चंपावत में सूनी गलियां ही ठौर बना है आवारा मवेशियों का, कई बीमारियों से जूझ रहे हैं मवेशी(Cattle)

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आवारा छोड़ी गाय(Cattle) बाजारों में कूड़ा खाकर भर रही है अपना पेट

कूड़ा एवं अन्य अपशिष्ट पदार्थ खाने से यह गोवंश(Cattle) आ रहा है भयंकर बीमारी की चपेट में

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चंपावत से ललित मोहन गहतोड़ी की रिर्पोट:

पहाड़ में कभी परिवारों की अर्थव्यवस्था की धुरी रहे गोवंश(Cattle) पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। उचित देखभाल नहीं होने के चलते अनेक गोवंश भयंकर बीमारी की चपेट में आ रहे हैं।

गांव गांव से लेकर बाजारों में आवारा छोड़ दी गयी मवेशी प्लास्टिक और अन्य कूड़ा करकट खाकर अपना पेट भर रही है। अविशिष्ट पदार्थ पेट में पहुंचते ही गोवंश बीमार होकर दम तोड़ रही है।

पहाड़ में सरकार की ओर से गाय को संरक्षित किए जाने की मुहिम परवान नहीं चढ़ पा रही।

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जब तक गोवंश दूध दे रहा है या खेती के काम आ रहा है तब तक ही इसे घर की गोशाला में बांधा देखा जा सकता है। इसके बाद तो इसे यूं ही आवारा बाजारों में छोड़ दिया जा रहा है।

उचित देखभाल की कमी के चलते यही गोवंश अनेक बिमारियों की चपेट में आ रहे हैं।

कहां जाता है कि पालतू गोवंश को आवारा हालात में छोड़ना किसी पाप से कम नहीं। पर एक दूसरे की देखा-देखी यह पाप का कार्य करने में किसी को कोई गुरेज नहीं।

हालात यहां तक हो गये हैं कि सूनसान सड़कों से लेकर बाजारों में इन मूक जानवरों का जमघट लगने लगा गया है। बाजार में चारे की जगह कूड़ा और अन्य अपशिष्ट पदार्थ ही इनका चारा मात्र बनकर रह गया है।

यहां पर जीवन संघर्ष कर रही गोमाता पर अनेक जुल्म हो रहे हैं। कोई इन्हें वाहनों से टक्कर मारकर घायल कर रहा है तो कहीं जंगली जानवर और आवारा कुत्ते इन मूक जानवरों को हानि पहुंचा रहे हैं।

गो मूत्र और गोबर के लिए हो सकता है गोवंश(Cattle) का उपयोग

यूं तो कुमाऊं में तमाम जगहों पर आवारा छोड़ी गायों का संरक्षित किया जा रहा है। लेकिन जितनी गाय संरक्षण के लिए ले जा ई जाती हैं अगली बार उससे ज्यादा गोवंश (Cattle)बाजारों में फिर घूमते दिखाई देने लगती हैं। संरक्षण की कोई ठोस रणनीति नहीं होने से यहां हर रोज गोवंश जीवन से संघर्ष करती और दम तोड़ती नजर आ रही है।