उम्मीद— नया साल(New year) क्या पहाड़ में होगीं बुनियादी सुविधाएं बहाल ?

New year

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Will the new year restore the basic facilities in the mountain?

प्रमोद जोशी
उत्तरा न्यूज डेस्क, 01 जनवरी 2021— समय चक्र अवधि को पार कर एक और साल बीत गया है नया साल(New year) आ गया है। इस एक साल में कई अनुभवों से गुजरने के बाद दुनिया नए वर्ष (New year)में प्रवेश कर गई है।

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लोग आने वाला नया साल (New year)सुखमय हो समृद्धिमय हो ऐसी उम्मीद कर उसकी बधाईयां दे रहे हैं। इस सबके बीच उत्तराखंड में लोग इस उम्मीद में भी है कि आने वाले साल में कम से कम पहाड़ की अवाम को वह बुनियादी सुविधाएं मिल सकें जिसके लिए पृथक राज्य की मांग की गई थी। अगल राज्य के लिए आंदोलन किया गया था।

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पहाड़ की समस्याएं पहाड़ जैसी बड़ी जटिल और परीक्षा लेने वाली हैं। उत्तराखंड हमेशा सुविधाओं को एक सपने की तरह देखता रहा है और आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद और अपना राज्य मिल जाने के 20 साल बाद भी यह सपने सपने रहकर एक प्रकार से चिरस्थाई रह चुके हैं।

बीमार मरीज को डोली में लाकर मुख्य सड़क तक आने में 7 से 10 किमी की दूरी तय करना, ब्लॉक स्तर पर स्थापित अस्पतालों में जरूरूी सुविधाओं का न होना, जिंदगी की जंग को जिलामुख्यालय तक पहुंचाना और यहां भी सुविधाओं के अभाव में या तो बाहर रेफर होना या आंखों के सामने अपनों को मरते हुए देखना यह पहाड़ की नियति बन गई है। यानि पहाड़ में आज भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधा की बात करना केवल कल्पना ही है।
स्वास्थ्य ही नहीं, सड़क , शिक्षा, रोजगार यह भी ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिनमें किसी एक की अनदेखी समाज के विकसित ढांचे को बनाने के राह में अवरोधक बनते हैं। लेकिन इस सबमें स्वास्थ्य एक ऐसा मुद्दा है जिसपर अब यदि गहराई से नही सोचा गया तो पहाड़ों की ऊंचाइयों और जटिलताओ को हराकर इसे आबाद करने वाले हार मान जाएंगे तब पहाड़ को दोबारा आबाद करना मुश्किल ही नहीं नामुंकिन सा हो जाएगा।

बीता हुआ साल यानि 2020 पूरे विश्व में स्वास्थ्य सुविधाओं की परीक्षा लेने वाला साबित हुआ। कोरोना महामारी ने यह जता दिया कि स्वास्थ्य सेवाओं की अनदेखी कैसा कहर ढा सकती है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बुनियादी सुविधा कही जाने वाली स्वास्थ्य सुविधा इस दौर में भी सपना ही रही। सरकार ने अपने स्तर से अपने संशाधनों से कोरोना जैसी लड़ाई को हराने का प्रयास जारी रखा है। लेकिन जनता को नजदीकी क्षेत्रों में अभी भी जरूरी और जीवन रक्षक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। जिला मुख्यालयों में वेंटीलेटर एक जरूरी सुविधा बन चुकी है पर अभी भी इसका इंतजार है।

