतार अपने सर पर रखने को आतुर है या फिर उसे गिराने की जोर आजमाइश पुलिस कर रही है।
एक दो महिला वर्दीधारियों के अलावा वहां अधिकांश पुरुष वर्दीधारी हैं जो ट्वीट के अनुसार सहयोग प्रदान करने आए हैं।
वीडियो 16 जुलाई का बताया जा रहा है, वायरल होने के बाद सोशल मीडिया में कई प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उसमें कुछ यहां हू- बहू रखी गई है।
“उत्तराखंड में कल यानि 16 जुलाई को हरेला पर्व मनाया गया. यह प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा पर्व है. पूरे प्रदेश में पौधे लगाने से लेकर पर्यावरण संरक्षण तक की बातें सोशल मीडिया में छाई रही. मुख्यमंत्री, मंत्री, संतरी सब पौधे रोप रहे थे, प्रकृति के संरक्षण का उपदेश दे रहे थे. ऐसे दृश्य- सदा सत्य बोलो-टाइप के उपदेश प्रतीत होते हैं. सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग कह रहे हैं- हमें प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए, पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए, आदि,आदि. साल में तीन दिन- पर्यावरण दिवस, हिमालय दिवस और हरेला निर्धारित हैं, ऐसी बातें कहने के लिए. बाकी दिन इसके विपरीत आचरण के हैं.
कल ही शाम को उत्तराखंड के ख्यातिलब्ध लोक गायक, गीतकार, नरेंद्र सिंह नेगी जी का गीत- स्याली रामदेई- रिलीज हुआ. गीत जंगल में घास काट रही पहाड़ी महिला को वन दारोगा द्वारा पकड़े जाने का विवरण है. गीत के अंत में वन दारोगा, घसियारी की अनुनय-विनय सुन कर उसका जुर्माना माफ करने की बात कह देता है.
लेकिन चमोली जिले के हेलंग की महिलाओं का सामना वैसे पिघलने वाले वन दारोगा से नहीं हुआ, जैसा नेगी जी के गीत में रामदेई घसियारी को मिला. उनका सामना तो उत्तराखंड की बहादुर पुलिस और सीआईएसएफ़ के जाबांज जवानों से हुआ. ये बहादुर योद्धा कैसे बर्दाश्त कर सकते थे कि उनके सामने कोई पहाड़ी ग्रामीण महिला घास काट कर लाये. इसलिए उन्होंने, उस महिला और उसके पीठ पर बंधे घास के गट्ठर से भरपूर ज़ोर-आजमाइश की. वीडियो देख कर ऐसा लग रहा है कि धरती को सर्वाधिक खतरा, महिला के पीठ पर बंधे उस घास के गट्ठर से ही है.
इन महिलाओं की शिकायत है कि वहां बन रही जलविद्युत परियोजना की निर्माता कंपनी- टीएचडीसी ,सुरंग से निकालने वाले मलबे को उनके चारागाह और वन भूमि में डंप कर उसे नष्ट कर रही है. वे इस कृत्य के खिलाफ पत्र लिख चुकी, धरना दे रही हैं पर कोई सुनवाई नहीं !
कंपनी वाले मलबा कहीं डालें, लेकिन विरोध करोगे तो घास का गट्ठर तक घर नहीं पहुंचाने देंगे, यह संदेश है !
चमोली जिले की पुलिस द्वारा ट्विटर पर सफाई दी गयी है कि कुछ लोग खेल मैदान बनने में बाधा उत्पन्न कर रहे थे, इसलिए “प्रशासन के आग्रह पर पुलिस ने सहयोग प्रदान किया” ! घास लाती हुई महिला से घास का गट्ठर छीनना, यह पुलिस द्वारा प्रशासन को सहयोग करने की नयी विधि ईजाद की गयी है ? सोशल मीडिया में पुलिस की सक्रियता का यह प्रतिफलन है कि वह सोशल मीडिया में भी वैसे ही (कु)तर्क अग्रसारित करती है, जैसा वह किसी आंदोलन के मुकदमें की फर्जी एफ़आईआर में करती है.
इस तरह देखें तो कल एक तरफ हरेले के उत्साव में पौधे रोपने की धूम थी और दूसरी तरफ सैकड़ों वर्षों से इन पहाड़ों, पेड़ों की रखवाली करने और उन्हें पालने-पोसने वाली महिलाओं से घास का गट्ठर छीना जा रहा था, उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा था. हरेले का फोटो सेशन अपनी जगह और प्रकृति तथा जंगलों पर निर्भर लोगों का उत्पीड़न अपनी जगह !
अखबारों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान छपा है- विकास और पर्यावरण में संतुलन जरूरी ! इसका मतलब – हरेले के फोटो सेशन और महिलाओं से घास का गट्ठर छीनती पुलिस- इन दो दृश्यों से समझ सकते हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार केशव भट्ट की फेसबुक वॉल से, वरिष्ठ आंदोलनकारी इन्द्रेश मैखुरी का आलेख
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