Kargil Vijay Diwas: भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई के महीने में साल 1999 में कारगिल का युद्ध लड़ा गया था। इससे पहले कारगिल से पाकिस्तानियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने कार्यवाही की थी।
क्या है ‘कारगिल’ में चरवाहे की कहानी?
26 जुलाई की तारीख बेहद खास तारीख है। इस दिन देश के जवानों ने अपने देश की रक्षा के लिए खुद का बलिदान कर दिया था। इस बीच एक चरवाहे की कहानी भी जान लेना काफी जरूरी है जिससे पाकिस्तान की पोल पट्टी खुल गई थी।
लंबी है ‘कारगिल’ की कहानी
कारगिल युद्ध में हमारे जवानों ने यह दिखा दिया था कि देश की तरफ आंख उठाने की कोशिश करने वाले को मिट्टी में मिला दिया जाएगा। कारगिल की पूरी कहानी काफी लंबी है मगर आज हम आपको एक ऐसा किस्सा बताएंगे जिसके बाद पाकिस्तान के इरादे मिट्टी में मिल गए थे।
चरवाहे ने दिखाई पाकिस्तान की औकात
यह किस्सा कारगिल के बटालिक सेक्टर का है। कारगिल से 60 किलोमीटर दूर एक चरवाहा रहता था ताशी नामग्याल नाम के इस चरवाहे का याक खो गया था। इस एक को खोजने के लिए वह ऊंची पहाड़ियों पर जा पहुंचा, जब वह वहां गया तो उसने देखा कि पाकिस्तानी घुसपैठी कर रहे हैं। इसके बाद उन्होंने तुरंत जाकर सी को इस बारे में जानकारी दे दी।
सेना ने शुरू कर दी छानबीन
इसके बाद भारतीय सैनिकों ने चरवाहे की बात पर गौर किया और तुरंत छानबीन शुरू कर दी। सेना ने अच्छी तरह छानबीन की और पेट्रोलिंग भी की। भारतीय सेना को यह तुरंत अंदेशा हो गया कि पाकिस्तानियों ने घुसपैठ की है मगर मामले में जानकारी इकट्ठा करना चाहते थे।
ऐसे शुरू हुआ ‘ऑपरेशन विजय’
इसके बाद से ही पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू कर दिया गया। इसी इस ऑपरेशन में पाकिस्तान के तकरीबन 3000 सैनिकों के मारे जाने की खबर है।