Barsana Holi History:जाने लठमार होली का इतिहास और महत्व?क्यों मनाई जाती है आखिर यह होली इतनी धूमधाम से?

Barsana Holi History: दरअसल बरसाने में राधा जी का जन्म हुआ था। राधा जी को श्री कृष्ण भगवान की प्रेमिका के रूप में देखा जाता…

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Barsana Holi History: दरअसल बरसाने में राधा जी का जन्म हुआ था। राधा जी को श्री कृष्ण भगवान की प्रेमिका के रूप में देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पुराने काल में श्री कृष्ण होली के समय बरसाने आए थे यहां पर कृष्ण जी ने राधा और उनकी सहेलियों को छेड़ा था। उसके बाद राधा अपनी सखियों के साथ लाठी लेकर कृष्ण जी के पीछे दौड़ने लगी। तभी से बरसाने में यह लठमार होली शुरू हुई थी।

बरसाना की होली क्यों प्रसिद्द है?

भारत को पूरी दुनिया में सबसे अधिक संस्कृत देश कहा जाता है। यहां पर लगभग हर हफ्ते कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता है। हालांकि इस देश में मुख्य रूप से तीन बड़े त्यौहार हैं जिनमें दीपावली, होली और रक्षाबंधन शामिल है। इनमें से होली का त्योहार ऐसा होता है जो विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है लेकिन इसका एक नया तरीका है जिसे लठमार होली कहा जाता है जो कि उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास बरसाना में मनाया जाता है।

लठमार होली का इतिहास

कहा जाता है कि बरसाना राधा जी के जन्म का स्थान है और राधा जी कृष्ण जी की प्रेमिका थी। ऐसा कहा जाता है कि पुराने काल में श्री कृष्ण होली के समय बरसाने आए थे यहां पर उन्होंने राधा जी और उनकी सहेलियों को छेड़ा था, जिसके बाद साखियां और राधा जी कृष्ण जी के पीछे लाठी लेकर दौड़ने लगी थी तभी से यह लठमार होली प्रसिद्ध हो गई।

बरसाने की लठमार होली (Lathmar Holi)

बरसाना में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर नंद गांव के लोग होली खेलने आते हैं। लठमार होली डंडों और ढाल से खेली जाती है इसमें महिलाएं पुरुषों पर डंडे बरसाती हैं और पुरुष स्त्रियों के इस डंडे के वार से ढाल लगाकर बचने का प्रयास करते हैं लेकिन यह सिर्फ खेल और दिखावे के लिए होता है, महिलाएं सचमुच पुरुषों की  धुनाई नहीं करती।

अमूमन भारत के अन्य भागों में होली, जिस दिन होलिका का दहन किया जाता है। उसके अगले दिन मनाई जाती है लेकिन मथुरा, वृंदावन, बरसाना, गोकुल, नंदगांव में कुल एक हफ्ते तक होली चलती है. हर दिन की होली अलग तरह की होती है।

लठमार होली की तैयारी

इस लठमार होली में कृष्ण जी के सखा कहे जाने वाले जिन्हें स्थानीय भाषा में “होरियारे” कहा जाता है, इस होली की तैयारी सुबह से ही भांग की कुटाई और छनाई के साथ शुरू कर देते हैं। दिन चढ़ने के साथ ही नंद गांव से बरसाना जाने की तैयारी शुरू हो जाती है और रास्ते में नंद गांव वासी रसिया गीत गाते हुए गुलाल उड़ाते हुए एक दूसरे को छेड़ते हुए बरसाना पहुंचते हैं और लठमार होली खेलते हैं। बरसाना की यह होली भारत के विविध रंगों की छटा का ही एक रंगारंग रूप है।