महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजन का असर इस बार बैंकिंग प्रणाली पर भी देखने को मिला है। करोड़ों लोगों ने महाकुंभ में जाने और वहां खर्च करने के लिए बैंकों से भारी मात्रा में नकदी निकाली, जिससे बैंकों की स्थिति खराब हो गई है। अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बैंकों के पास ऋण देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं बचा है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस नकदी संकट को दूर करने के लिए बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आरबीआई को बैंकिंग क्षेत्र में पूंजी तरलता (लिक्विडिटी) बढ़ाने के लिए नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में कटौती करनी पड़ सकती है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार, इसे भारतीय बैंकिंग प्रणाली के लिए एक गंभीर संकट माना जा रहा है।
नकदी की यह समस्या बीते कुछ महीनों में बढ़ी है। नवंबर 2024 में बैंकों के पास 1.35 लाख करोड़ रुपये की तरलता थी, जो दिसंबर में घटकर 0.65 लाख करोड़ रुपये रह गई। जनवरी में यह घाटा बढ़कर 2.07 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि फरवरी में यह 1.59 लाख करोड़ रुपये दर्ज किया गया।
एसबीआई की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि महाकुंभ के दौरान खुदरा जमाकर्ताओं ने बैंकों से भारी मात्रा में पैसा निकाला और इसे धार्मिक यात्रा व अन्य आयोजनों पर खर्च किया। बड़ी मात्रा में निकाली गई नकदी अभी तक बैंकिंग प्रणाली में वापस नहीं लौटी है, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में तरलता की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।
इस संकट से निपटने के लिए आरबीआई को तत्काल कदम उठाने होंगे। एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, सीआरआर में कटौती से बैंकों को राहत मिल सकती है। फरवरी में आयोजित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में आरबीआई ने पहले ही सीआरआर में 0.50 प्रतिशत की कटौती की थी, जिससे 1.10 लाख करोड़ रुपये की पूंजी बैंकिंग प्रणाली में आई थी। हालांकि, यह राशि नकदी संकट को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। अब विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई को सीआरआर में और कटौती करनी होगी ताकि बैंकिंग प्रणाली में नकदी प्रवाह बेहतर हो सके और ऋण वितरण फिर से सुचारू रूप से शुरू हो सके।