प्रसव पीड़ित महिलाओं को गांव और ब्लॉक तो छोड़िए जिला मुख्यालयों में पर्याप्त और जरूरी सुविधाए नहीं मिल रही हैं। बड़े बड़े अस्पतालों के भवन डाक्टरों के अभाव में रेफर सेंटर बन कर रह गए हैं। इस बीच हर बार नए साल (New year)में 10 फीसदी सेवा शुल्क बढ़ोत्तरी अलग से लोगों को परेशान कर रहा है। विशेषज्ञ डाक्टर क्या होते हैं अब यह लोगों को पता ही नहीं है। हम अपने राज्य में किसी बड़े रोग का उपचार करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण से संक्रमित होने के बाद हमारे सीएम और नेता प्रतिपक्ष को राज्य से बाहर उपचार कराने जाना पड़ रहा है। जो सीधे सीधे उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं के बदहाली का एक जीता जागता उदाहरण है।

राज्य बनने के बाद सड़क भी एक बड़ा मुद्दा रहा है कई बार लोग किलोमीटरों पैदल चल कर मुख्य सड़क पर पहुंचते हैं। बीमारी और तकलीफ की स्थिति में जब मरीज को साथ लाना होता है तो डोली ही एक मात्र सहारा होता है। डोली में बीमार को लेकर आने की जो टीस और तकलीफ लोग भुगतते हैं उसकी कल्पना करना कितना तकलीफदेह है? यह उस मार्ग से गुजरने वाला ही बता सकता है।

आए दिन ऐसी तस्वीरे और वीडीओ वायरल हो रहे हैं जब लोग बता रहे हैं कि यह उनकी नियति बन गई है। हाल में ही कुटौलिया गांव से एक वीडियों वायरल हुआ था जिसमें इसी तरह की पीड़ा लोगों ने उठाई थी। वायरल वीडियों में इनका कहना था कि गांव के लोगों को आज भी छह किमी पैदल चलना पड़ता है। यह गांव अल्मोड़ा विधानसभा के अंतर्गत आता है।

इसके अलावा पिछले दिनों गढ़वाल क्षेत्र से भी एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें लोग पीने के पानी के वर्तना को गाय बैलों के गले में लटका कर जरूरत का पानी भर रहे थे। यानि पीने का पानी इतना दूर था कि लोग पानी भरे बर्तनों को जानवरों के गले में लटका कर घर को ले जा रहे थे। अल्मोड़ा के कटारमल, सेराघाट और गंगोलीहाट से भी पिछले दिनों ऐसी खबरें आई कि प्रसव के लिए अल्मोड़ा पहुंची गर्भवती महिलाओं को उपचार के अभाव में दम तोड़ना पड़ा।

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उक्त सारी समस्याएं इतनी पीड़ादायक हैं कि इनकी वास्तविकता भुक्तभोगी ही बता सकता है और मुद्दे इतने जरूरी हैं कि कभी भी कोई इन स्थितियों से गुजर सकता है।

इसलिए नए साल की उम्मीदों में भले ही हम नए साल (New year) में कल्पनालोक के संदेश अपने प्रियजनों को दें,सरकार सुनहरे दौर की उम्मीदों की किरण उछाले, हम उम्मीद करते हैं कि इस साल (New year)कोई इन बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दम ना तोड़े, किसी शिशु की आंख स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में बंद ना हो तो कोई महिला आक्सीजन के अभाव में अपनी सांसों की डोर से हाथ न धोए। नया साल(New year) विकास और रोजगार की नई इबादत तो लिखे साथ ही पानी, सड़क और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों की अनदेखी से पहाड़ में रोशन किसी भी घर में पलायन के चलते ताला नहीं लगे। आपको नए साल (New year)की बधाई साथ ही सरकार से अपील की अब जनमुद्दों की बात करना शुरू करे अब धरातल पर विकासकार्यों को अमली जामा पहनाए पलायन शब्द भाषणों में नहीं हकीकत में मुद्दा बने। जनता से भी उम्मीद है कि चुनावों में जीत के लिए गढ़े जाने वालें नारों की हकीकत समझ़ें अपने मुद्दों को इन नारों की चमक में फीका नहीं पड़ने दें। नारों से सत्ता भले ही बदल जाए नियति नहीं बदलती यह उत्तराखंड का नया सबक है।  नया साल (New year)मुबारक हो। 

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