Almora- शोध परियोजनाओं के अनुसंधानों को प्रसार की दरकार

अल्मोड़ा, 5 मार्च 2021Almora– हिमालयी राज्यों में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत वृहद और व्यापकता के साथ शोध और अनुसंधान के कार्य उल्लेखनीय है,…

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अल्मोड़ा, 5 मार्च 2021
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हिमालयी राज्यों में राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत वृहद और व्यापकता के साथ शोध और अनुसंधान के कार्य उल्लेखनीय है, यह शोध परिणाम इस क्षेत्र की समस्याओं के समाधान हेतु क्रियांन्वित करने की जरूरत है।

यह बात वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की अपर सचिव एवं (स्टैग) प्रमुख बीवी उमादेवी ने मिशन की 15वीं वैज्ञानिक सलाहकार समूह (स्टैग) बैठक के दौरान कही। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की वैज्ञानिक व तकनीकी सलाहकार समूह की 15 वेब बैठक इस बार मंत्रालय द्वारा गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान में आयोजित की गई।

संस्थान के निदेशक डॉ. आरएस रावल ने इस अवसर इससे जुड़े देश के जाने माने वैज्ञानिकों और विभिन्न राज्यों के सचिव व विशेषज्ञों को स्वागत किया और कहा कि वह स्वयं अनेक राज्यों में जाकर परियोजना कार्यों व शोध अनुसंधानों का अनुश्रवण कर रहे हैं। मिशन के तहत अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य हुए है।

इस अवसर पर मिशन के नोडल अधिकारी इं. किरीट कुमार ने वर्ष 2016 से अब तक संचालित शोध परियोजनाओं की प्रगति आख्या प्रस्तुत करते हुए बताया कि विभिन्न हिमालयी राज्यों में जल संरक्षण, जैव विविधिता संरक्षण, आजीविका विकल्प, दक्षता और कौशल विकास, हानिप्रद पदार्थों के निपटान, ढांचगत विकास आदि क्षेत्रों में 170 से अधिक परियोजनाएं संचालित है। तीन वर्ष पूर्ण कर चुकी शोध परियोजनाों में अनेक के उल्लेखनी परिणाम आए है।

उन्होंने बताया कि देष के विभिन्न हिमालयी राज्यों में 3 हजार से अधिक जलस्रोतों के जमीनी अध्ययन व जलस्रोतों के पुनर्रूद्धार हेतु 120 प्रारूपों बनाने के साथ 11 हजार से अधिक वनस्पतियों और 30 हजार से अधिक जीव जंतुओं के डेटाबेस को मिशन के माध्यम से तैयार किया जा चुका है।

विभिन्न क्षेत्रों में नितांत आवश्यक मानचित्रों के साथ संकटग्रस्त 51 प्रजातियों पर भी अध्ययन कार्य किया गया है। दीर्घकालिक निगरानी केंद्रों की स्थापना में भी बड़ी सफलता मिली है और 450 से अधिक निगरानी क्षेत्र अब तक स्थापित किए जा चुके हैं।

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चीड़ वनों के उत्पादों के साथ प्लास्टिक के प्रबंधन के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों हेतु टिकाऊ सड़कों के निर्माण, 60 से अधिक लघु उद्यमों के प्रारूप, विभिन्न जलषोधक प्रणालियों, सतत आवास के प्रारूप, आदि को तैयार करने में विभिन्न राज्यों में उल्लेखीय कार्य हुए है।

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उन्होंने बताया कि विभिन्न राज्य सरकारों के साथ इस शोध उपलब्धियों को साझा किया जा रहा है जिससे हिमालयी राज्यों में इनका अनुप्रयोग हो सके। उन्होंने बताया कि अब तक हिमालयी राज्यों में सैकड़ों शोध पत्रों व पुस्तकों आदि के प्रकाशन के साथ 13 पेटेंटों को प्राप्त करने की सफलता भी मिली है।

उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में दी गई हिमालय फैलोशिप व स्थापित हिम नेचर लर्निग सेंटरों की प्रगति के बारे में भी जानकारी दी। दिन भर चले सत्र में परियोजना काल पूरा कर चुकी 60 से अधिक परियोजनाओं की भौतिक और वित्तीय समीक्षा की गई तथा नवीन परियोजनों के कार्यों का भी मूल्यांकन के साथ परियोजनाओं की कोविड संकट के कारण अवधि बढ़ाने पर भी मंथन किया गया।

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इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में संचालित परियोजनाओं की उपलब्धियों को राज्य सरकारों व अन्य संस्थानों के माध्यम से अनुप्रयोग में लाने वकालत विभिन्न वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार से प्रमुख सचिव कार्यालय ने भी इस बैठक में अपने सुझाव दिए और उल्लेखनी शोध परिणामों व माॅडलों के प्रति रूचि प्रकट की।

पर्यावरण मंत्रालय से वरिष्ठ सलाहकार ललित कपूर, डीएसटी से डाॅ निषा मेंदीरत्ता, संयुक्त सचिव वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय जिग्मित तकपा, उत्तर पूर्व क्षेत्रीय विकास मंत्रालय के निदेशक डाॅ. हावकिप, माउंटेन डिविजन के अपर निदेशक डाॅ. शरद सापरा, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. आर के कोहली, गुवाहाटी के राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान के प्रो. आरएम पंत, दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाॅ. डीसी उप्रेती, दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रो. वीके मिनोल्चा, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर प्रो. जेके गर्ग, डब्लूडब्लूएफ नई दिल्ली से दिवाकर शर्मा सहित अनेक विषय विशेषज्ञों ने इस वेबीनार में प्रतिभाग किया।

संस्थान से इं. आषुतोष तिवारी, पुनीत सिराड़ी, ई. सैयद रहुल्ला अली, दुरपा कश्यप, जगदीश चंद्र, आशीष जोशी आदि ने वेबीनार में सहयोग किया।

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