Almora- अल्मोड़ा का वह प्रसिद्ध मैदान जहां गाँधी ने पहाड़वासियों को दिया निडरता का संदेश

mahatma gandhi in Almora

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उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा, 02 अक्टूबर 2020-
अल्मोड़ा
(Almora) देश आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151 वीं जयंती मना रहा है। ऐसे दिन महात्मा गांधी की यादों से जुड़े हर स्थान खुद को गौरान्वित महसूस कर रहे हैं।

अल्मोड़ा में भी बापू ने 1929 में चार स्थानों पर जन सभाएं की थी। अल्मोड़ा (Almora) नगर के शहीद पार्क लक्ष्मेश्वर में उन्होंने जनसभा को संबोधित कर उन्हें निडर रहने का संदेश दिया था।

mahatma gandhi in Almora

जानकारियों के अनुसार आजादी के आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अल्मोड़ा भ्रमण पर भी आए। राष्ट्रपिता गांधी ने 20 जून 1929 को लक्ष्मेश्वर मैदान में विशाल जनसभा को संबोधित किया और स्वतंत्रता की अलख जगाई।यहां उन्होंने अपार जन समूह को निडरता का संदेश दिया था|
इस मैदान को अब गांधी सभा स्थल शहीद पार्क लक्ष्मेश्वर के नाम से जाना जाता है।अब स्थानीय निकाय प्रशासन ने वहां सौंदर्यकरण कार्य कर इस थाती को सहेजने का प्रयास किया है|
अल्मोड़ा के नगर पालिका अध्यक्ष प्रकाश जोशी ने बताया कि कुमाऊं भ्रमण के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 19 जून 1929 की शाम को अल्मोड़ा पहुंचे थे। राष्ट्रपिता ने रानीधारा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरीश चंद्र जोशी के घर कैसल भवन में रात्रि विश्राम किया। एडवोकेट हरीश चन्द्र जोशी के इस भवन में वर्तमान में ग्रेस स्कूल संचालित है।

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जानकारी के अनुसार 20 जून को लक्ष्मेश्वर मैदान में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जनसभा हुई। जिसमें लोगों की काफी भीड़ जुटी। राष्ट्रपिता ने लोगों खासकर युवाओं में आजादी के आंदोलन के प्रति जोश भरा। उन्होंने कहा कि अब आप लोग डर को बिल्कुल छोड़ दें, क्योंकि स्वराज के मार्ग में डर रुकावट है। इसके बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कौसानी गए।
पालिकाध्यक्ष प्रकाश जोशी ने बताया कि अल्मोड़ा में चौघानपाटा, लक्ष्मेश्वर व सेलाखोला में एक महिलाओं की जनसभा को संबोधित करने की जानकारी भी मिलती है|

रानीखेत भी खूब भाया था गांधी को(mahatma gandhi in Almora)

आजादी की लड़ाई में अल्मोड़ा के रानीखेत क्षेत्र का योगदान भी अहम है। यही वह स्थान है, जहां से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी में कुमाऊं के रणबांकुरों में जोश भरा था।(mahatma gandhi in Almora)
जानकारी के मुताबिक लोगों ने राष्ट्रपिता की आने की सूचना के बाद ताड़ीखेत में उनके ठहरने के लिए ढाई दिन में एक कुटिया का निर्माण कर दिया।
1929 में महात्मा गांधी यहां प्रवास पर आए महात्मा गांधी के जाने के बाद यह कुटिया आंदोलनकारियों का प्रशिक्षण केंद्र भी रही।
ताड़ीखेत में महात्मा गांधी के प्रवास के लिए यहां प्रेम विद्यालय के पास ढाई दिन में कुटिया का निर्माण हुआ। गांधी जी 17 जून को ताड़ीखेत पहुंचे और कुटिया से ही उन्होंने आंदोलनकारियों में आजादी की लड़ाई को लेकर जोश भरा|(mahatma gandhi in Almora)
जानकारी के मुताबिक तत्कालीन आंदोलनकारी गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविंद पंत, स्व. देवकी नंदन सहित तमाम लोगों ने गांधी जी की अगवानी की। तीन दिन तक रानीखेत उपमंडल के अलावा कुमाऊं भर के आंदोलनकारियों का यहां हुजूम उमड़ पड़ा।  ताड़ीखेत की कुटिया आज भी गांधी कुटीर के नाम से जानी जाती है। (mahatma gandhi in Almora)

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फोटो- लक्ष्मेश्वर का मैदान जहां गांधी ने जनसभा को संबोधित किया

चौघान पाटा की गांधी प्रतिमा दिलाती है गांधी और अल्मोड़ा के बीच अटूट रिश्ते की याद(mahatma gandhi in Almora)

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों को अल्मोड़ा आज भी संजोये है। गांधी पार्क में बैठी हुई मुद्रा में बापू की मूर्ति लोगों को अल्मोड़ा में गांधी की यादों की स्मृति को ताजा करती है|
पालिकाध्यक्ष प्रकाश जोशी ने बताया कि 1929 में जब बापू आजादी आंदोलन की अलख जगाने कुमाऊं आए थे तो यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और आतिथ्य दोनों ही उन्हें बहुत भा गया था। इसी बात को उन्होंने यंग इंडिया में लिखा है कि ‘प्रेम व चिंता की अंकना मुश्किल है फिर भी अल्मोड़ा के आतिथ्य को भुलाया नहीं जा सकता है’।

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अल्मोड़ा का शहीद स्मारक दिवस

वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों व विदेश के पर्यटक जब भी अल्मोड़ा पहुंचते हैं, वह इस ऐतिहासिक गांधी सभा स्थली के दर्शन जरूर करते हैं।

मिली जानकारी के अनुसार कुमाऊं भ्रमण के तहत गांधी जी 19 जून, 1929 की सायं Almora पहुंचे और रानीधारा स्थित हरीश जोशी के मकान में उन्होंने रात्रि विश्राम किया।

20 जून, 1929 को उन्होंने दिन में अल्मोड़ा (Almora) नगर के लक्ष्मेश्वर मैदान में जनसभा को संबोधित कर युवाओं में आजादी के आंदोलन के प्रति जोश भरा।

यहां उनके द्वारा इस स्थल पर दिए भाषण के एक अंश में उन्होंने लोगों से कहा था, ‘अब आप लोग डर को बिल्कुल छोड़ देंगे, क्योंकि स्वराज के मार्ग में डर रुकावट है’। गांधी का यह संदेश आज भी एक शिलापट्ट के माध्यम से लक्ष्मेश्वर मैदान में उकेरा गया है|

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लक्ष्मेश्वर में बनाए गए रेखाचित्र

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