Almora-साहित्यकारों की नजरों में अल्मोड़ा भाग- 2

अल्मोड़ा में उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ (14 दिसम्बर, 1910 – 19 जनवरी, 1996) ने सन 1949 के…

अल्मोड़ा में उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’

हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ (14 दिसम्बर, 1910 – 19 जनवरी, 1996) ने सन 1949 के ग्रीष्म में लगभग डेढ़ महीना Almora में बिताया।


सुमित्रानन्दन पन्त से परिचित होने के कारण, उनके ही बुलावे पर वे लेखन-कार्य करने के लिए अल्मोड़ा आए थे। पन्त जी ने देवदार होटल की एक छोटी-सी कॉटेज में उनके रहने की व्यवस्था करवा दी थी। उन्हीं दिनों यशपाल भी Almora आए हुए थे। शिमला के बाद अल्मोड़ा में ही अश्क की यशपाल से दूसरी बार भेंट हुई थी।


यशपाल पर लिखे गए अपने एक संस्मरण में अश्क ने Almora में बिताए उन दिनों का दिलचस्प विवरण इस प्रकार प्रस्तुत किया है –
” श्री देव दा पन्त, श्री हरीश जोशी, श्री गणेश, श्री धर्मानन्द और अन्य बन्धुओं के स्नेह में अल्मोड़ा का प्रवास सुखद लगने लगा। इतने में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छुट्टियाँ हो गईं और ‘इप्टा’ के कुछ कार्यकर्ता तथा लखनऊ और ग्वालियर के कुछ युवक भी अल्मोड़ा आ पहुँचे, जिन में लखनऊ की स्टूडेण्ट यूनियन के मंत्री भी थे।

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उन्हीं से मैंने एक दिन भुवाली चल कर यशपाल से मिलने की इच्छा प्रकट की। हम अभी प्रोग्राम बना ही रहे थे कि एक सुबह एक युवक ताराचन्द ने आ कर बताया कि यशपाल अल्मोड़ा पधारे हैं और डाक बँगले में ठहरे हैं। मैं उसी वक्त डाक बँगले को चलने के लिए तैयार हुआ, पर मालूम हुआ कि वे देव दा से मिलने गए हुए हैं। वापसी पर वे मुझे मिलने आएँगे। उन्हें मेरे यहाँ होने का पता है और वे देव दा से मिल कर मेरे ही यहाँ आएँगे।


देव दा, श्री सुमित्रानन्दन पन्त के बड़े भाई हैं। पूरा नाम देवी दत्त पन्त है। एडवोकेट हैं। अल्मोड़ा कांग्रेस कमेटी के प्रधान हैं और अब तो भारत की पार्लियामेंट के सदस्य भी हैं।


मेरी कॉटेज बड़ी सड़क के नीचे थी। सड़क से जब कोई आदमी मेरी कॉटेज को उतरता था तो अपनी खिड़की से मैं पहले ही जान जाता था। खाना खा कर लेटा ही था कि मैंने सीढ़ियों पर पाँवों की चाप सुनी और ताराचन्द को मार्ग दिखाते पाया। मैं उठ कर बैठ गया। ताराचन्द के पीछे यशपाल दुर्गा भाभी के साथ आ रहे थे। मैं दरवाजे के बाहर निकल आया। वे खुल कर मुझसे गले मिले। फिर उन्होंने दुर्गा भाभी से मेरा परिचय कराया। मैंने नौकर से चाय बनाने को कहा और हम अन्दर आ बैठे।


यशपाल भुवाली से पैदल पहाड़ी प्रदेश की सैर करते आ रहे थे। बातचीत में चाय आ गई। यद्यपि चाय का समय न था, लेकिन गर्म चाय के प्याले को यशपाल कभी नहीं ठुकराते। चाय के मध्य मैंने पूछा कि Almora कितने दिन रहने का इरादा है। यशपाल ने कहा कि Almora उन्हें पसन्द आया है , यदि रहने का कोई प्रबन्ध हो जाए तो वे डेढ़ – दो महीने वहीं काटेंगे। मैंने कहा कि यदि एक छोटे – से कमरे में आपको असुविधा न हो तो जब तक मकान का प्रबन्ध नहीं हो जाता , आप यहाँ दूसरे कमरे में आ जाइए।


यशपाल ने उठ कर कमरा देखा। पहले उस में फर्श नहीं था। चूँकि पन्द्रह – बीस दिन बाद कौशल्या – मेरी पत्नी – बच्चे को ले कर आने वाली थी, इसलिए मकान मालिक से कह कर मैंने उसमें फर्श लगवा लिया था। कमरा काफी छोटा था, पर यशपाल ने कहा कि ठीक है और यदि मुझे कोई असुविधा नहीं तो उन्हें भी नहीं।

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फिर उन्हें कौशल्या के आने का खयाल आया, पर मैंने कहा कि अव्वल तो कौशल्या बीस-एक दिन बाद आएगी, तब तक आपको मकान मिल जाएगा और यदि न भी मिला तो आप दोनों उस कमरे में रह लीजिएगा और हम दोनों इस कमरे में रह लेंगे, और यशपाल सन्तुष्ट हो गए। मैं तो चाहता था कि वे उसी शाम उठ आएँ , पर यशपाल सब से पहले बाजार की सैर करना चाहते थे, इसलिए तय हुआ कि रात डाक बँगले में ही गुजारेंगे, दूसरे दिन सुबह ही मेरे यहाँ आ जाएँगे।


