जानकार बताते हैं कि भैसवाड़ा फार्म की आबोहवा इसके लिए अनुकूल न होने के बाद भी जबरन यह कार्य यहां किया जा रहा है। ज्ञात हो कि बकरी और भेड़ विकास की एक लगभग 5 करोड़ से अधिक की परियोजना शासन स्तर पर लंबित है जबकि सम्बंधित विभाग की मंत्री द्वारा अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के उद्देष्य से यह कार्य किया जा रहा है। यहां बना ऊन संग्रह केंद्र भी पैसे की बर्बादी बताया जा रहा है। जबकि इसके लिए पशुपालन विभाग की जिले भर में बेकार पड़ी अनेक बिल्डिंगों को उपयोग किया जा सकता था। ज्ञात हो कि उत्तरकाशी व बागेश्वर जिलों में ऊन संग्रह का कार्य होता है अल्मोड़ा में नहीं । 37 हेक्टेअर में फैला भैसवाड़ा फार्म उत्तर प्रदेश के समय से ही चारा विकास का केंद्र रहा है। यहां बीते सालों में अनेक घास की किस्मों को आगे बढ़ाने का सराहनीय कार्य हुआ है। पहाड़ों में चारे के लिए उपयुक्त उक्त किस्मों को किसानों तक पहुंचाया भी जा रहा है। लेकिन विभाग के कर्ताधर्ता अब इसे मछली पालन के लिये उपयोग में लेना चाहते है।
मनान स्थित मछली पालन के बड़े ढांचे को छोड़कर मत्स्य विभाग द्वारा भैसवाड़ा फार्म में किए जा रहे प्रयास पैसे की फिजूलखर्ची मानी जा रही है। जबकि मनान केंद्र की हालत बीते साल 32 लाख रूपए लगाने के बाद भी खस्ता है। भैसवाड़ा फार्म को पहाड़ में बकरी विकास के साथ चारा विकास केंद्र के रूप में विकसित करने के स्थान पर विभागीय मंत्री द्वारा यहां मछली पालन के प्रयास सरकारी धन की बर्बादी ही कही जा सकती है। यह सारी कवायद अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने का प्रयास मानी जा रही है। फिलहाल विभागीय स्तर पर इस कार्य को कराने के प्रयास तेज हो रहे हैं।