अंध भक्त मुक्त भारत कल्पना के सोशल इफैक्ट्स

भाजपा के नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस के राहुल गांधी सोशल मीडिया पर दोनों की छवि में काफी अंतर ललित मोहन गहतोड़ी  की कलम से राहुल…

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भाजपा के नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस के राहुल गांधी

सोशल मीडिया पर दोनों की छवि में काफी अंतर

ललित मोहन गहतोड़ी  की कलम से

राहुल में मोदी तलाश रहे क्षत्रपों को यह समझना अभी जरूरी है कि सत्ताधारी भाजपाइयों की बुलंदी का ग्राफ सोशल मीडिया सहित आमजन के दिलो-दिमाग पर बढ़-चढ़कर हिलोरे मार रहा है। ऐसे मेंं आगामी लोकसभा चुनावों में राहुल को मोदी के सामने रखकर चुनावी माहौल तैयार करना एक रणनीति का हिस्सा है। या फिर महागठबंधन के रूप में शतरंजी बिसात पर किसी मोहरे को सामने कर बैठे-बिठाए शह और मात की गुपचुप तैयारी चल रही है।

 

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photo Source https://www.mensxp.com

सोशल मीडिया में आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर सामने आ रहे रूझान में दोनों धुर विरोधी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की ओर से अंध भक्त मुक्त भारत और कांग्रेस मुक्त भारत के जुमलों की चासनी में दोतरफा लपेटा जा रहा है। सोशल नेटवर्किंग के जरिए उछल रहे विवाद में इस विषय पर सोशल पंडितों ने अपनी आंख जमानी शुरू कर ली है। इसके चलते इन साइट्स में उभर कर सामने आ रहे जुमलों के परिणाम खासे रोचक होते जा रहे हैं।

इस बीच सोशल मीडिया के जरिए फैल रहे तथ्यों के साथ एक नया वाकया जुड़ गया है। वह यह कि गांधी परिवार के वंशज राहुल अब देश की कमान संभालने के लिए एक कदम आगे बढ़ाएंगे। गाहे-बगाहे हाईकमान की ओर से संकेत मिलने के बाद कुछ हद तक इस बात को लेकर उस ओर से चुनावी रणनीतियों में उछाल सा आ गया है। दरअसल कांग्रेसी क्षत्रपों की ओर से मिले इनपुट के आधार पर मानें तो इसके लिए राहुल को सामने कर गुपचुप तैयारी भी शुरू कर ली है। बावजूद इसके सोशल साइट्स पर भाजपा के नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस के राहुल गांधी की छवि कोसों दूर उभरती दिखाई दे रही है। यदा कदा राहुल भी अपने मिशन-लोस 2019 को अमलीजामा पहनाने को लेकर खुलकर अब प्रधानमंत्री पर कई तरह से जनता को बरगलाने के आरोप लगाते हुए स्वयं की टीआरपी बढ़ाने में जुटे हैं। उनकी ओर से मोदी को प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 15 लाख, देश के दो करोड़ बेरोजगारों को रोजगार और मेक इन इंडिया सहित अन्य मुद्दों पर को घेरना जारी है।

बावजूद इसके उम्र और अनुभव के मामले में मोदी राहुल से कोसों मील दूर का सफर तय कर चुके परिपक्व नेताओं की जमात में शामिल हो चुके हैं। अटल विहारी वाजपेयी जी के बाद यदि भाजपा में जन सुलभ योजनाओं के लिए किसी को याद किया जाएगा तो वह नरेन्द्र मोदी हैं जिनकी आमजन की नजर में अपनी एक विशेष छवि अंकित हो रही है।

वही अगर तस्वीर के दूसरे पहलू को देखे तो कुछ समय से राहुल के 2019 में देश का प्रधानमंत्री बनने की चाह रखने के बाद से ही भाजपा विरोधी कांग्रेस के बीच इसका असर दिखने लगा है। आगाज के बाद एक के बाद एक ताबड़तोड़ रैली करते हुए कांग्रेसी क्षत्रप रणभूमि में नजर आने की तैयारियों में जुटे हैं। यह सब खाका राहुल के चेहरे को सामने रखकर तैयार किया जा रहा है। जहां तक सोशल नेटवर्किंग की बात है यहां पर राहुल अपनी छवि आम जन मानस के मन में कुछ खास नहीं बना पाए हैं। दूसरा यह कि इसी बात से कई क्षत्रपों ने अभी से मुंह फेरना शुरू कर दिया है। मेरे एक फेसबुक मित्र हैं कांग्रेस के पक्के सिपाही हैं लेकिन उनकी फेसबुक वाल में भाजपाइयों के कमेंट ही ज्यादातर होते हैं, जो नमो पर शुरू होकर नमो पर ही पूरे होते देखे जा सकते हैं। इसके अलावा भी अन्य सोशल साइट्स की तुलनात्मक पोस्टों में नमो का पलड़ा लगभग भारी ही रहा है।

सीधी बात पर आएं तो राहुल ने दावा किया है कि आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आएगी। वह जानते हैं। भाजपा क्षत्रप नमो की आड़ में अपनी पक्की जीत की गारंटी के साथ गिने चुने समारोहों के अलावा ज्यादातर अवसरों पर जनता से दूरी बनाए हुए हैं। इस दौरान सोशल मीडिया में देखा गया कि​ नेताजी को पांच साल में जनता की याद आती है। इसकी एक वजह यह भी लगती है कि उधर से राहुल को प्रधानमंत्री का चेहरा प्रचारित करने के बाद इधर भाजपाई क्षत्रपों ने आगामी लोस में नमो की अगुवाई में अपनी पक्की जीत को लेकर कानों अंगुली डाल ली हो। या हो सकता है कि नमो लहर के साथ बहती गंगा में हाथ धोने की सत्तापक्ष के क्षत्रपों की अपेक्षा बलवती हो रही हो। जो यह नहीं जताना चाहते कि राम लहर आस्था से जुड़ी थी। जबकि यह व्यक्ति विशेष की लहर है, जिसका अभी समूचा देश मूल्यांकन कर रहा है, उसे परख रहा है।

सीधे तौर से यह कहा जा सकता है कि इन कमजोरियों के चलते असंतुष्टों पर भाजपा विरोधी क्षत्रप नजर लगाए हुए हैं। अब अंध भक्त मुक्त भारत होता है या फिर कांग्रेस मुक्त भारत; होगा दोनों में से एक ही क्योंकि तीसरा मोर्चा गठित होना अभी भविष्य के गर्त में है। लेकिन इस बात की गारंटी है कि सोशल मीडिया के जरिए उत्तराखंड में लोकसभा के लिये चुनावों का आगाज़ अब लगभग हो चुका है। जो दोनों प्रमुख धुर विरोधी पार्टियों की दिशा और दशा तय करने में मददगार साबित होगा।

फिलहाल उधर से देश में व्यक्ति विशेष को हराने के लिए महागठबंधन बनाए जाने की चर्चा जोरों पर है। और इधर निर्माणाधीन आल वेदर रोड, नोटबंदी पहाड़ की अर्थव्यवस्था में सन्नाटा पसरा हुआ है। पहाड़ को मैदानी इलाकों से जोड़ने वाली लाइफ लाईन लगातार गिर रहे मलबे की चपेट में है। सन्नाटा पसरे सरे बाजार शतरंज की बिसात के साथ ग्राहक के इंतजार में लोकसभा की सुगबुगाहट चल निकली है।