यशपाल सात दिन मेरे साथ रहे। इस बीच देव दा ने ‘शक्ति कार्यालय’ का एक कमरा उनके लिए खाली करा दिया और यशपाल वहाँ उठ गए। ‘शक्ति कार्यालय’ मेरी कॉटेज से आध-एक फरलाँग ही के अन्तर पर था , इसलिए उन सात दिनों के निकट साहचर्य के बाद भी मैं जब तक अल्मोड़ा रहा, यशपाल से रोज साँझ-सवेरे, एक न एक बार भेंट होती रही।

Almora-साहित्यकारों की नजरों में अल्मोड़ा – भाग 1


यशपाल में सबसे पहले जो बात मुझे अच्छी लगी और जिससे मुझे ईर्ष्या भी हुई वह उनका लिखने का ढंग है। यशपाल दिन- भर सैर-सपाटा और गप-शप करके रात-रात-भर लिख सकते हैं। मैं जीवन में पहले भी अधिक सैर – सपाटा, इच्छा रहने के बावजूद, नहीं कर पाया और अब तो शरीर में उतनी शक्ति ही नहीं ।


यशपाल को सैर-सपाटे का बेहद शौक है। अज्ञेय की भाँति वे भी काफी पैदल घूमे हैं। उनकी कई कहानियाँ और लेख इस बात के साक्षी हैं। Almora में आते ही उन्होंने सारे बाजार अच्छी तरह देख डाले। दुर्गा भाभी को उनसे भी अधिक घूमने का शौक है। कई बार मैंने देखा कि यशपाल थके हैं, पर दुर्गा भाभी तैयार हुईं तो वे भी सैनिक झोला कंधे पर लेकर तैयार हो गए।
मैं इधर वर्षों से सैर – सपाटे का आनन्द नहीं ले पाया और जब यशपाल अपने मित्रों के संग घूमते रहे , मैं अपनी कॉटेज में बन्द लिखता – पढ़ता रहा।


लेकिन दो बार तो उन्होंने मुझे भी साथ घसीट ही लिया। एक बार हम जब सिमतोला की पिकनिक को गए। सिमतोला की पहाड़ी देवदार होटल से सात-आठ मील दूर है। वहाँ खाना- वाना रहा। खूब आनन्द आया, लेकिन मैं बेहद थक गया और फिर दूरी और चढ़ाई की सैर पर न जाने का प्रण करके अपने कॉटेज में पड़ा रहा ।


एक रात बाजार की काफी सैर करके हम लौटे तो चाँद निकल आया था। यशपाल ने तब देवदार होटल के बहुत ऊपर, नीचे से दिखाई पड़ने वाली कैंटोन्मेंट के देवदारों की पंक्ति को देखने का प्रस्ताव किया। साढ़े नौ बजे चुके थे। साधारणतः उस समय मुझे सो जाना चाहिए। लेकिन यशपाल ने साथ घसीट लिया। भरी चाँदनी में गगनचुम्बी देवदारों की छाया में कैंटोन्मेंट की एकाकी सड़कों पर घूमने में जो आनन्द आया , वह अकथ्य है। ऊपर जाकर हम गिरजे के एक ओर बैठ गए।

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चाँदनी में गिरजा किसी खोए हुए स्वप्न- महल- सा दिखाई दे रहा था और नीचे घाटी और देवदार के पेड़, हलकी- हलकी हवा की सरसराहट और चाँद मैं उतनी रात गए शायद कभी घर से न निकलता। कैंटोन्मेंट की उन सड़कों, वीथियों और देवदार की उन पंक्तियों में चाँदनी का जो दृश्य मैंने देखा उसके लिए मैं यशपाल का आभारी हूँ।”


दुर्गा भाभी-अपने साथियों के बीच ‘दुर्गा भाभी’ के नाम से प्रसिद्ध , ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ की सदस्य, दुर्गावती वोहरा क्रान्तिकारी भगवतीचरण वोहरा की पत्नी थी और भारत के स्वतन्त्रता – संग्राम में उनकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही।

लेखक परिचय— कपिलेश भोज

जन्म-तिथि:15 फरवरी, 1957
जन्म-स्थान:उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद का लखनाड़ी गाँव
शिक्षा:पहली से पाँचवीं तक कैंट प्राइमरी स्कूल,चौबटिया (रानीखेत) से।
कक्षा 6 से 12 तक इण्टर कॉलेज, देवलीखेत (अल्मोड़ा) ; नेशनल इण्टर कॉलेज, रानीखेत, और राजकीय इण्टर कॉलेज, नैनीताल से ।
बी.ए.और एम. ए.(हिन्दी साहित्य)कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के डी.एस. बी. कैम्पस से।
पीएच- डी.कुमाऊँ विवि नैनीताल से।
सम्पादन:1980 के दशक में कुछ समय तक गाजियाबाद (उ.प्र.) से प्रकाशित प्रसिद्ध हिन्दी मासिक पत्रिका ‘वर्तमान साहित्य’ का और 1990 के दशक में कुछ समय तक नैनीताल से प्रकाशित
त्रैमासिक पत्रिका ‘कारवाँ’ का सम्पादन किया ।
अध्यापन : 1988 से 2011 तक महात्मा गांधी स्मारक इण्टर कॉलेज , चनौदा (अल्मोड़ा) में प्रवक्ता (हिन्दी) के पद पर कार्य किया ।
प्रकाशित कृतियाँ :
यह जो वक्त है( कविता-संग्रह )
ताकि वसन्त में खिल सकें फूल (कविता – संग्रह)
लोक का चितेरा: ब्रजेन्द्र लाल साह (जीवनी)
जननायक डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट (जीवनी)
सम्प्रति: अल्मोड़ा में रह कर स्वतंत्र लेखन।

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