मेरी यादों के पहाड़ से साहित्यकार देवेन्द्र मेवाड़ी ने करायी अनोखी यात्रा

हमारे सहयोगी नीरज भट्ट की आंखो देखी अल्मोड़ा। प्रसिद्व विज्ञान लेखक और साहित्यकार देवेंद्र मेवाड़ी ने शनिवार को यहां उत्तराखण्ड सेवानिधि के सभागार में बड़े…

devendra mewari

हमारे सहयोगी नीरज भट्ट की आंखो देखी

अल्मोड़ा। प्रसिद्व विज्ञान लेखक और साहित्यकार देवेंद्र मेवाड़ी ने शनिवार को यहां उत्तराखण्ड सेवानिधि के सभागार में बड़े ही रोचक अंदाज में साहित्य और विज्ञान की कड़ियों को एक साथ जोड़कर समझाया। बशीर ब्रद के इस शेर के साथ उन्होने अपना व्यक्तव्य शुरू किया।

इबादतों की तरह मैं ये काम करता हूँ
मेरा उसूल है पहले सबको सलाम करता हूँ

इन पंक्तियों के साथ श्री मेवाड़ी उत्तराखण्ड सेवानिधि के सभागार में मौजूद लोगों से जुड़ते हैं। वह विज्ञान की तमाम गुत्थियों को रोचक ढंग से ऐसे सुलझाते हैं कि एक बार फिर उस बचपन की विज्ञान की पुस्तक में खोने को मन करता है जिसे देखकर अक्सर हम कन्नी काट लिया करते थे। वह रवींद्रनाथ टैगोर,रोनाल्ड रॉस, बोसी सेन और भी कई विद्वत जनों के अल्मोड़ा से जुड़े पहलुओं की जानकारी देते हैं। बड़े ही रोचक अंदाज में श्री मेवाड़ी ने साहित्य और विज्ञान दोनों पतवारों को थामे श्रोताओं को एक मुकम्मल यात्रा करवायी।

“मेरी यादों के पहाड़” व्याख्यान के तहत वह नैनीताल जनपद के ओखलकांडा के सुदूरवर्ती क्षेत्र के बचपन में सभी लोगों को अपने साथ ले गये। उन्होनें बताया कि बचपन में वे जाड़ो में भाबर और गर्मियों में पहाड़ लौट आया करते थे।अपनी यादों में से उन्होनें बांज,बुरांश,काफल,अयांर,लोध,शाल,बबूल के गैल पातल और उनसे पोषित मनखियों की हंसी,पीड़ा, उमंग,उत्साह,विरह की कहानियों को बयां किया। बाँज की जड़ों में छिपी हुई नमी उनके चेहरे पर साफ़ दिखती है जब वे आँख बंद कर बचपन में खो जाते हैं।
“कुकु..कुकु.. कुकु…”
“काफल पाको…काफल पाको…”
“तीन तीला तितरीन.. शुभांग तेरी कुदरत…”
पक्षियों की आवाज़ लगाते हुए उनके कंठ में मानो पहाड़ उतर आया हो।
कफुवा,तीतर ,सिंटोले,तोता,मैना,
उनकी यादों में आँगन में अनाज खोजती गौरैया है,सुबह और शाम को बुलाते अनगिनत पक्षी हैं ।
उनकी यादों के पहाड़ में घना अन्धेरा और उससे जूझता लंफू है जो आगे लालटेन बन गया है।उनकी यादों में घस्यारिन् है जो पहाड़ में जिंदगी घोलती है और प्रकृति को सवारने की समझ रखती है। उन्होंने अपनी शिक्षा और रोजगार के लिए संघर्ष की तमाम कथाएं सुनायी।

ऐसी जगह से जो एक प्राथमिक स्कूल से महरूम है मेवाड़ी जी ने वहां से निकलकर ज्ञान विज्ञान की राह चुनी। उनकी यादों में हजार संघर्ष और लाख प्रेरणाएँ हैं। उनकी यादें पहाड़ की नियति को बयां करती हैं,पढ़ना लिखना जितना जरूरी है उस से ज्यादा जरूरी हैं पहाड़ को छोड मैदानों में जाना। बेशक ,पलायन की इस प्रवृत्ति में जिज्ञासा पूरी होने और भौतिकता पाने का सुख है लेकिन मन का कोई कोना कहीं न कहीं हमेशा के लिये यही रह जाता है।

programme of devendra mewari in uttrakhand sewa nidhiउत्तराखण्ड सेवानिधि के निदेशक पदमश्री डॉ ललित पांडेय,रंजन जोशी,अनुराधा पांडेय प्रो दिवा भट्ट, मनोहर सिंह बृजवाल,युसुफ तिवारी,जीवन मेहता,सुबोध पन्त,रमेश पांडेय राजन,नीरज पांगती,कमल जोशी, जगदीश चन्द्र भट्ट, कल्याण मनकोटी,ललित तुलेरा  सहित कई लोग देवेन्द्र मेवाड़ी के इस अनोखे लैक्चर के जरिये ज्ञान,विज्ञान, साहित्य से लेकर बचपन तक की यात्रा के सहभागी बने।