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अनोखी है कुमाऊं की होली (Kumaun Ki Holi)

Newsdesk Uttranews
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11 मार्च 2020

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हरीश चन्द्र अण्डोला

कुमाऊँ में होली (Kumaun Ki Holi) का इतिहास सदियों पुराना रहा है। करीब 300 सौ साल पहले रामपुर के उस्ताद अमानत हुसैन ने कुमाऊँ में होली (Kumaun Ki Holi) गीतों की शुरूआत की थी, और तब से लेकर आज तक कुमाऊँ में बैठकी और खड़ी होली इसी अंदाज में मनाई जाती है। जिसमें राग रागिनीयों का प्रयोग किया जाता है ।

पौष माह के पहले रविवार से चीड़ बंधन तक तकरीबन ढाई माह तक चलने वाली यह होली युवा पीढ़ी को बहुत भाती है, इसलिए कुमाऊँ के युवा बड़ी ही शिद्दत से अपनी संस्कृति और परंपरा को पिरोने के कार्य में जुटी है ताकि आने वाली पीढ़ी भी कुमाऊँनी होली (Kumaun Ki Holi) के स्वरूप को जाने और अपनाएं।

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जब फागुन का रंग चढ़ता है तो सारे भेद खत्म हो जाते हैं, सिर्फ प्रेम का रंग ही शेष रह जाता है और सब उसी रंग में सराबोर रहते हैं जी हां हम बात कर रहे हैं होली (Kumaun Ki Holi) की और कुमाऊं में इन दिनों होली (Kumaun Ki Holi) की मस्ती छायी है। कुमाऊं में जहां उत्तराखंड के विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों से लोग आकर बसे हैं, यहां रंगारंग होली की शुरुआत बसंत पंचमी से ही हो जाती है। कुमाऊं एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां करीब ढाई महीने पहले ही गायन की शुरूआत हो जाती है। बैठकी होली की यह अनोखी परंपरा कुमाऊं में सदियों से चली आ रही है। पौष माह के पहले रविवार के साथ ही कुमाऊं की धरती में होली (Kumaun Ki Holi) की शुरूआत हो गई है।

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इस अनूठी परंपरा में होली (Kumaun Ki Holi ) तीन चरणों में मनाई जाती है। बैठकी होली के माध्यम से पहले चरण में विरह की होली गाई जाती है और बसंत पंचमी से होली गायन में श्रृंगार रस घुल जाता है। इसके बाद महाशिवरात्री से होली के टीके तक राधा-कृष्ण और छेड़खानी-ठिठोली युक्त होली गायन चलता है। अंत में होली अपने पूरे रंग में पहुंच जाती है और रंगों के साथ खुलकर मनाई जाती है। बैठकी होली पारम्परिक रूप से कुमाऊं के बड़े धूम धाम के साथ हारमोनियम, तबले पर गाये जाते हैं।

आयो नवल बसन्त सखी ऋतुराज कहायो, पुष्प कली सब फूलन लागी, फूल ही फूल सुहायो, राधे नन्द कुंवर समझाय रही, होरी खेलो फागुन ऋतु आइ रही’ ‘आहो मोहन क्षृंगार करूं में तेरा, मोतियन मांग भरूं’ ‘अजरा पकड़ लीन्हो नन्द के छैयलवा अबके होरिन में गीतों को गाया जाता है। बैठकी होली गायन में सभी रस और राग घुलकर इसे अपने आप मे कुमाऊं की सदियों से चली आ रही परंपरा को जीवित रखे हुए हैं।

वहीं बैठकी होली (Kumaun Ki Holi ) में आये लखनऊ, भरतखंड लखनऊ के विभाग अध्य्क्ष, होलियार और तबला वादक मनोज मिश्रा ने बैठकी होली में अपने तबले की ध्वनि से बैठकी होली में चार चांद लगा दिये, उनके मुताबिक बैठकी होली पहाड़ों में मनोरंजन का दूसरा ही साधन था।

होली का या रामलीला का इसलिए बैठकी होली पहाड़ों में बहुत ही महत्वपूर्ण है वही उनके मुताबिक बैठकी होली सामूहिक होती है एकल नही होती। इस होली में सभी लोग एक लाइन को जोड़ते हुए जाते हैं इसलिए बैठकी होली का अपना अलग ही महत्व है। वही युवा पीढ़ी में भी बैठकी होली का खुमार सर चढ़कर बोल रहा है काली कुमाऊं की खड़ी होली का अपना अलग ही अंदाज है।

शिवरात्रि से मंदिरों में शंकर भगवान पर आधारित ‘शिव तेरे मन मानी रहो काशी, होरी खेल सदा शिव मतवाला’ से गायन शुरू हो जाता है। इसके बाद एकादशी पर्व शुरू होते ही चम्पा के दश फूल मालिन हार गुथों, दूसरे दिन कृष्ण की बाल लीलाओं पर आधारित नित यमुना के तीर का गायन किया जाता है।

तीसरे दिन से बारह महीनों में आने वाली ऋतु पर आधारित प्रेम प्रसंग की ‘खेलत गोपी ग्वाल बाल मथुरा से होली आई’, चौथे दिन श्रृंगार रस में प्रवेश कर यौवन संबंधी ‘जन बोले बलम में बिखर जाऊंगी, छोटी मत जाने मो बलमा’ उसके बाद आखिर के दो दिनों में वेदांतिक होलियां ‘तुम तप कर पार्वती तुम तप कर हो, दध लूटो नंद के लाल, ओ टलने की नहीं जो विधि बह्मा ने लिख दी’ आदि होलियों का गायन किया जाता है।

