साहस को सलाम— 2 साल से रीढ़ की चोट से जूझ रही है उड़नपरी गरिमा, और सपना पैराओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना

उड़नपरी गरिमा

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Salute to the courage – Udnapari Garima has been suffering from a spine injury for 2 years. Dream of winning a medal for the country in Paralympics उड़नपरी गरिमा

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अल्मोड़ा,01 सितंबर 2020— अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट निवासी एथलीट गरिमा जोशी प्रदेश की उड़नपरी के रूप में विख्यात होने ही वाली थी कि नियति की क्रूर दृष्टि उसपर पड़ गई एक सड़क हादसे में गरिमा की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई और फर्राटा भरने वाली गरिमा व्हील चेयर पर आ गई ।

तब से वह बिस्तर पर है लेकिन गरिमा के साहस को देखिये एक एथलीट होने के चलते उसने व्हील चेयर पर ही दौड़ना शुरू कर दिया और निरंतर प्रयास के बाद आज वह इसमें भी पारंगत हो गई है। अब उसका सपना है कि अगले वर्ष होने वाले पैरा ओलंपिक में वह भारत को एथलीट में पदक दिलाए।

उड़नपरी गरिमा

द्वाराहाट तहसील के छतगुल्ला गांव निवासी गरिमा जोशी ने अपनी पढ़ाई गांव क्षेत्र में ही की। इंटर के बाद वह अल्मोड़ा पढ़ने आई। इससे पूर्व उसके खेल का सफर 2013 से शुरु हुआ। 2013 में सबसे पहले देहरादून में आयोजित मैराथन में तीसरा स्थान पाया। जिसके बाद 2014 में नेशनल गेम्स का हिस्सा लिया । गरिमा ने बतया कि 2016 मे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं की ब्रांड अम्बेडर भी उन्हें बनाया गया था।

उड़नपरी गरिमा

गरिमा मई 2018 तक कई पदक जीत चुकी थी, पूरे प्रदेश में वह उड़नपरी के रूप में प्रसिद्ध हो गई थी लेकिन 31 मई 2018 को बंगलुरु में प्रैक्टिस के दौरान एक्सीडेंट हो गया गरिमा के मुताबिक एक कार उन्हें ने उन्हें हिट कर दिया।
इस घटना के बाद गरिमा डिसेबल हो गई दौड कर आसमान छूने का सपना देखने वाली गरिमा बिस्तर पर आ गई और व्हील चेयर ही अब उसके अंदर बाहर जाने के साधन हो गए। लेकिन तब भी गरिमा ने हिम्मत नही हारी और 2021 में देश को पैरा एथलीट में सर्वण पदक दिलाने का भरोसा दिला रही है।

द्वाराहाट के पूरन जोशी की सुपुत्री गरिमा के साथ इस दौर में कई ऐसे घटनाक्रम हुए जिसमें अच्छे से अच्छा हिम्मती की हिम्मत जबाब दे जाय लेकिन गरिमा के साहस के बारे में जानकर आप भी उन्हें सैल्यूट करने लगेंगे।

एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल गरिमा को स्पाइनल कॉर्ड इंजरी हुई। कर्नाटक में उनका ऑपरेशन हुआ। लेकिन तबसे गरिमा व्हील चेयर पर है। जबकि इसी दौर में उन्होंने कैंसर से पीड़ित अपनी मां को भी खोया, पिता पूरज जोशी पर काफी आर्थिक भार आ गया। बावजूद गरिमा अपनी प्रेक्टिस जारी रखे हुए है।

जब गरिमा बैंगलुरु में अस्पताल में भर्ती भी तब मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी उनसे मिलने पहुंचे और सारे उपचार का खर्च सरकार द्वारा वहन करने की बात कही। सरकार ने मदद भी की लेकिन केवल गरिमा के उपचार में आये खर्च लेकिन परिवार को उम्मीद थी कि उसके ईलाज में जो अन्य खर्च हुआ है उसकी मदद भी सरकार करेगी यही नहीं गरिमा की माता जो कैंसर से जूझ रही थी उसके उपचार के लिए भी उनके पिता पूरन चन्द्र जोशी ने बैंक से कर्ज लिया था। जिसे वह वापस लौटाने में असमर्थ हैं। उन्हें तब बैंकों के कई तकादो, नोटिसों का भी सामना करना पड़ा था।पिता का कहना है कि बैंक द्वारा घर को सील करने के आदेश भी आ गए हैं।
एक्सीडेंट के बाद गरिमा विकलांग हो गईं, पर उन्होंने फिर भी हौसला नहीं खोया। उन्होंने व्हील चेयर पर गेम्स की प्रैक्टिस शुरू की। पिछले साल उन्होंने दिल्ली में हुई एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में पहला स्थान हासिल किया। कई और प्रतियोगिताएं जीतीं।

जिस इंसान के अंदर हौसले बुलंद होते है, सफलता कदम चूमती है. द्वाराहाट से निकली गरिमा जोशी व्हील चेयर में आने के बाद भी अपनी हिम्मत नही हारी, 2021 में पैरा ओलंपिग में देश को पदक दिलाने की बात कर रही है, इसके लिए वह अपने गांव में भी अभ्यास जारी रखा है।

इन दिनों गरिमा अपने गांव आई हैं। हालांकि वह अपने पिता से मिलने लॉक डाउन से पूर्व आई थी तब से यहीं फंसी रह गई। आर्थिक मदद पर वह अपना उपचार कराती हैं। उनके कई मित्र आज भी उनकी मदद करने को तत्पर रहते हैं। लगातार बिस्तर पर रहने से वह बेड सोर से भी परेशान रहती थी।

गरिमा अब दिल्ली से खेलेंगी कुछ अन्य क्वालिफाइंग औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पैराओलंपिक में खेलने को मौका उन्हें मिलेगा और उन्हें उम्मदी है कि वह देश के लिए पदक जरूर जीतेंगी।

गरिमा के पिता पूरन चन्द्र जोशी ने कहा कि वही एक तरफ गरिमा का ईलाज मुम्बई में चल रही थी दूसरी तरफ उनकी मां की मौत कैंसर से हो गयी. जिस पर राज्य सरकार ने कुछ मदद तो की और पूरा खर्चा उठाने का वादा पूरा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है कि वह गरिमा की तैयारी पर लाखों खर्च कर दे। राज्य सरकार को ऐसे खिलाडियों की मदद करनी चाहिए जिससे देश और दुनिया में उत्तराखण्ड का नाम रोशन कर सके। परिवार के सामने दुखों का पहाड़ खड़ा है. एक तरफ बेटी का ईलाज और दूसरी तरफ पत्नी के ईलाज में लाखों खर्च। यदि ऐसे में सरकार अपना वादा पूरा कर दे तो परिवार को काफी मदद मिल जाएगी।