जम्मू कश्मीर का केसर (Saffron) पहुंचा अल्मोड़ा के खेतों में, प्रवासियों में भी दिख रहा है उत्साह

समाचार से संबंधित वीडियो यहां देखें……. अल्मोड़ा, 13 अक्टूबर 2020— जनपद में उद्यान विभाग द्वारा केसर (Saffron) का कृषिकरण शुरू हो गया है। गोविंद बल्लभ…

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अल्मोड़ा, 13 अक्टूबर 2020— जनपद में उद्यान विभाग द्वारा केसर (Saffron) का कृषिकरण शुरू हो गया है। गोविंद बल्लभ राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान की ओर से राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की पहल पर अल्मोड़ा जनपद को इस बार केसर उत्पादन के लिए चयनित किया गया।

Saffron

सोमवार को ताड़ीखेत के खनिया गांव में और मंगलवार को शीतलाखेत क्षेत्र में जनपद के उद्यान अधिकारी ने कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर से आए विशेषज्ञों के मार्गनिर्देशन में चयनित किसानों के खेतों में जाकर स्वयं केसर (Saffron) की बुवाई की। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अधिकारी इंजीनियर किरीट कुमार ने बताया कि दो साल संस्थान परिसर में सफल उत्पादन के बाद इस बार जिला प्रशाासन के आग्रह पर कश्मीर से दो कुंतल केसर (Saffron) बल्ब लाकर जनपद में विभिन्न स्थानों पर उगाया जा रहा है।

शेर—ए—कश्मीर विश्वविद्यालय द्वारा मिशन की एक परियोजना के तहत कश्मीर घाटी में गुणवत्तापूर्ण केसर बल्ब तैयार करने व केसर उत्पादन से आजीविका संवर्धन की दिशा में कार्य किया जा रहा है।

ज्ञातव्य है कि अल्मोड़ा पर्यावरण संस्थान में बीते वर्ष उगाए गए केसर (Saffron)की लैब रिपोर्ट उच्च कोटी की आई जिससे स्पष्ट हुआ कि अल्मोड़ा जनपद की आबोहवा केसर उत्पादन के लिए उपयुक्त है।


शीतलाखेत क्षेत्र में उत्साही किसान रणजीत सिंह बिष्ट, केशव दत्त पाण्डे, व नवीन चंद्र पाण्डे के खेतों में वैज्ञानिक विधि से आज केसर (Saffron) का रोपण किया गया। इस अवसर पर शेर ए कश्मीर विश्वविद्यालय के डा. मोहम्मद तौशीफ अली, शकीर अहमद भटट ने केशर बीज को उपचार , रोपण और रखरखाव की तकनीक काश्तकारों को बताई। जिला उद्यान अधिकारी टी एन पाण्डे ने बताया कि पूरे जनपद से अनेक किसान इसके रोपण के लिए उत्साह दिखा रहे हैं, विभाग पहली बार यह प्रयोग कर रहा है। ज्येष्ठ उद्यान निरीक्षक शीतलाखेत ऋचा जोशी, व गौरी दत्त जोशी, काश्तकार बिहारी सिंह तथा संस्थान से जगदीश चंद्र पांडे सहित अनेक लोगों ने किसानों का मार्गदर्शन किया।

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इधर लॉक डाउन में अपने गांव आए प्रवासी रणजीत सिंह बिष्ट ने बताया कि वह दिल्ली में आईटी सेक्टर में कार्यरत थे। लेकिन अब गांव आकर बागवानी और कृषि से जुड़ना चाहते हैं। और उद्यान विभाग की ओर से उन्हें एक पॉली हाउस मिल गया है साथ ही वह केसर की खेती के गुर भी सीखना चाहते हैं यदि यहां केसर (Saffron) की खेती सफलता से हो गई तो वाकई इसे उत्पादक काश्तकारों को काफी लाभ होगा।

इधर मुख्य उद्यान अधिकारी टीएन पांडे ने बताया कि जिले में यह पहला परीक्षण है रानीखेत के खन्या के बाद शीतलाखेत में इसका प्रदर्शन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि केसर की खेती काश्तकारों के लिए काफी लाभदायक होगी। क्योंकि एक किग्रा केसर की मार्केट कीमत डेढ़ से दो लाख रुपया है।


कश्मीर के शेर—ए— आए शेर एक कश्मीर विवि के डा. मोहम्मद तौशीफ अली ने बताया कि कश्मीर और अल्मोड़ा के इस क्षेत्र की आबोहवा एक जैसी है। यहां जैविक विधि से काश्तकार खेती करने की बात कर रहे हैं ऐसे में यहां उत्पादित होने वाला केसर जैविक केसर कहलाएगा और उसकी और अच्छी कीमत मिलेगी। उन्होंने केसर के विभिन्न उपयोगों और फायदों की जानकारी भी मौजूद किसानों को दी।

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