Almora:- Bhupendra Joshi of Galli Basura is trying to save coarse grain
अल्मोड़ा, अल्मोड़ा के दौलाघट क्षेत्र के गल्ली बस्यूरा निवासी भूपेंद्र जोशी पारंपरिक मोटे आनाज के संरक्षण के जद्दोजहद में जुटे हैं। जोशी अब तक 150 से अधिक बीजों का संरक्षण करने में लगे हुए है।
उनके पास वर्तमान में धान की 40 किश्में और मड़ुए की 30 से अधिक बीज प्रजातियां संरक्षित हैं।
पहाड़ में मोटा अन्न कहे जाने वाले मंड़ुआ, झिंगोरा, स्थानीय उत्पाद कोणी, सफेद नूड, अलसी तथा भट्ट, गहत जैसी की हो रही प्रजाति को संरक्षित करने में वह जिस मनोयोग से जुटे हैं वह पहाड़ की खत्म होती खेती को बचाने वालों के लिए एक राहत भरी खबर हो सकती है। चित करने की दिशा में इन बीजों को अनुसंधान को बाहर के लोग भी ले जा रहे है। उनका कहना है कि कालीपोंग से चित्रकूट तक उनके संरक्षित बीजों को अनुसंधान के लिए ले जाया गया है।
कोरोना काल में फसलों को सुरक्षित करने के प्रयास के लिए भूपेन्द्र जोशी को सरकार की ओर से प्रशंसनीय कार्य के लिए सम्मानित भी किया। 2021 में उन्हें सरकार ने प्रोत्साहन के रूप में सम्मानित करते हुए प्रमाण पत्र प्रदान किया।
जैविक फसलों के स्वास्थ्य के लिए कारी प्रभावों पर विस्तार से जानकारी देते हुए भूपेंद्र जोशी ने बताया पहाड़ की फसलों पर जलवायु परिवर्तन के समय भी कोई विपरीत नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो ने भी से कुछ बीजों को शोध के लिए मंगवाया और जानकारी हासिल की।
अल्मोड़ा के विवेकानंद पर्वतीय अनुसन्धान संस्थान ने भूपेंद्र जोषी को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया। उनका कहना है राज्य सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की सहायता उन्हें नहीं दी गई है अगर उनके कार्य को राज्य सरकार देखें परखे तो शायद उत्तराखण्ड में व्यापक पैमाने पर जैविक खेती हो सकेगी साथ ही वो किस्में जो अधिक फसल दे सकती हैं उन पर भी राज्य सरकार की सहायता से शोध किया जा सकेगा।
भूपेंद्र जोशी का मानना है कि उत्तराखंड में आए विदेशी पर्यटक उनके काम से खुश होते हैं, ऐसे में श्रीअन्न के प्रति जागृति बढ़ने से उनके बीज बैंक के पूर्वजों द्वारा संरक्षित बीजों को पैदावार हम ले सकते हैंं।
दूरदराज के इस गांव के निवासी बेहद सरल श्री जोशी विस्तार से बताते हैं कि जैविक खेती के लिए और मोटे अनाज की खेती को कैसे कम पानी में अधिक फसल उगाई जाए किस फसल के क्या औषधीय गुण हैं। कहा कि कोई संस्था या राज्य सरकार अगर इस काम में सहयोग करे तो मिलकर देश के गांवों में पैदावार प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ किया जा सकेगा। अलग अलग जगह के मौसम के अनुकूल जैविक खेती की पैदावार भी बढ़ाई जा सकेगी।