बचपन की याद किशना की तान बद्रू के बहाने…

कोई लौटा दे वो दिन ललित मोहन गहतोड़ी आज मुझे अपने बचपन के दोस्त घाम तातन… उर्फ बद्रू की धाध और किशना की बासुरी की…

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कोई लौटा दे वो दिन

ललित मोहन गहतोड़ी

आज मुझे अपने बचपन के दोस्त घाम तातन… उर्फ बद्रू की धाध और किशना की बासुरी की धुन याद आ रही ठैरी। जब हम दूर पहाडियों के बीच आम की छांव में दोस्तों के साथ उस धुन को सुनकर लुक्का छिपी, अंठी, गिल्ली डंडा, संपोलिला, अड्डू आदि पारंपरिक खेलों को खेला करते ठैरे, कभी कभी तो धडे की बाल से टोरकेट भी खेल लेने वाले ठैरे। बाल खो गई तो जब तक नहीं मिलती रन लेते रैने वाले ठैरे। टोरकेट में झगड़े के चांस ज्यादा होने वाले ठैरे। तीन दशक तब की बहुत पुरानी बात नहीं ठैरी ठैरी। गांव में किशना सबका राजदुलारा ठैरा, सुंदर सा गोल मटोल एकदम नटखट। हम बच्चों की टोली सुबह से ही शरारतें करते रैने वाली ठैरी। गांव के सभी बूबू आमा एकदम सीधे ठैरे किसी से कुछ नहीं कैने वाले ठैरे, उनकी तरफ से सब राम राम ठैरी। बच्चों और बूढ़ों के अलावा धधार बद्रू ही कुछ ज्वान ठैरा बस। शेष सब ज्वान लोग तो देश के अलग अलग कौनों में नौकरी के लिए गए ठैरे।
काली कुमाऊँ के पाटी विकास खंड में स्थित रैगल बैड की ठीक सामने की पहाड़ी के तलहटी में स्थित बग्जवाला नामक स्थान में मेरा प्रवासी गांव ठैरा। विशेषकर ठंडियों में गर्म घाटी होने से वहां हम लोग होलियों से पहले तीन चार माह माइग्रेशन में जाने वाले ठैरे बल। इस दौरान मेरे गांव के लोग साल भर के लिए अनाज, जानवरों का चारा और जलौन लकडी की व्यवस्था करने वाले ठैरे बल। दूर नदी किनारे अनाज पीसने का घट्ट (पनचक्की) भी ठैरी। वहां बड़े बड़े पानी के तालाब ठैरे जहां बच्चे तैरने बाले भी ठैरे। एक तरफ अनाज उगाने के लिए बड़े बड़े खेत भी ठैरे।
गांव में हम उम्र के सखा साथियों की कमी नहीं ठैरी। उनमें किशना और बद्रू दो अनमोल हीरे ठैरे जिनकी वजह से गांव में चहल पहल रैने वाली ठैरी। सुबह होते ही बद्रू की वो मीठी धाद, “कोई घाम तातन आता है। चुपड़ी रोटी खाता है”… आ जाने वाली ठैरी तभी किशना की बासुरी की धुन भी बज उठने वाली ठैरी। तब हम सारे बच्चे जो जिस हालत में है उसी हालत में दूर पगडंडियों में आ रही धूप को सेंकने भाग जाते ठैरे, बासी ताजी जैसी हाथ पड़ जाये सपोड़ा सपोड़ खा पी। कुछ नहीं हाथ मिला तो चटनी-रोटी की काटी-काटी बनाके दौड़ लगा देने वाले ठैरे। अमूमन हमारे गांव के आंगनों में आठ बजे बाद ही धूप पहुंचती ठैरी बल फिर दिनमान रैने वाली ठैरी। सो सब के सब बद्रू की धाध और किशना की बासुरी की धुन सुनकर भागने की फिराक में रहते ठैरे। फिर दिनभर वही धमाचौकड़ी। घर वाले आवाज देते देते थक जाते ठैरे और हम अल्हड मस्त खेलों में रमे रहते ठैरे। गांव के लोग नाश्ता आदि आमा बूबू के हवाले कर जंगल और खेतों में अनाज, ईधन और गोवंश के लिए चारे की तलाश में निकल जाया करते। उधर आमा लोग हमको घर आने के लिए घाद लगाते लगाते परेशान हो जाने वाली ठैरी हम कहां टस से मस होने वाले ठैरे।
किशना तो बासुरी बजाते हुए गूड और मलाई की लिसलौटी पकाने में बडा ही माहिर ठैरा। इसे पकाने के लिए वह घर से बर्तन लेके लाया ठैरा और हम बारी बारी गूड और मलाई लाने वाले ठैरे, आग में पकी लिस्लौटी खूपै स्वाद होने वाली ठैरी। आखिरकार जब गांव के लोग जंगल से लौट रहे होते तो तब तक हम लिस्लौटी पका पुकी के खा लेने वाले ठैरे। उधर फिर दिन के खाने की तैयारी होने बाली ठैरी बल, गांव में सभी के घर तीन टैम का चूल्हा जलने वाला ठैरा और रोज चूल्हे की लिपाई भी होने वाली ठैरी। दूध, घी और छाछ की तो गांव में बहार ठैरी। बच्चों को घर के कामों से दूर रखा जाने वाला ठैरा शारिरीक और मानसिक विकास का महत्व होने वाला ठैरा। खेलने के बाद नौले जाकर जमकर नहाना ठैरा…छलबल करके।
सुबह शाम सबको प्रणाम करना ठैरा, शुभाशीष लेना ठैरा। बुजुर्ग कैने वाले ठैरे दण्ड बैठक के साथी साथ वर्जिश भी हो जाने वाली ठैरी। इधर सबको प्रणाम करने के बाद हमारी फिर उधम की तैयारी शुरू हो जाने वाली ठैरी। गिल्ली या बेत्तू चल बे….नहीं नहीं आज पद्धू खेलैगे…बेटा समझ ले ढाटली मत करना बीच गेम में.. भागना मत घर को… घरों में दिन के खाने की तैयारी हो रही होती हम धूप में पसीने से सने खेलों में मस्त रहते थे। तभी वहां ठीक सामने से धाद लगने वाली ठैरी। खालो रे खाना खालो निरगंडो…भात, दाल टप्क्या, भट की चडक्वानी और झोली भात बना है, सुना है किसी के वहां तो खीर की भी खुश्बू आ रही ठैरी। यही एक ऐसा वाक्य था जो बच्चों को ललचा देता था। तब किसी घर में खीर बनना किसी दावत से कम नहीं था। बद्रू तो धद्यार ठैरा उसने किसी के घर में बनी खीर चख ली होगी चलो देखते हैं।
चल बे तभी पैले ही कह रया ठैरा बीच गेम में ढाटली मत करना यार अगली बार पद्दू तूई बनेगा… तब हमारा घाम तातन सुबह सात बजे से शुरू होकर दोपहर की धमाचौकड़ी के साथ छूटता ठैरा। आज बद्रू और किशना की याद आ रही ठैरी मैं भी धूप सेंकने के लिये छज्जे पर जा रहा ठैरा। पिछले एक महीने से रूक रूक कर हो रही बारिश से कपड़ों में तक सीलन भर गई ठैरी। बद्रू कहता ठैरा सुबह-सुबह धूप सेंकने की आदत होनी चाहिए ठैरी बल। धूप विटामिन डी का भरपूर स्रोत होने वाली ठैरी। अब मुझे गुनगुनाती धूप में बैठकर किशना के बासुरी की मधुर तान याद आने वाली ठैरी बल।