फेसबुक का अर्थशास्त्र भाग – 10

दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है…

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दिल्ली बेस्ड पत्रकार दिलीप खान का फेसबुक के बारे में लिखा गया लेख काफी लम्बा है और इसे हम किश्तों में प्रकाशित कर रहे है पेश है दसवा भाग

मैं मार्क जकरबर्ग हूं, माइक दीजिए मुझे

द सोशल नेटवर्क फिल्म में मार्क जकरबर्ग का किरदार निभाने वाले जेसी आइजनबर्ग में इस फिल्म के बाद कई लोग जकरबर्ग के अक्स देखने लगे। आइजनबर्ग भी मस्ती-मजाक में कई बार खुद को जकरबर्ग के तौर पर लोगों के बीच पेश कर देते हैं। उनकी इस शरारती कारस्तानी की वजह से फेसबुक के कार्यक्रम में एक दिलचस्प वाकया हुआ। हुआ यूं कि कार्यक्रम शुरू होना था और जकरबर्ग मंच पर नहीं पहुंचे थे। तो, मौका ताड़कर आइजनबर्ग ने माइक संभाला। गला खंगालते हुए ठीक मंच के बीचो-बीच आकर उन्होंने लोगों का इस्तकबाल किया। फिर फेसबुक की कामयाबी को लेकर अपने अनुभव इस तरह शेयर करने लगा गोया वो सचमुच के जकरबर्ग हो! इस बीच जकरबर्ग स्टेज के बगल में परदे के पीछे से आइजनबर्ग को देख-देखकर मजे ले रहे थे। थोड़ी देर तक चुप-चाप देखने के बाद हॉवर्ड का शरारती अंदाज जकरबर्ग पर भी तारी हो गया।

बीच में ही मंच पर आकर वो बोले, “ओह! ये नामुराद कौन हैं?” अपने भाषण में रमे आइजनबर्ग ने बिल्कुल उसी लहजे में जवाब दिया जैसे यह जवाब भी उनके भाषण का ही अंश हो, “मैं मार्क जकरबर्ग हूं।” इस जवाब को सुनकर पूरा हॉल हंसी के मारे दोहरा हो गया। जकरबर्ग ने दर्शकों से मुखातिब होकर कहा, “नहीं, मैं मार्क जकरबर्ग हूं। माइक दीजिए मुझे।”

प्रिसिला, क्या तुम ‘फेसबुक’ के लिए काम करोगी ?

जकरबर्ग को याद करते ही फेसबुक, कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर इस तरह दिमाग में एक साथ गुथ जाते हैं कि जीवन के अन्य पहलुओं पर ध्यान बहुत कम ही जा पाता है, लेकिन मार्क ने अब तक अपना जीवन बेहद संतुलित, सामान्य और उसमें रंग भरने वाले हर पहलुओं को समेटकर जिया है। हॉवर्ड के शुरुआती दिनों में एक शुक्रवार पार्टी में मार्क के साथ सबकुछ उसी तरह था, जैसे अमूमन पार्टी में होता है। लेकिन पार्टी के बाद दुनिया वैसी नहीं रही, जैसे पहले थी। मार्क ने दोस्तों से गप्प-शप्प की, ठहाके लगाए, खाया-पिया और बाथरूम की तलब लगने पर उधर का रुख किया।

पुरुष और महिलाओं के लिए जहां से रास्ता फूटता था, वह एक साझा हॉल था। लाइन में जब मार्क लगे तो बाजू वाली कतार में प्रिसिला चैन भी थीं, जिनसे मार्क अब तक अपरिचित थे। दोनों की यह पहली मुलाकात थी। प्रिसिला चैन ने बाद में एक साक्षात्कार में बताया कि पहली मुलाकात के वास्ते बाथरूम का संयोग दुनिया में कितना कम होता होगा! बहरहाल, पता-परिचय के बाद नियमित मिलना-जुलना शुरू हुआ। और धीरे-धीरे यह मुलाकात प्रेम में तब्दील हो गई। प्रिसिला भी हॉर्वर्ड में ही थीं। इस तरह से साझेपन की बुनियाद में हॉर्वर्ड का बड़ा योगदान रहा। फेसबुक इस समय नवजात ही था। मार्क फेसबुक को लेकर उत्साहित होने के साथ-साथ बेहद महत्वाकांक्षी भी हो रहे थे और इसी चलते उन्होंने हॉर्वर्ड छोड़ने का फैसला लिया। मार्क का कैलिफॉर्निया जाना सपाट तरीके का जाना नहीं था, वह फेसबुक नामक मंच को साथ लेकर कैलिफॉर्निया गए थे जिसकी पैदाइश हॉर्वर्ड थी और मौजूदा पता कैलिफॉर्निया।

इस तरह न सिर्फ मार्क और प्रिसिला के शहर का बंटवारा हुआ था, बल्कि फेसबुक भी बंट गया था और दोनों का एक-एक सिरा दो अलग-अलग शहरों में ये दोनों थामे थे। प्रेम चलता रहा बल्कि यूं कहिए कि लगातार गहराता गया। सिलिकॉन वैली में फेसबुक ने जब अच्छी धाक जमा ली तो नए कर्मचारियों की भर्ती के लिए मार्क ने सबसे सटीक जगह के तौर पर हॉर्वर्ड को चुना और प्लेसमेंट की खातिर वो कुछ दिनों के लिए हॉर्वर्ड आ गए। विश्वविद्यालय से निकलने वाले समाचारपत्र द क्रिमसॉन के मुताबिक भर्ती प्रक्रिया के दौरान मार्क ने प्रिसिला को ऑफर दिया का वो ‘फेसबुक’ के लिए काम कर सकती है! यह बेहद मजाकिया तरीका था मार्क का। प्रिसिला की प्रतिभा से मार्क वाकिफ थे। जिस वक्त याहू ने फेसबुक को 1 अरब डॉलर में खरीदना चाहा था तो चैन ने मार्क से लंबी जिरह के बाद उसे ठुकराने को कहा था। आप कह सकते हैं कि वो फैसला जकरबर्ग का कम प्रिसिला का ज्यादा था