10 साल से सरकारी स्कूल भवन में रहते हैं यह आपदा प्रभावित
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अल्मोड़ा, 09 अगस्त- अल्मोड़ा जिले के सेराघाट के पास खैरखेत गांव हैं यह पूरा गांव 2010 की आपदा में तबाह हो गया था.
लोगों के घर जमीदोंज हो गए. आनन फानन में 6 परिवारों को समीप ही जैंगल(जैंगन) नदी किनारे बने सरकारी स्कूल में रखा गया. पंचायत भवन के निचले तल में यह लोग अपने मवेशीयों को लाए.
लेकिन वक्त का चक्का एक दशक आगे घूम गया लेकिन खैरखेत के 6 परिवारों की विस्थापन की सरकारी फाइलें मंजिल तक नहीं पहुंच पाई. इस दौरान कुछ परिवार यहां से पलायन कर गए जो रह रहे हैं उनकी बेबसी पूरी कहानी बयां कर देती है.
यह एक बिडंबना ही कहलाएगी कि आपदा के दौरान जो बच्ची कक्षा 3 में गई थी वह अब 12 वीं में पढ़ती है.
अब सिस्टम की लेटलतीफी इनकी उम्मीदों को,खत्म कर रही है तो अव्यवस्थाएं जिंदगी की गाड़ी को खींचने में आड़े आ रही है. सरकारी स्कूल में जो शौचालय बना था वह जर्जर हो गया है. सामने बह रही नदी ही इनके पानी का साधन है शौच के लिए मजबूरन खुले में जाना पड़ता है. चारों ओर जंगल से घिरे इस इकलौती सरकारी बिल्डिंग में साँझ होते ही गुलदार की आमद दहलाने को काफी है.
एक सरकारी स्कूल में एक साथ कितने परिवार रह सकते हैं इसका सवाल सिस्टम से नहीं आप खुद से कीजिए हकीकत शर्म से सिर झुका देगी. इन आपदा प्रभावितो को उपलब्ध कराए गए घर के पास बिजली विभाग एक एलटी पोल नहीं दे पाया है तो सोलर स्ट्रीट से उजाला करने वाले विभाग को बेबसी का यह अंधेरा नहीं दिखा.
पानी तो रामभरोसे या फिर कहें तो जैंगल नदी भरोसे ही है. इन अव्यवस्थाओं के चलते इस परिवार को अपने बच्चों की शादी करने में दिक्कते आ रही है.
विस्थापन अभी भी इनके लिए एक नारे जैसा है.जमीन की तलाश अब तक नहीं हो पायी यह आपदा प्रभावितों का कहना है.
कहा जाय तो भौसियाछाना ब्लॉक के खैरखेत में एक दशक से रह रहे आपदा पीड़ितों के साथ प्रदेश सरकारों ने मजाक ही किया है.
2010 के बाद बेघर हुए लोगों को आर्थिक मदद के नाम पर कई बातें हुई लेकिन धरातल पर कोई काम हुआ यह दिखा नहीं.
10 सालों में राज्य तीन मुख्यमंत्री और कई अधिकारी बदल गए लेकिन स्कूल में जिंदगी गुजार रहे कमजोर वर्ग के इन परिवारों को एक अधत अपना घर तक नहीं मिला.
गरीब आपदा पीड़ितों का कहना है कि वह गरीब और बेबसी में स्कूल भवन में कैदियों की तरब रहने को मजबूर हैं.
खैरखेत में रहने वाले 6 परिवारों में दनी राम ,गोविंद राम ,हरीश राम, बहादुर राम, सुजान राम, किशन राम के परिवार के 36 लोग जिंदगी में 2010 की काली रात आपदा ने मानो कहर बरपा दिया.
तब आपदा के समय परिवार के मुखिया धनीराम की मौत सदमे से मौत हो गई.कुछ समय बाद गोपाल राम ने अपनी बहू व पोती खो दी. परेशानी में किशन राम व बहादुर राम के परिवार ने किया गांव से पलायन . अब दो परिवार ही यहां रह गए हैं.
इस आपदा में गांव की डेढ़ सौ नाली जमीन तबाह हो गई थी.
तब से छह परिवारों को सरकार ने मदद के नाम पर पहली बार पीड़ितों को खैरखेत स्थित जूनियर हाई स्कूल में शिफ्ट कर दिया. तब से 10 साल बीतने को हैं.
प्रभावित परिवार के मुखिया गोविंद राम ने बताया पिछले 10 सालों से सिर्फ आश्वासन में ही मिलते आ रहे हैं! आज तक मकान तो दूर भूमि तक नसीब नहीं हुई .
परिवार की महिला कमला देवी का कहना है इन सालों में तब कक्षा 3 में पढ़ने वाली लड़की ने इंटर में पहुंच गई. दो लड़के और एक लड़की विवाह के योग्य होगे लेकिन हमारी बदकिस्मती घर के अभाव में कोई रिश्ता करने को तैयार नहीं पूछते हैं तुम्हारे पास रहने को घर नहीं कहां रहेगी हमारी लड़की.
इधर ग्राम प्रधान संतोष आर्य का कहना है कई बार शासन प्रशासन से विस्थापन की गुहार लगा चुके हैं . आंदोलन भी किया जा चुका है वास्तव में यह परिवार काफी दिक्कतें में वहां रहने को मजबूर हैं.
वास्तव में हालात रुला देने वाले हैं. आपदा प्रभावित यह परिवार आसमान के नीचे बारी -बारी से खाना बनाते हैं. क्योंकि स्कूल भवन के अंदर किचन नहीं है. इनका प्रभावित परिवारों का कहना कि कि उनके पास श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन भी नहीं है. साथ ही मनरेगा जाँब कार्ड की जानकारी भी उन्हें नहीं है. साग सब्जी उगाएं इसके लिए भी जगह नहीं है.
आपदा प्रभावितों को सबसे अधिक निराशा जनप्रतिनिधियों से है जो वोट मांगने के अलावा कभी उनके हाल पूछने तक नहीं आए.
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