इधर कुमाउनीं होली (Kumaun Ki Holi) में बैठकी व खड़ी होली के मिश्रण के रूप में तीसरा रूप धूम की होली कहा जाता है। यह ‘छलड़ी’ के आस पास गाई जाती है। इसमें कई जगह कुछ वर्जनाऐं भी टूट जाती हैं, तथा ‘स्वांग’ का प्रयोग भी किया जाता है।

महिलाओं में स्वांग अधिक प्रचलित है। इसमें महिलाएं खासकर घर के पुरुषों तथा सास, ससुर आदि के मर्दाना कपड़े, मूंछ व चस्मा आदि पहनकर उनकी नकल उतारती हैं, तथा कई बार इस बहाने सामाजिक बुराइयों पर भी चुटीले कटाक्ष करती हैं।

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आधुनिक दौर में जब परंपरागत संस्कृति का क्षय हो रहा है तो वहीं कुमाऊं अंचल की होली (Kumaun Ki Holi) में मौजूद परंपरा और शास्त्रीय राग-रागनियों में डूबी होली को आमजन की होली बनता देख सुकून दिलाता है युवा भी इस बैठकी होली में भी अपना योगदान देते हुए दिख रहे हैं, वहीं युवा होलियार का कहना है कि बैठकी होली (Kumaun Ki Holi) से हमको सीखने का बहुत मौका मिल रहा है जिस तरह से युवा वेस्टर्न कल्चर की ओर भाग रहा है उसको क्लासिकल म्यूजिक पर भी धयान देना चाहिए इससे हमको ही फायदा होगा सीखने का मौका मिलेगा।

खड़ी होली और बैठकी होली कुमाऊं का होली (Kumaun Ki Holi) का विशेष रंगमंच है, इसके अलावा होली में भगवान राम श्री कृष्ण और बन्नी भगवानों की होली भी गाई जाती है लेकिन जैसे जैसे होली का रंग अपने शबाब पर आता है तो यह होली रसिक अंदाज में भी पहुंचती है.

सामाजिक एकरूपता का संदेश देने वाला यह होली त्यौहार (Kumaun Ki Holi) बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। साथ ही नई पीढ़ी को उनकी उत्तराखंड की संस्कृति से जोड़ने का प्रयास किया जाता है। होलियारों महिलाओं का कहना है कि होली रंगों का त्योहार है। इस त्योहार को हर किसी को मनाना चाहिए और हर राग द्वेष को भूलकर प्रेम से होली का आनंद लेना चाहिए। होली हमें अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़े रखती है।

आने वाले पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति के बारे में सीखने का मौका मिलता है। यही एक कोशिश है कि पारंपरिक तरीके से होली मनाने के तरीकों को अपनाया जाए, जिससे अपनी संस्कृति को जिंदा रखा जा सके। गौर हो कि भले ही प्रवासी लोग अपने क्षेत्र से बाहर रहते हो, लेकिन होली का पर्व वे अपने तौर-तरीके से ही मनाते हैं। जिसका आगाज होते ही वे मस्ती में झूमते दिखाई देते हैं। वर्षों से चली आ रही पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और चंपावत की खड़ी और बैठकी होली (Kumaun Ki Holi) खासा आकर्षण का केन्द्र रहती हैं।

रात में श्रृंगार और वीर रस से संबंधित होलियों का गायन होता है। होली (Kumaun Ki Holi) के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयां बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

बेसन के सेव और दहीबड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं।

इस अवसर पर उत्तरी भारत के प्राय: सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहता है. बैठकी होली (Kumaun Ki Holi) के जरिए घर-घर में रंग जमा रही महिलाएं, कोरोना वायरस को लेकर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं. ताकि कोरोना वायरस लोगों को अपनी चपेट में न ले सके. स्वांग के जरिए लोगों को किया जा रहा है जागरूक. वैसे तो यहां की परम्परा के मुताबिक महिलाएं हर होली में हंसी-ठिठोली से भरे हुए स्वांग करती हैं. लेकिन इस बार के स्वांग कोरोना वायरस इर्द-गिर्द बनाए जा रहे हैं.

प्रोफेशन से टीचर कविता भट्ट जमकर होली (Kumaun Ki Holi) खेलती हैं. कविता को एक्टिंग का भी शौक है लिहाजा वो हर होली में स्वांग करती हैं. कविता बताती हैं कि वैसे तो वह हर होली में देवर-भाभी के मजाक से जुड़े हुए अनेकों स्वांग करती रही हैं लेकिन इस बार उन्होंने अपने स्वांग को कोरोना की जागरूकता के लिए तैयार किया है.

कविता का कहना है कि महिलाएं जागरूक हों और परिवार को भी कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट से बचा सकें यही उनका मकसद है. कविता के साथ स्वांग करने वाली सुनीता पंत कहती हैं कि उन्हें इस तरह के जागरूकता से भरे स्वांग कर के अच्छा महसूस हो रहा है. उनका कहना है कि क्योंकि हमने अपने स्वांगो को बेहद मनोरंजक बना रखा है इसलिए महिलाओं तक इसका सीधा संदेश जा रहा है.

लेखक उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके है। और वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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