कुछ कही कुछ अनकही कहानी है हिल स्टेशन ‘एबट माउंट’ की

भूतिया नहीं खूबसूरत पर्यटक स्थल है काली कुमाऊं का हिल स्टेशन ‘एबट माउंट’ ठीक सामने स्थित है हिमालय की एक लंबी श्रृंखला, 1942 निर्मित गिरजाघर…

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भूतिया नहीं खूबसूरत पर्यटक स्थल है काली कुमाऊं का हिल स्टेशन ‘एबट माउंट’ ठीक सामने स्थित है हिमालय की एक लंबी श्रृंखला, 1942 निर्मित गिरजाघर भी है एबट माउंट में स्थित

ललित मोहन गहतोड़ी चम्पावत। देवभूमि चंपा नगरी चम्पावत काली कुमाऊं कालांतर से ही अद्वैत प्रेमियों के साथ साथ अंग्रेजों की भी पसंदीदा स्थानों में से एक रही। यहां स्थित उस समय की बनी अंडरग्राउंड बहुमंजिला इमारतें आज भी इस बात की पुष्टि कर रही हैं। अंग्रेजों ने अपने प्रवास काल के दौरान यहां पर एक से बढ़कर एक खूबसूरत कोठियां बनाईं। इन कोठियों में आज भी उनके वंशज यदा कदा छुट्टी मनाने चले आते हैं। नये काटेज और खूबसूरत जगह होने के चलते स्थानीय लोगों के अलावा अनेक सैलानी यहां पिकनिक के लिए आते रहे हैं।

बताया जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के समय काली कुमाऊं लोहाघाट के मरोड़ा खान से तीन किलोमीटर चढ़ाई पर स्थित एपट माउंट में एक कोठी में बहुत बड़ा अस्पताल बनाया गया था। आस पास के क्षेत्र के अलावा दूर दराज के अन्य प्रदेशों से भी लोग यहां मुफ़्त इलाज के लिए आते थे। जो अब पूरी तरह से बंद है। इसे विभिन्न चैनल और समाचार पत्रों में भूतिया करार दे दिया गया है। जो काली कुमाऊं के इस खूबसूरत पर्यटक क्षेत्र के इतिहास को दागदार बनाने के लिए की गई एक सोची-समझी साजिश मात्र है। जबकि इसके उलट पर्यटन के लिहाज से इस खूबसूरत जगह का प्रचार-प्रसार होना चाहिए था। यहां स्थित टिपन टाप के ठीक सामने स्थित हिमालय की लंबी श्रृंखला का बिहंगम मंजर देखते ही बनता है।

कालांतर में काली कुमाऊं के एबट (एपट) में होती थी निशुल्क चिकित्सा
बताते चलें अंग्रेजी हुकूमत के बहुत बाद तक तत्कालीन अल्मोड़ा जिले के काली कुमाऊं में स्थित एबट माउंट जिसे स्थानीय भाषा में एपट के नाम से भी जाना जाता है। में मरीजों को निशुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती थी। स्थानीय ग्रामीणों के साथ ही अन्य अनाथ आदि रोगियों का यहां पर मुफ़्त में इलाज किया जाता था। बताया जाता है कि आज से कई वर्ष पहले ऐपट में मरीजों को शल्य चिकित्सा सुविधा मुहैया होती रही थी। उस समय का बना शल्य चिकित्सा कक्ष आज भी इस बात की गवाही दे रहा है। जो अब एक प्राइवेट प्रापर्टी है और जिसे आम जन के लिए बंद कर दिया गया है।अस्पताल में स्थित शल्य चिकित्सा कक्ष जिसे मुक्ति कोठरी के नाम से भी जाना जाता है। के बारे में उड़ी तरह-तरह की अफवाहों की कोई पुष्टि नहीं है। उड़ती अफवाह तो यह भी कही जाती है कि जिन मरीजों को घर के लोग दुखी होकर इस अस्पताल में छोड़ देते या जो असहाय मरीज यहां अपनी बीमारी के कारण भर्ती हो जाता उसे डाक्टर मोरिस अपने एक्सपेरिमेंट का हिस्सा बना लिया करता। जबकि स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां चिकित्सा शिविर लंबे समय तक चलाए गये जिसमें अनेक बीमारियों का मुफ्त इलाज किया जाता था।

आत्माएं भटकती हैं तो क्यों नहीं सताती यहां चौकीदारी कर रहे परिवारों को
अभी हाल ही में कुछ टीवी चैनल और पत्रों की ओर से स्वयं की टीआरपी बढ़ाने के मद्देनजर इस खूबसूरत जगह को भुतिया करार दिया गया जो महज सनसनी मात्र है। यह अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि गया है कि अंग्रेजी शासन काल तक लोहाघाट स्थित मरोड़ाखान एपटमाउंट (एपट) के अस्पताल में एक चिकित्सा कक्ष था। इस अस्पताल का एक सनकी डाक्टर मोरिस अपने तरह तरह के प्रयोग करता था। तब यह अस्पताल आधुनिक सुविधाओं से लैस था। इस बात की पुष्टि तो नहीं परन्तु कहा तो यहां तक भी गया है कि इस डाक्टर ने अपने शोध के आधार पर शरीर से आत्मा को अलग करने में सफलता हासिल कर ली थी। यदि यह बात सही है तो इस जगह में रहने वाले चौकीदार परिवारों को यह आत्माएं परेशान क्यों नहीं करतीं? जबकि लगभग कोठियों में यहां चौकीदार परिवार के सदस्य रखवाली कर रहे हैं।

जब युवाओं ने खोला था सरेबाजार बत्तमीज जौहरी का चश्मा
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि सुनी सुनाई बातों के अलावा जो हकीकत है वह यह कि बर्ष १९४२ में अंग्रेजों ने इस स्थान पर चर्च और अस्पताल की नींव रखी थी। स्थापना के दो दशक बीत जाने के बाद बर्ष १९६२ की लड़ाई के दौरान इसे एकदम बंद कर दिया गया। लोगों का कहना था कि इसके बाद एबट माउंट अमीरों की अय्याशी का अड्डा बन गया था। इस बात के एक दशक बीत जाने के बाद वर्ष १९७२ के गर्मियों के मौसम में एक अनोखी घटना घटी जिसका मुख्य किरदार एक सोने चांदी का व्यापारी जिसे स्थानीय लोग जौहरी नाम से जानते थे। का चश्मा एकाएक चर्चा का विषय बन गया। तब काली कुमाऊं के संगठित युवा उक्त जौहरी से लोहाघाट के खड़ी बाजार की सीढ़ियों के पास सरेबाजार भिड़ गए। उन्होंने जौहरी का वह रत्न जड़ित चश्मा उसकी आंखों से उतार दिया। युवाओं का मानना था कि यह कोई पारदर्शी चश्मा है। इस बात पर जौहरी और युवाओं के बीच बहुत लंबी कहासुनी हो गई। अपनी पोल खुलती देख जौहरी ने इन युवाओं के उपर मुकदमा दर्ज कराने की बात कह दी। आगे जाकर यह बात इतनी बढ़ गई कि जौहरी को रातों-रात सबकुछ छोड़कर उल्टे पांव यहां से भागना पड़ा था।