भिटौली (Bhitoli)- बहन, बेटी से मुलाकात, स्नेह और अटूट प्रेम की परंपरा

Bhitoli

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उत्तरा न्यूज डेस्क, 24 मार्च 2021-

उत्तराखंड परंपराओं और पर्वों को मनाने वाला राज्य है। कोई पर्व ऐसा नहीं होगा जो किसी ना किसी से संबंधित हो या उसमें कोई संदेश, स्नेह और अटूट बंधन की आश नहीं छुपी हो। ऐसा ही प्यार, स्नेह और भेंट करने का एक अनोखा पर्व है भिटौली (Bhitoli) जिसमें मायके से पिता या भाई अपनी पुत्री और बहिन से मिलने जाता है। भेंट करने के इस परंपरा को निभाने के लिए पूरे एक माह की अवधि होती है। यह अवधि चैत्र मास के पहली तिथि से शुरू हो जाती हैं जो पूरे महिने भर चलती है।


भिटौली (Bhitoli) का अर्थ है भेंट करना, भेंटने जाना या मुलाकात करना। इसके तहत चैत्र में मनाई जाने वाली भिटौली के जरिए भाई अपनी विवाहित बहन के ससुराल जाकर उससे भेंट करता है। उपहार देता है और पकवान ले जाकर मायके के स्नेह से उसे प्रफुल्लित करता है। भाई बहन के इस अटूट प्रेम, मिलन को ही भिटौली (Bhitoli) कहा जाता है। सदियों पुरानी यह परंपरा निभाई जाती है।  

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कई स्थानों पर भिटौली (Bhitoli) का नाम आवा या आव भी है। नाम कुछ भी हो लेकिन संदेश एक ही है कि विवाह के बाद बिटिया भले ही दूसरे घर में चली गई हो लेकिन एक अमिट संबंध उसे आज भी पहले की तरह याद करता है।

आज से कुछ वर्ष पूर्व तक जब कोई व्यक्ति भिटौली (Bhitoli) देने जाता था।तो उसके घर में सुबह से ही कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते थे। जिसमें पूरी, सेल, खीर, खजूरे होते थे। उसके बाद यह सारे व्यंजनों को एक टोकरी में रखा जाता था, और कपड़े से बाँध कर इसे या तो पीठ में रखकर या फिर सिर में रखकर बेटी के ससुराल ले जाया जाता था, समय बीतने के साथ ही इस प्यार की टोकरी में फल, मिठाई, वस्त्र के अलावा भेंट स्वरूप धनराशि की व्यवस्था भी लोग करने लगे।

बेटी के लिए ले जाएगे गए फल, मिठाइयां व पकवानों को ससुराल में व्यंजनों को पूरे गांव के हर घर में बांटा जाता है, वहीं बेटी के ससुराल मे मायके से आए इन मेहमानों की खातिरदारी के लिए तरह तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते थे।

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बताते चलें कि देवभूमि उत्तराखंड को, लोक संस्कृति तथा लोक पर्वो के लिए जाना जाता है| उत्तराखंड में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में बसंत पंचमी, फुलदेई, घुघुतिया, मकर संक्रांति, के साथ ही भिटौली भी है जिसका इंतजार अपने ससुराल में हर विवाहिता करती है। यानि चैत के महीने में बेटी को भिटोली (Bhitoli) का बेसब्री से इंतजार रहता हैं।

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इस महिने को लेकर कई लोककथाएं भी है और पहाड़ों पर चैत के महीने में एक चिड़िया घुघुती भी लगातार बोलती है कहते हैं इसकी घुर घुर भी भिटौली का इंतजार कर रही बिटिया लगातार मायके के स्नेह के रूप में जाने जाने वाली भिटौली (Bhitoli) की याद दिलाती हैं।

आज से कुछ वर्ष पूर्व तक जब कोई व्यक्ति भिटौली देने जाता था तो उसके घर में सुबह से ही कई प्रकार के पकवान बनाए जाते थे जिसमें पूरी, पकोड़ी, सेल, खीर, खजूरे होते थे।

माना जाता है कि पहले के समय में लोगों के पास आजीविका के लिए जमीन और पशु ही होते थे। साल भर खेती बाड़ी के कार्यों से ही फुर्सत नहीं मिलती थी।

चैत के इस महिने में खेती बाड़ी का कार्य कम हो जाने के कारण ही लोगों ने अपनी बहन या बेटी से मिलने इस माह को अपना और इस भेंट करने की परंपरा को भिटौली नाम दिया गया। तब यातायात और दूरसंचार के साधन भी नहीं थे। मुलाकात और भेंट के लिए प्रत्यक्ष रूप से ही व्यक्ति को जाना होता था।

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भिटौली (Bhitoli) को लेकर भी एक दंतकथा आज भी हर घर में सुनी जाती हैं कहा जाता है कि एक महिला अपने भाई से बहुत प्यार करती थी, लेकिन जब बहन की शादी दूसरे दूर के गांव में हो गई तो उसकी बहन अपने भाई से नहीं मिल पाती थी और वह रोज अपने भाई और परिवार की याद में रोती रहती थी। वह चैत का महीना लगते ही अपने भाई का इंतजार करने लगती थी। बिना कुछ खाए-पिए व बिना सोए इंतजार करने लगी। ऐसे कई दिन बीत गए लेकिन किसी वजह से भाई नहीं आ पाया।

एक दिन अचानक उसका भाई भिटौली (Bhitoli) लेकर उससे मिलने आया लेकिन इस बीच इंतजार कर रही बहन सो गई थी। बहन को सोता हुआ देख अपने साथ लाए उपहार व अन्य सामान सोती हुई बहन के पास रख कर उसे प्रणाम कर वापस अपने घर को चला गया।

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क्योंकि अगले दिन शनिवार था और पहाड़ों में कहा जाता है कि शनिवार को न किसी के घर जाते हैं और न किसी के घर से आते हैं। यह अपशकुन माना जाता है, इसी वजह से भाई अपने घर चला गया। लेकिन जब बाद में बहन की नींद खुली तो उसने अपने पास रखा हुआ सामान देखा और उसे एहसास हुआ कि जब वह सोई थी तो उसका भाई आया और उस से बिना मिले बिना कुछ खाए-पिये भूखा-प्यासा ही वापस चला गया।

इस वजह से वह बहुत दुखी हुई और और पश्चाताप से भर गई और एक ही रट लगाए रहती थी  “भै  भूखो- मैं सिती, भै  भूखो- मैं सिती” (अर्थात भाई भूखा रहा और वह सोती रही) और इसी दुख में उसके प्राण चले गए और अगले जन्म में वह “न्योली “नाम की एक चिड़िया के रूप में पैदा हुई और कहा जाता है कि वह इस माह में आज भी दुखी रहती है और जोर-जोर से गाती है “भै  भूखो- मैं सिती’।

वर्तमान में भौतिक संशाधनों की बढ़ती सुविधाओं के बीच हालांकि मुलाकात या बातचीत अब काफी आसान हो गई है। उपहार देने का तरीका भी हाईटेक हो गया। उपहार के रूप में आन लाईन गिफ्ट या आन लाइन भेंट देने का रिवाज भी बढ़ गया है।

बावजूद स्नेह और प्यार का बंधन अभी भी बरकरार है। तमाम सुविधाओं के बावजूद आज भी एक बहन और बेटी ससुराल में मायके से आने वाली भिटौली (Bhitoli) का बेसब्री से इंतजार करती हैं।

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