बिंदुखत्ता प्रकरण की पीपीआई(डेमोक्रेटिक) ने की निंदा, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की उठाई मांग

पीपीआई(डेमोक्रेटिक)

पीपीआई(डेमोक्रेटिक)

PPI (Democratic) पीपीआई(डेमोक्रेटिक) condemns Bindu Khatta case

अल्मोड़ा, 19 अगस्त 2020 मूलनिवासी समाज के साथ हो जातीय भेदभाव के विरोध में तत्काल कार्रवाई की मांग को लेकर पीपल्स पार्टी आफ इंडिया(डेमोक्रेटिक) ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा है. हाल ही में नैनीताल जिले के बिंदुखत्ता प्रकरण की निंदा की है.

पीपीआई(डेमोक्रेटिक) ने ज्ञापन में कहा कि आधुनिक भारत आज स्वाधीनता की 74वीं वर्षगांठ मना रहा है जहां भारत के संविधान में निहित अपने प्रत्येक नागरिक को जाति, धर्म, क्षेत्र, लिंग व भाषा के आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं होगा, यह गारंटी के साथ समता का अधिकार प्रदान करता है.

कहा कि बीते 16 अगस्त को उत्तराखंड राज्य के नैनीताल थाना क्षेत्र लालकुआं राजीव नगर, बोरिंग पट्टी में पीड़ित विजय टम्टा अपनी जमीन पर भवन निर्माण कार्य करने गए तो उसके साथ उनकी पड़ोस में आवासीय एक महिला ने जातिसूचक शब्द का प्रयोग करते हुए अभद्रता की तथा पत्थर से मारने का प्रयास भी किया है. जिस घटना का वीडियो सोशल मीडिया में भी काफी वायरल हुआ.

कहा कि हालांकि यह घटना उत्तराखंड में पहली बार घटित नहीं हुई है बल्कि इसी तरह की हजारों घटनाएं रोज घटित होती है, जिन पर न तो कोई संज्ञान लिया जाता है और ना ही वह समाज में जगजाहिर होने दी जाती हैं. आज भी इस तरह का प्रत्यक्ष-अप्रत्क्ष भेदभाव जो एससी-एसटी एक्ट व अन्य के उल्लंघन और अपराध की श्रेणी में आता है.

यह घटना किसी व्यक्ति, समुदाय को शर्मसार कर देने वाला ही नहीं बल्कि भारतीय समाज व राष्ट्र को कलंकित कर देने वाला कुकृत्य और अपराध है. बल्कि यह और भी गंभीर तब हो जाता है कि इस प्रकार की घटनाएं उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देशभर में भी निरंतर दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.

पीपीआई(डेमोक्रेटिक) मूलनिवासी समाज पर आए दिन हो रहे जातीय भेदभाव, अन्याय, अत्याचार और अपराधों की घोर निंदा के साथ ऐसे जातिवादी मानसिकता व भेदभाव के खिलाफ तत्काल कार्रवाई कर मूलनिवासी समाज के शोषित-पीड़ित वर्गों को उनके संवैधानिक और मानवाधिकारों का संरक्षण करते हुए न्याय दिलाने की मांग करता है.

पीपीआई(डेमोक्रेटिक) ने मुख्यमंत्री से शीघ्र ही दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर उन्हें सजा दिलाने की मांग की है. कहा कि मांग पूरी नहीं हुई तो मूलनिवासी संघ अपनी सामाजिक और सांगठनिक शक्ति के साथ अपने समाज के संवैधानिक और मानवाधिकारों के लिए आंदोलन करने को मजबूर होगा.