Almora- कोरोना काल में तनाव व नकारात्मकता से बचना बेहद जरूरी, ‘सकरात्मक सोच-प्रथम पहल’ कार्यक्रम में कई विशेषज्ञों ने रखी राय

अल्मोड़ा (Almora), 08 मई 2021— मनोविज्ञान विभाग द्वारा मनोवैज्ञानिक उपचार श्रृंखला के अंतर्गत कोविड-19 से लड़ने के लिए चलाया जा रहा कार्यक्रम ‘सकरात्मक सोच-प्रथम पहल’…

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अल्मोड़ा (Almora), 08 मई 2021— मनोविज्ञान विभाग द्वारा मनोवैज्ञानिक उपचार श्रृंखला के अंतर्गत कोविड-19 से लड़ने के लिए चलाया जा रहा कार्यक्रम ‘सकरात्मक सोच-प्रथम पहल’ जारी है। यह कार्यक्रम ‘Department of Psychology SSJU Almora’ नाम के फेसबुक पेज पर संचालित किया जा रहा है।

कार्यक्रम में एसजीएमजी पीजी काॅलेज, डोईवाला के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डाॅ. वल्लरी कुकरेती ने कहा कि हमारे फ्रंट लाइन वर्कर्स इस महामारी के दौर में लगातार हमारे लिए कार्य कर रहे हैं। जिससे उनमें तनाव का होना स्वाभाविक है।

डॉ. वल्लरी ने रिलैक्सेशन विधियों द्वारा तनाव को कम समय में कैसे कम कर सकते है इस सम्बन्ध मे अपने सुझाव दिए। उन्होंने कहा कि कुछ मिनट का ब्रेक निकालकर अपनी आंखें बंद करके शरीर की मांसपेशियों को ढीला छोड़ दें तथा अपनी श्वास प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करें। जिससे ना सिर्फ आपको आराम महसूस होगा बल्कि तनाव भी कम होगा। उन्होंने कहा कि फ्रंट लाइन वर्कर्स के लिए कुछ समय निकालकर अपने सिर के मसाज करे, जिससे उन्हें काफी हद तक राहत मिलेगी।

प्रो. आराधना शुक्ला आईसीएसएसआर रिसर्च फैलो, सेवानिवृत्त मनोविज्ञान विभाग, एसएसजे परिसर अल्मोड़ा ने कहा ​कि कोरोना से लड़कर उभर चुके व्यक्तियों के बारे में जानना आज के समय की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हर दिन कोरोना से मृत्यु की खबरें आ रही हैं, जिससे नकारात्मकता बढ़ती जा रही है लेकिन मृत्यु के आंकड़ों को न देखकर रिकवर होने वालों की ओर से व्यक्ति के ध्यान देने से काफी हद तक नकारात्मकता दूर होगी।

इस व्याख्यान श्रृंखला में प्रो. आराधना शुक्ला ने कोरोना वायरस संक्रमण से जंग जीत चुके कई व्यक्तियों के साथ बातचीत के अनुभव साझा किए और किस प्रकार वे सभी विजेता कोरोना से लड़कर जल्द से जल्द पुरानी दिनचर्या को वापस शुरू कर पाए इसके बारे में बताया।

व्याख्यान श्रृंखला में योग विज्ञान विभाग एसएसजे परिसर के गिरीश सिंह अधिकारी ने कहा कि वर्तमान कोविड-19 की परिस्थितियों में चारों ओर भय एवं उदासी का वातावरण छाया हुआ है, ऐसे समय में हमारी प्राचीन एवं वैदिक चिकित्सा पद्धतियों द्वारा इस माहौल में कैसे स्वयं, अपने परिवार को एवं समाज को इस संक्रमण से बचाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि प्राचीन मर्म चिकित्सा के अंतर्गत ऐसे मर्म बिन्दु हैं जिनके द्वारा श्वशन तंत्र, हृदय परिसंचरण तंत्र एवं तंत्रिका तंत्र(मस्तिष्क) पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और जिससे वर्तमान परिस्थितियों में हम स्वयं को शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ्य रख सकते हैं।

कार्यक्रम निदेशक प्रो. मधुलता नयाल सहित प्रो. आराधना शुक्ला, प्रो. एम गुफरान, प्रो. पीडी भट्ट, डॉ. प्रीति टम्टा, डॉ. रुचि कक्कड़, डॉ. वल्लरी कुकरेती, सुनीता कश्यप, विनीता पंत तथा मनोविज्ञान विभाग के शोधार्थी रजनीश जोशी, आकांक्षा जोशी, फोजिया, गीतम भट्ट, दिव्या पंत , मोनिका बंसल एवं चंदन लटवाल आदि कार्यक्रम में उपस्थित थे।