पेयजल को लेकर मचा हाहाकार

लंबे समय से बनी हुई है समस्या ललित मोहन गहतोड़ी/ नकुल पंत के साथ बिपिन कन्याल चम्पावत। जल ही जीवन है जल के बिना जीवन की…

lohaghat me payjal sankat

लंबे समय से बनी हुई है समस्या

ललित मोहन गहतोड़ी/ नकुल पंत के साथ बिपिन कन्याल
चम्पावत। जल ही जीवन है जल के बिना जीवन की कल्पना करना भी कोरी बात है। इस जल के लिए  लोहाघाट के सुईं चनकांडे क्षेत्र में आजकल हाहाकार मचा हुआ है। ग्रामीणों की ओर से लोहाघाट के एसडीएम कोर्ट में इस मुख्य समस्या को लेकर बार बार अवगत कराया गया है। बावजूद इसके अभी तक उनकी पेयजल आपूर्ति बहाल नहीं हो पाई है।
               लोहाघाट से पांच किलोमीटर दूर स्थित है गलचौड़ा। गलचौड़ा से लगे सुईं के चनकांडे नामक स्थान पर बने हैंडपंप में रोजाना सुबह से शाम तक पानी भरते ग्रामीणों की भीड़ देखी जा सकती है। ग्रामीणों का कहना है कि उनके यहां पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। कहना है कि तीन गांवों चनकांडे, सुई और चमनपुरी के लिए एक हैंडपंप होने से लोगों को परेशानियों का सामन को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।  पेयजल की समस्या के चलते ग्रामीण नगरों की ओर पलायन के लिए मजबूर हैं। इसके अलावा यहां लगे अन्य हैंडपंप महज शो पीस बने हुए हैं। बताया कि गांव में आने वाला सरकारी संयोजनों का पानी खुद राम भरोसे चल रहा है। जबकि पानी के कनेक्शन लगभग सभी के घरों में हैं पर यह सभी संयोजन पानी के अभाव में सफेद हाथी बने हुए हैं।  पेयजलापूर्ति के लिए महज एक हैंडपंप होने से लोगों को अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि एकमात्र हैंडपंप के चलते कुछ राहत मिली हुई है यहां भी सुबह चार बजे से भीड़ लगी रहती है जिससे लोगों का पानी भरने में ही अधिकतर वक्त जाया हो रहा है।

लोहाघाट में भी नहीं हो रही प्रर्याप्त जल आपूर्ति

पिछले माह से अच्छी बारिश के बावजूद लोहाघाट में भी लोगों के संयोजनों में जल आपूर्ति बाधित हो रही है। उपभोक्ताओं का कहना है कि प्रत्येक तीसरे दिन महज आधे घंटे ही उनके संयोजनों में पानी आ रहा है। इसके चलते लोग नौलो धारों और मोडेक्स हैंडपंप से पानी ढोने को विवश हैं। अधिकांश लोगों का कहना है कि इस सीजन अच्छी बारिश के बावजूद पेयजल विभाग उन्हें पानी कम उपलब्ध करा रहा है।

पारंपरिक स्रोतों पर रहना पड़ रहा निर्भर

लोहाघाट के लोगों को पेयजल के लिए अक्कल धारा, एसएसबी और कोलीढेक के स्रोतों पर निर्भर होना पड़ रहा है। इससे इन स्रोतों पर लगातार दवाब बढ़ता जा रहा है। दिन भर भीड़ के चलते इस बार पारंपरिक स्रोतों में भी पानी की कमी देखी जा रही है।