टनकपुर— बागेश्वर रेल लाईन बनने का सपना संजाये लोगों को रेल मंत्री के बयान के बाद बड़ा झटका लगा है। एक प्रश्न के जबाब में रेल मंत्री केइसे अलाभकारी बताने के बाद से इस रेल लाईन के भविष्य पर ही सवाल खड़े हो गये है।
इस रेल लाईन के बनने से सड़क से 275 किमीदूरी के मुकाबले 137 किमी दूर तय करनी पड़ती और महज ढाई घंटे में टनकपुर से बागेश्वर की दूरी तय हो सकती थी।
यह रेलवे लाईन अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय क्षेत्र के चार पर्वतीय जिलों को कवर करती। लोगों को उम्मीद थी कि इस रेल लाईन के बनने से अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत के विकास को नई गति मिलेगी।
अंग्रेजी शासन काल में कुमाऊं के अंतिम रेलवे स्टेशन में से एक टनकपुर से बागेश्वर तक रेल लाईन के लिये 1890 से कवायद शुरू हुई। अंग्रेजी शासन काल में इस रेल लाइन का पहला सर्वे वर्ष 1911-12 में हुआ। लेकिन इसके बाद पहाड़ में रेलवे लाईन बिछाने की सोच अपना मूर्त रूप नही ले पाई। हालांकि लोग इस लाईन को बनाये जाने के लिये मांग करते रहे। आजादी के बाद भी सरकारों ने इस क्षेत्र की कोई सुध नही ली। और यह लाईन केवल एक सपना बनकर ही रह गई। 1994 में गुसाईं सिंह दफौटी के नेतृत्व में बागेश्वर से एक संघर्ष समिति ने रेल लाईन को बागेश्वर तक लाने के लिये काफी संघर्ष किया।
कांग्रेस सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा तो दिया लेकिन धरातल पर कुछ नही किया।आजादी के बाद मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में वर्ष 2006 में दोबारा इस रेल लाईन का सर्वे किया गया। हालांकि इस बार तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रेल बजट में रेल लाइन के सर्वे के लिए बजट का प्रावधान भी किया था। 2006 में हुए सर्वे में टनकपुर से बागेश्वर की दूरी 137 किमी आंकी गई थी । महाकाली के समानांतर 67 किमी लाइन भारत-नेपाल की अन्तरराष्ट्रीय सीमा के समानान्तर प्रस्तावित की गई थी। जबकि 70 किमी रेलवे लाईन भारतीय क्षेत्र में बिछाई जानी थी।
इसके बाद 2011 में भी इस रेल लाईन के सर्वे के आदेश हुए मगर यह आदेश कागजों तक ही सिमटकर रह गया। अब रेल मंत्री के बयान के बाद लगता है कि सरकार महत्वाकांशी परियोजना को पूरा करने के लिये संजीदा नही है। रेल लाईन बनने से पंचेश्वर, सेराघाट जैसे इलाके रेल लाईन से जुड़ सकते थे।