अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही, दम तोड़ रही जिंदगियां टूट रहा है लोगों का विश्वास

अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही

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The carelessness of Almora’s hospitals, dying lives is breaking people’s trust

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अल्मोड़ा,23 अगस्त 202- पर्वतीय जिलों में स्वास्थ्य की बदहाली किसी से छिपी नही है. सरकारी अस्पतालों की लापरवाही और निजी अस्पतालों की मनमानी से कई लोग अकाल मौत के मुह में चले जाते हैं|(अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही)

धरती के भगवान कहे जाने वाले डाक्टरों का संवेदनहीन स्याह भूमिका अब मरीजों में अविश्वास पैदा कर रहा है|

अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही

अल्मोड़ा में अस्पतालों पर कई बार लापरवाही के आरोप लगे हैं| सेवा करने वाले डाक्टरों पर एक नहीं कई बार ऐसे आरोप लगे हैं कि लोग अब खुल कर आरोप लगाने लगे हैं| यमराज जैसा शब्द लोगों की जुबां पर चढ़ने लगा है| लापरवाही की कई घटनाएं तो सामने ही नहीं आ पाती हैं जिसका अपना डाक्टरों की संवेदनहीनता का शिकार हो दुनिया छोड़ बैठता है वह किस्मत को कोसते हुए चूपचाप घर चले जाते हैं, कुछ ही लोग अस्पतालों के रवैये को बयां करते है तब इन सफेद कोट धारकों की स्याह तस्वीर से लोग रूबरू हो पाते हैं|(अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही)

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पहले भी लगे हैं अस्पतालों पर लापरवाही के आरोप

2014 में वरिष्ठ आंदोलनकारी व उपपा के अध्यक्ष पीसी तिवारी की पत्नी मंजू तिवारी जो जिला स्तरीय अधिकारी थी उनकी मौत इसी प्रकार की लापरवाही की भेंट चढ़ी| तब काफी बड़ा आंदोलन हुआ था बेस अस्पताल में सरकार को जनदबाव के चलते हार्ट सेंटर खोलना पड़ा था|(अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही)


2011 में एक बैंक कर्मी की मौत पर भी सवाल उठे कई अन्य उदाहरण और भी हैं| यहां अस्पताल में मरीज को भर्ती कराने के लिए लोगों को सीएम पोर्टल तक की मदद लेनी पड़ती है एेसे आरोप भी हाल में लगे थे जब एक गरीब व्यक्ति को पहले जबरन डिस्चार्ज कर दिया बाद में सीएम पोर्टल व मानवाधिकार आयोग तक शिकायत पहुंची तो मरीज को जबरन घर से अस्पताल पहुंचाया गया|
अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही से पिछले 6 सालों में दर्जन भर लोगों की मौत हो गयी है. कोरोनाकाल में तो मरीज को देखने को ही डाक्टर तैयार नही है| उपचार की उम्मीद में अस्पताल पहुंचने वाले को यहां के जिम्मेदार लोग टरकाने की कोशिश करते नजर आते हैं|
तीन दिन पहले जिस गर्भवती महिला की मौत हुई परिजनों के अनुसार उसे पहले टायफायड बताया गया बाद में उसे कोरोना जांच के नाम पर इधर उधर दौड़ाया गया| सरकार की ओर से कोरोना के रेपिड टेस्ट की व्यवस्था होने के बावजूद उसे यह सुविधा देने की बजाय बेस अस्पताल भेजा वहां जांच निगेटिव आई लेकिन उन्होंने बेस अस्पताल के कोविड अस्पताल होने का हवाला देते हुए फिर जिला अस्पताल ले जाने को कहा|
बीमार महिला के साथ आए तीमारदारों व उसके जेठ सुंदर सिंह का कहना है. कि बेस अस्पताल में बीमार महिला को आक्सीजन पर रखा गया था | डाक्टरों ने आक्सीजन जरूरी बताया और जिला अस्पताल लाते हुए अपना सपोर्टिंग स्टाफ भी उपलब्ध कराया लेकिन जब दिन में तीसरी बार जिला अस्पताल पहुंचे तो यहां के स्टाफ ने आक्सीजन ही नहीं होने की बात कहनी शुरु कर दी और आक्सीजन की सुविधा नहीं मिलने से ही उनके मरीज की मौत हो गई| कितना पीड़ादायक होगा जब अस्पताल किसी को आक्सीजन तक नहीं दे पाता है. इससे पूर्व परिजन महिला को दिन भर कभी सरकारी तो कभी प्राइवेट अस्पतालों में उपचार की उम्मीद में घुमाते रहे पर हाथ केवल मौत ही आई|
इस पूरे प्रकऱण में निजि अस्पतालों का रवैया भी सलाह देने वाला ही रहा है ऐसा मृतक महिला के परिजनों का कहना है|
अब बात सामने आने पर डिप्टी स्पीकर रघुनाथ सिंह चौहान ने भी मामले की जांच कराने के निर्देश दिए हैं वहीं शासन ने भी मामले का संज्ञान लिया है| लेकिन क्या इसके बाद सरकारी अस्पतालों का नजरिया बदलेगा या फिर आम आदमी के हिस्से ऐसी मौत आती रहेगी यह भविष्य के गर्भ में है|
(अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही)

20 साल के राज्य में बेहतर स्वास्थ्य अभी भी सपना

पहाड़ में डोली या कुर्सी में सड़क तक मरीज को लाने के बाद ही अस्पताल लाया जाता है जब अस्पताल में ही लापरवाह डाक्टर बैठे हो तो फिर मरीज कहां जायेगा। गुरुवार को कभी सरकारी अस्पताल कभी निजी अस्पताल के कारण एक महिला ने दम तोड़ दिया, परिजनों ने भी जिला अस्पताल में आंक्सीजन नही मिलने से अपनी बहू की मौत का दोषी अस्पताल प्रशासन को माना है|
राज्य बनने के बाद से ही बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा रहा लेकिन पहाड़ पर डांक्टरों की कमी और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से लोग अपनी जांन गवाते रहते है। अल्मोड़ा सहित पहाड़ी जनपदों में पहले सड़क तक ही मरीज को लाने में काफी परेशानी फिर अस्पतालों का करोना का बहाना मरीजों पर भारी पड़ रहा है। सबसे बड़ी उदासीनता यह है कि जिला स्तर के अधिकारी तक इतनी बड़ी घटना होने के बाद तक नहीं चेतते हैं|घटना के दिन फोन तक रिसीव अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया|
(अल्मोड़ा के अस्पतालों की लापरवाही)

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