उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा— अल्मोड़ा जिले के लखुउडियार के अलावा अब दौलाघट के गेवापानी के पास पत्थरकोट गांव सीमा के घुरभ्योव में शैल चित्र(Rock painting) प्राप्त हुए हैं. फिलहाल इन्हें मध्यकालीन कलाकृतियों(Medieval artifacts) का नमूना बताया जा रहा है. पुरातत्व विभाग(Archeology department) भी इसकी सूचना उच्चाधिकारियों को देते हुए इसे पर्यटन के रूप मे विकसित करने की बात कर रहा है.
बताते चलें कि एसएसजे परिसर में पत्रकारिता विभाग में शिक्षक डा.ललित जोशी ने अपने घुमक्कड़ी के दौरान पिछले दिनों इस शैल चित्रों का अवलोकन किया था.मामले की जानकारी के बाद मंगलवार को क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी चन्द्र सिंह चौहान भी स्थलीय निरीक्षण में पहुंचे .पुरातत्व अधिकारी चन्द्र सिंह चौहान ने इनके संरक्षण की पहल करने के साथ ही इसे पर्यटन विकास का माध्यम बनाने की भी बात कही है.
एसएसजे के शिक्षक डा. ललित जोशी ने बताया कि अपने ऐतिहासिक दस्तावेजों की खोज के शौक चलते उन्होंने पिछले दिनों अपनी छात्रा रक्षिता के साथ पत्थरकोट (कोसी कस्बे से 8 km की दूरी पर स्थित गेवापानी के पास ) का सर्वेक्षण किया. जिसमें कई प्री-हिस्टोरिक आर्ट के रूप में कई कप मार्क्स, लखु उडियार में बने हुए रॉकआर्ट की भांति चित्र मिले.
उन्होंने बताया कि कप मार्क्स- कप मार्क्स स्पेन, ग्लॉसिया, पुर्तगाल, मिडिल यूरोप, स्कॉटलैंड, थेल्स आदि में ओखलनुमा(Mortal) मिले हैं। भारत में भी इनकी प्राप्ति हुई है। आज उसी कप मार्क्स को खोजना हमारे लिए उपहार स्वरूप था.
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कहा कि यह गांव प्रथम दृष्टया बहुत अलग लगा,जहाँ बड़े—बड़े शिलाखंड(Stone) विद्यमान हैं। यह गांव अल्मोड़ा परिसर में तैनात GIS साइन्स के निदेशक प्रोफेसर जीवन सिंह रावत का गांव है. जिन्होंने मुझे इस गांव में अपनी घुमक्कड़ी करने को कहा था.
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उन्होंने दावा किया कि शत फीसदी यह चित्र उनकी नई खोज हैं. गेरुवे रंग से बने हुए इन चित्रों में 1, 2, 3, 7,9 आदि की संख्या में कई मानव श्रृंखलाएं विद्यमान हैं, कई चित्र अस्पष्ट हैं, जो बारिश के पानी से धुल रहे हैं. इसके साथ ही 11 की संख्या में एक शिला पर छोटे कप मार्क्स, दूसरी शिला पर 3 बड़े व 2 छोटे कप मार्क्स, तीसरे स्थान दीवार पर 3 गहरे कप मार्क्स , चौथे बड़े शिला खंड में 1 कप मार्क्स, पांचवे शिला खंड में 2 कप मार्क्स, छठे शिला पर 1 छोटा कप मार्क्स की प्राप्ति हुई. हालांकि इनमें 11 कप मार्क्स का जिक्र पहले से प्रकाश में आया है.
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इस दौरान स्थलीय निरीक्षण पर पहुंचे क्षेत्रीय पर्यटक अधिकारी चन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि प्रारंभिक रूप में इसे मध्यकालीन शैल चित्र कहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि ओखलीनुमा आकृति भी मानव की सार्वजनिक रूप से भोजन के लिए आनाज कूटने की साझी संस्कृति के हिस्सा हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह जानकारी विभाग को देने के साथ ही इसे पर्यटन के लिए भी विकसित करने का प्रयास किये जाऐंगे.
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि प्रागैतिहासिक काल से संभवतः मध्य काल तक माना जा सकता है कुछ शैल चित्र नवीन है इसलिए संभावना के तहत इसे पूर्व मध्यकाल तक समेटने की बात कही जा रही है.
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यदि आप भी यहां जाना चाहें तो कोसी कस्बे से दौलाघट द्वाराहाट मार्ग से गुजरते हुए गेवापानी के पास उतर जाएं और वहां से पत्थरकोट गांव के मार्ग को जाते वक्त यह शिलाखंड और मानवआकृतिया आपको घुरभ्योव नामक शिला पर मिल जाएगी.
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